वर्तमान में अमेरिका के कर्ज संकट तथा उस के तीन ए संप्रभु साख का स्तर नीचा लाये जाने की घटना पर विश्व भर में तीव्र प्रतिक्रियां हुईं और वित्तीय बाजार में हलचल मचा, शेयरों को धक्का पहुंचा और सोने के दाम में भारी वृद्धि हुई है। वर्तमान दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला चीन अमेरिका का सब से बड़ा कर्जदाता है, तो अमेरिका के कर्ज संकट का चीन पर क्या क्या असर पड़ेगा और इससे निपटने के लिए चीन क्या कदम उठाएगा।
हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस में अमेरिकी सरकारी कर्ज की सीमा ऊंचा उठाने का प्रस्ताव पारित किया गया है, बशर्ते कि उस की बजट घाटा को भी कम किया जाए। अमेरिकी संघीय रिजर्व बैंक ने यह ऐलान भी किया है कि अमेरिकी बैंक की शून्य से लेकर 0.25 प्रतिशत की रेपो दर 2013 तक बनाए रखी जाएगी, जो अमेरिका के इतिहास में सब से नीची दर है। इस के बारे में चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार आयोग के उप मंत्री चांग श्याओ छ्याङ ने पेइचिंग में संवाददाताओं के साथ एक संयुक्त साक्षात्कार में कहा कि सच कहिए, अमेरिका जो इस प्रकार की उदार मुद्रा नीति के जरिए अपना आर्थिक पुनरूत्थान का लक्ष्य प्राप्त करने की कोशिश करता है, उस का चीन पर जरूर असर पड़ेगा। श्री चांग श्याओ छ्याङ का कहना हैः
अमेरिका रिजर्व मुद्रा जारी करने वाला मुख्य देश है, उस के द्वारा अंधाधुंध मुद्रा छापे जाने के कारण विश्वव्यापी मुद्रास्फीति और अधित गंभीर होगी। अमेरिका की इस कोशिश के परिणामस्वरूप उस की आर्थिक बहाली के लिए चीन समेत अन्य अर्थव्यवस्थाओं को भी कीमत चुकानी होगी। वर्तमान में चीन का विदेशी मुद्रा संचय 32 खरब अमेरिकी डालर है, ऐसे में यदि अमेरिका के उदार मुद्रा नीति अपनाने के कारण सारी दुनिया में मुद्रास्फीति बढ़ेगी, तो वह चीन के विदेशी मुद्रा संचय की वास्तविक क्रय शक्ति पर कुप्रभाव डालेगी।
श्री चांग ने कहा कि वर्तमान में जहां अमेरिका का कर्ज संकट बढ़ता जा रहा है, वहीं यूरोप में कर्ज संकट भी खत्म नहीं हुआ और उस के आगे विस्तृत होने की आशंका भी है। यूरोपीय संघ और अमेरिका दोनों की जीडीपी सारी दुनिया का करीब 60 प्रतिशत बनता है, यदि जापान को मिला कर तीनों की कुल आर्थिक मात्रा सारी दुनिया का दो तिहाई होती है। किन्तु वर्तमान में इन तीनों के देश भीतर बेरोजगार दर ऊंची बनी रहती है, मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है और आंतरिक मांगों की मंदी हुई है। इस प्रकार की खराब स्थिति का चीन की अर्थव्यवस्था पर अवश्य कुप्रभाव पड़ेगा।
श्री चांग श्याओ छ्याङ के विचार में समग्र आर्थिक दृष्टि से देखा जाए, तो अमेरिका और यूरोप के कर्ज संकट से और अधिक प्रतिकूल स्थिति पैदा होगी। इस पर उन्होंने कहाः
अभूतपूर्व विश्वव्यापी वित्तीय संकट घटित होने के बाद यह आम राय बन कर सामने आयी है कि अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के सुधार को गहराई में लाना लाजिमी है जिस में अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के कुछ अन्यायपूर्ण पहलु और उत्तर दक्षिण में बड़ी खाई जैसे सवाल शामिल हैं। लेकिन विकसित देशों में कर्ज संकट आने और बेरोजगार दर ऊंची होने के कारण कुछ विकसित देशों में संरक्षणवाद का सिर फिर से उठने की संभावना है, वह विश्व आर्थिक ढांचे के सुधार और विश्व आर्थिक असंतोलन के समाधान के लिए अहितकारी होगा।
इस के अलावा विकसित देशों में आए कर्ज संकट से प्रभावित होकर इस साल सारी दुनिया की आर्थिक वृद्धि भी निम्न स्तर पर होगी। ऐसी बिगड़ती आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए चीन क्या कर सकेगा, इस के बारे में चर्चा करते हुए श्री चांग श्याओछ्याङ ने कहाः
चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा में जो 12वीं पंचवर्षीय योजना पारित हुई है, उस का रणनीतिक महत्व होता है और उस में अहम कदम भी उठाए गए हैं, हमें इन कदमों को बखूबी अंजाम देना चाहिए, विकास के तौर तरीकों को सचे माइने में बदला जाना चाहिए, आर्थिक ढांचे के समन्वय को बेहतर किया जाना चाहिए और वैज्ञानिक प्रगति के बूते पर चीन के विकास को बढ़ाया जाना चाहिए, इन सभी कामों को अमली जामा पहनाने से हम बिगड़ती बाहरी आर्थिक स्थिति का सामना करने में सफल होंगे।
श्री चांग श्याओछ्याङ ने कहा कि इधर के सालों में चीन सरकार और चीनी कारोबारों ने वैज्ञानिक प्रगति और सृजन के काम में काफी शक्ति लगायी है। चीन अब रणनीतिक महत्व रखने वाले नवोदित उद्योगों के विकास में जुटा है और समुन्नत तकनीकों के सहारे परंपरागत उद्योगों का सुधार करवा रहा है, साथ ही चीन आंतरिक मांगों का विस्तार करने पर भी कायम रहता है। इस साल के पूर्वार्द्ध में चीन में शहरी नागरिकों की आय 20 प्रतिशत तथा ग्रामीण निवासियों की आय 13.7 फीसदी बढ़ी और रोजगारी की दर भी बढ़ती गयी है। इनसब ने चीन के लिए विश्व में आयी आर्थिक चुनौतियों पर विजय पाने के लिए अनुकूल स्थिति तैयार कर रखी है।