दोस्तो , जापान सरकार ने हाल ही 2011 वार्षिक प्रतिरक्षा श्वेत पत्र पारित किया , यह जापानी प्रतिरक्षा नीति में भारी हेरफेर करने के बाद जारी पहला श्वेत पत्र है । इस बात को लेकर चीनी शिनह्वा समाचार एजेंसी ने अपने लेख में कहा कि श्वेत पत्र में ज्यादा पृष्ठों में चीनी फौजी शक्ति का खूब ढिंढोरा पीटा , यहांतक कि कलह और भड़काऊ पैदा कर जानबूझकर तनावपूर्ण वातावरण तैय़ार कर दिया गया है , जिस से चीन जापान संबंध को भारी क्षति हुई है ।
लेख में कहा गया है कि इस श्वेत पत्र ने जापान की नयी प्रतिरक्षा नीति पर पूर्ण रुप से प्रकाश डाल दिया , पहले की ही तरह इस मोटी मोटी प्रतिरक्षा नीति की पुस्तिका में चीन का उल्लेख जरूरत से अधिक किया गया है । पर फर्क मात्र यह है कि इस श्वेत पत्र में न सिर्फ चीन के सामान्य राष्ट्रीय रक्षा के निर्माण को लेकर भला बुरा कह दिया , बल्कि कलह पैदा करने की पूरी कोशिश की ।
इस श्वेत पत्र में चीनी फौजी शक्ति के प्रति तथाकथित सतर्क रुख अपनाकर विस्तार और अपारदर्शीता जैसे पुराना राग अलापा । इस के अलावा इस श्वेत पत्र में यह दावा भी किया गया है कि चीन पड़ोसी देशों के साथ संबंधों के निपटारे में उच्च दबाव वाला रवैया अपनाने लगा है ।
श्वेत पत्र में जिन कथाकथित उच्च दबाव वाले मामलों का उल्लेख किया गया है , उन में चाहे पूर्व सागर में हो या प्रशांत महा सागर में , चीन ने जो सर्वेक्षण व प्रशिक्षण किया है और दक्षिण समुद्र में देश के अधिकार व हित की रक्षा की है , वे सब के सब सामान्य और उचित ही हैं । जहांतक कि श्वेत पत्र में चीनी व जापानी जहाज की टक्कर की चर्चा हुई है , वह तथ्य के खिलाफ है । क्योकि सर्वप्रथम यह घटना चीन की प्रादेशिक भूमि त्याओ यू द्वीप के निकट हुई है , दूसरी तरफ वास्तव में जापानी समुद्री सुरक्षा ब्यूरो के कई हथियारबंद जहाजों ने चीनी मछुआ जहाजों को घेर कर रोक दिया है । तीसरी तरफ मछली मारने वाले जहाजों का जापानी प्रतिरक्षा योजना से अखिर क्या ताल्लुक है ।
श्वेत पत्र में इन कुंजीभूत तथ्यों को इसीलिये नजरअंदार किया गया है , उस के दो कारण हैं , एक यह है कि जापान लम्बे अर्से से शीत युद्ध की विचारधारा अपनाते हुए जापानी अमरीकी गठबंधन के प्रभाव तले चीनी खतरे दलील और चीन रोकथाम दलील से नहीं उबर सकता । दूसरा कारण है कि जापान द्वितीय विश्व युद्ध के बाद निर्धारित शांति संविधान की प्रतिरक्षा नीति से पिंड छुड़ाने को उत्सुक है ।
वास्तव में उच्च दबाव जापान के लिये ज्यादा उचित है । श्वेत पत्र से साफ साफ मालूम हुआ है कि आखिरकार किस ने क्षेत्रीय तनाव पैदा कर दिया है । श्वेत पत्र में जारी आंकड़ों के अनुसार 2010 से लेकर आज तक जापान ने एशिया के प्रशांत महा सागरीय क्षेत्र में 13 बार बहुदेशीय संयुक्त युद्धाभ्यासों में भाग लिया है , जापान और अमरीका की विभिन्न फौजी टुकड़ियों का द्विपक्षीय फौजी अभ्यास तो आम बात है । इस के अलावा जापान ने आस्ट्रेलिया आदि कुछ एशिया प्रशांत क्षेत्रीय देशों के साथ प्रतिरक्षा सहयोग मजबूत किया और उस से कोई भी संबंध न रखने वाले दक्षिण समुद्र मामले पर भी कलह पैदा किया या भड़काया ।
जापान द्वारा दक्षिण समु्द्र मामले की चर्चा किये जाने से पहले चीन ने एशियान के साथ एशियान विदेश मंत्री सम्मेलन के दौरान दक्षिण समुद्र के बारे में विभिन्न पक्षीय कार्यवाही घोषणा पत्र मसौदा प्रस्ताव पर मतैक्य प्राप्त कर लिया , जिस से दक्षिण समुद्र में सार्थक सहयोग के लिये रास्ता हमवार हो गया । जिस से जाहिर है कि जापान का जानबूझकर इसी मामले को उठाने का इरादा स्पष्ट है ।
क्षेत्रीय शांति की रक्षा हरेक व्यक्ति का दायित्व है । एशिय़ा प्रशांत क्षेत्र के इतिहास व वास्तविकता ने बार बार साबित कर दिखाया है कि श्वेत पत्र जैसा अजिम्मेदाराना कथन , नीति और दुराश्य लिये अनुमान क्षेत्रीय शांति व स्थिरता के लिये ज़रा भी लाभदायक नहीं है । जानबूझकर तनाव पैदा करने से एशिया प्रशांत क्षेत्रीय जनता की शांति व विकास करने की अभिलाषा के विपरीत भी है ।