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तिब्बत की विभिन्न जातियां समान विकास के लिये प्रयासशील हैं
2011-07-20 17:15:33

दोस्तो , तिब्बत स्वायत्त प्रदेश एक तिब्बती जातिबहुल जातीय स्वायत्त प्रदेश है , जहां तिब्बती , हान , ह्वी , मंपा , लोपा, नाशी , नू और तुलुंग समेत दसेक जातियां पीढ़ी दर पीढ़ी रहते आयी हैं , शांतिपूर्ण मुक्ति के पिछले 60 सालों में तिब्बत में बसी सभी जातियां समानता व आपसी मदद के आधार पर सामंजस्यपूर्ण रुप से रहती हैं और बर्फीले पठार पर समान खुशहाल विकास में जुटी हुई हैं ।

तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति की 60वीं वर्षगांठ मनाने का समारोह 19 जुलाई को ल्हासा शहर के पोताला महल चौक पर हुआ । हजारों लाखों ल्हासा शहर वासियों ने बड़े उत्साह के साथ दुनिया को सामंजस्यपूर्ण , सहिष्णु और खुशहाल नया तिब्बत प्रदर्शित कर दिया । त्सरनयांगचुंग ल्हासा शहर रहने वाली तिब्बती युवती है । इस समारोह की चर्चा में उसने बड़ी प्रसन्नता से कहा फूलों और विविधतापूर्ण सजावटों से सुसज्जित पोताला महल चौक बड़ा आलीशान लगता है । समारोह से पहले मैं देखने एक बार गयी थी, फिर देखने जाऊंगी । हमारे परिवार ने शांतिपूर्ण मुक्ति की 60वीं वर्षगांठ की खुशियां इतनी धूमधाम से मनायीं , जितना तिब्बती नव वर्ष और दही उत्सव जैसे तिब्बती परम्परागत त्यौहार मनाया जाता है ।

त्सरनयांगचुंग को सचमुच बड़ी खुशी हुई है । क्योंकि पिछले 60 सालों में तिब्बत में जमीन आसमान का भारी परिवर्तन हुआ है । 2010 में समूचे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का सकल उत्पाद पांच अरब 70 करोड़ य्वान से अधिक हो गया , जो 1959 वर्ष के 83 गुनों से भी ज्यादा है । औसत जीवन आयु शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले की 35.5 उम्र से बढ़कर 67 तक पहुंच गयी है । साक्षरता दर शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले के 95 प्रतिशत से घटकर 1.2 प्रतिशत तक हो गयी है । यह बड़ी तरक्की तिब्बत की विभिन्न जातियों के सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व और समान प्रयास से अलग नहीं किया जा सकता ।

तिब्बती जाति और अन्य जातियों के नागरिकों को राजकीय मामलों में प्रत्यक्ष रुप से भाग लेने देना और राजनीतिक तौर पर भरपूर स्वशासन अधिकार संभालने देना जातीय एकता व प्रगति को साकार बनाने की पूर्व शर्त है । वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के प्रांतीय नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं में तिब्बती और अन्य अल्पसंख्यक जातीय कार्यकर्ताओं की संख्या 70 प्रतिशत है । जबकि कांऊटी व टाऊनशिप स्तरीय प्रमुख अधिकारियों में तिब्बती व अन्य अल्पसंख्यक जातियों के कार्यकर्ताओं की संख्या 86 प्रतिशत से अधिक है ।

34 उम्र वाला त्सतान एक तिब्बती कार्यकर्ता है , उन्हें जातीय एकता पर गहरा अनुभव हुआ है । त्सतान तिब्बत के शिकाजे डिस्ट्रिक्ट की सागा कांऊटी के उप प्रधान हैं । गत सदी के 90 वाले दशक की शुरुआत में वे प्राइमरी स्कूल से पास होकर मिडिल स्कूल पढ़ने के लिये भीतर क्षेत्र में खुली तिब्बती कसाल में गये । उन्होंने कहा कि उस समय भाषा और रीति रिवाज की वजह से जीवन बेहद कठिन था । फिर अध्यापकों व सहपाठियों की मदद से उन्होंने कठिनाइयों को दूर कर दिया ।

कलास में आम दिनों में बातचीत करने में हान भाषा यानी चीनी भाषा बोली जाती है , उस समय हमें ज्यादा चीनी भाषा नहीं आती थी , बातचीत करना बहुत कठिन था , पर अध्यापकों व सहपाठियों की देखरेख में हम एक दूसरे से जल्द ही परिचित हो गये हैं ।

त्सतान की आपबीती से उन्होंने जातियों के बीच समान व्यवहार व सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व को गहन रुप से समझ लिया है । तिब्बत वापस लौटने के बाद वे एक सरकार कर्मचारी बन गये । पिछले दसेक सालों में वे स्थानीय हान जातीय कार्यकर्ताओं के साथ काम करते हैं । त्सतान ने कहा कि उन्होंने अपनी आंखों से देखा है कि हान जातीय कार्यकर्ता तिब्बती जातीय लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण रुप से आदान प्रदान करते हैं । 

हमारी कांऊटी एक पशुपालन प्रधान क्षेत्र है , शिक्षा काफी पिछड़ी है । सहायता करने आये हान जातीय कार्यकर्ता गांव गांव जाकर स्थानीय जन समुदायों के साथ सम्पर्क करते हैं ।

तिब्बत के विकास को बढावा देने के लिये चीनी केंद्रीय सरकार ने क्रमशः पांच बार तिब्बत कार्य संगोष्ठियां बुलायीं और तिब्बत के तेज विकास के लिये सिलसिलेवार उदार नीतियां व कदम उठा दिये , जिस से तिब्बत के आर्थिक विकास व सामाजिक प्रगति को प्रबल रुप से बढावा दिया गया है , तिब्बत की विभिन्न जातियों का जीवन स्तर बड़ी हद तक उन्नत हुआ है और तिब्बत की विभिन्न जातीय जनता का समान स्वशासित अधिकार सुनिश्चित हो गया है ।

चीनी तिब्बती विद्या अनुसंधान प्रतिष्ठान के अनुसंधानकर्ता ल्येन श्यांग मिन ने संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि तिब्बत में सभी जातियों के बीच सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व की जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उस की देन चीन सरकार की सिलसिलेवार जातीय उदार नीतियों को जाती है । हमारे देश में विभिन्न जातियों के बीच समानता , एकता और सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित ही नहीं , बल्कि सामाजिक जीवन में सभी जातियां साथ मिलकर सामंजस्यपूर्ण मातृभूमि का निर्माण करने को संकल्पबद्ध भी हैं ।

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