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शांतिपूर्ण मुक्ति तिब्बत में सामाजिक प्रगति की प्रेरणा
2011-05-20 15:49:17

23 मई को चीन के तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति की 60वीं सालगिरह है। इन दिनों, तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों में नाना प्रकार के रूपों में तिब्बत के इतिहास को बदल देने वाली इस महान घटना की समृति में खुशियां मनायी जा रही हैं। विशेषज्ञों के शब्दों में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति इतिहास की धारा के अनुकूल है और उस ने तिब्बत में सामाजिक प्रगति के लिए आधार तैयार किया है।

23 मई 1951 को चीन की केन्द्रीय सरकार और तत्कालीन तिब्बती स्थानीय सरकार के बीच पेइचिंग में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के तरीकों के बारे में एक समझौता संपन्न हुआ, इसतरह तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति घोषित हुई है। इस महान घटना की चर्चा में चीनी तिब्बतविद्या अध्ययन केन्द्र के प्रधान, डाक्टर चांग युन ने कहा कि वर्ष 1950 में चीनी जन मुक्ति सेना तिब्बत की ओर अभियान करने को तैयार हुई थी, लेकिन तिब्बत की ठोस स्थिति के मुद्देनजर केन्द्रीय सरकार ने तिब्बती स्थानीय सरकार को पेइचिंग में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में विचार विमर्श के लिए प्रतिनिधि भेजने की अनेक बार सूचना दी।

तत्काल, तिब्बत मामले में साम्राज्यवादियों के हस्तक्षेप हो रहे थे, इसलिए तिब्बत सवाल के निपटारे के लिए चीनी सैनिक तैनाती जरूरी थी। फिर भी अध्यक्ष माओ ने राजनीतिक तरीके से तिब्बत सवाल को हल करने पर बल दिया और उन्होंने कहा कि राजनीतिक समाधान प्राथमिक विकल्प है। इसने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के लिए आधार बनाकर रख दिया। राजनीतिक समाधान के बारे में केन्द्रीय सरकार ने कई पहलुओं पर ध्यान दिया था, यानी कम से कम नुकसान हो, हान और तिब्बत जातियों के बीच एकता को आंच न पहुंचे और साम्राज्यवादियों को तिब्बत को चीन से अलग कराने का मौका न दें।

किन्तु तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के लिए केन्द्रीय सरकार की नीतियों पर अमल करने में तिब्बत के उच्च वर्गीय प्रतिक्रियावादियों और साम्राज्यवादियों ने बाधा डाली। उन के उकसाव से तिब्बत की तत्कालीन स्थानीय सरकार ने तिब्बत के पूर्वी भाग के छांगतु इलाके में चीनी जन मुक्ति सेना के खिलाफ लड़ने के लिए सेना भेजी, परिणामस्वरूप, तिब्बती सेना को भारी हार का मुंह खाना पड़ा।

आगे चलकर केन्द्रीय सरकार और तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में केन्द्र की नीतियों तथा जातीय एकता की नीतियों से प्रभावित होकर 1951 में तिब्बती स्थानीय सरकार के प्रतिनिधि केन्द्रीय सरकार के साथ वार्ता के लिए पेइचिंग आये, उन्होंने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति समझौते पर हस्ताक्षर किया जिस की कुल 17 धाराएं हैं। श्री चांग युन ने कहा कि इन धाराओं में तिब्बत की विशेषताओं का पूरा ख्याल लिया गया। इस पर उन्होंने कहाः

समझौते में भूदास व्यवस्था वाली स्थानीय तिब्बत सरकार यानी खाशा प्रशासन बरकरार रखे जाने का प्रावधान था और उस के अधिकारियों के पद भी नहीं बदले गए। पर समझौते में यह भी बताया गया था कि तिब्बत में सुधार की आवश्यकता है। सुधार के समय के बारे में समझौते में कहा गया कि जब तिब्बत के ऊपरी कुलीन वर्ग और निचले वर्गों के आम लोग सुधार करने के लिए तैयार हुए, तो उसी समय सुधार पर अमल किया जाएगा। इस के अलावा केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत को आर्थिक, सांस्कृतिक व अन्य क्षेत्रों के विकास में सहायता देने का वचन भी दिया।

तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर के बाद दलाई लामा ने केन्द्रीय सरकार के अध्यक्ष माओ त्सेतुंग के नाम तार भेजकर कहा कि वे और तिब्बत के विभिन्न तबके इस समझौते का समर्थन करते हैं। लेकिन राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित शासन वाली सामंती भूदास व्यवस्था को बदला जाने के भय से तिब्बत के कुछ उच्च स्तरीय प्रतिक्रियावादियों ने मार्च 1929 में उपद्रव किया था, इसके बाद दलाई गुट विदेश में भाग निकला।

केन्द्रीय सरकार ने जनादेश के मुताबिक तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार चलाया और भूदास व्यवस्था को खत्म कर दिया जिस से तिब्बत में उत्पादन शक्तियां बंधन से मुक्त हुईं । इस के पश्चात् तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के चलते तिब्बती जनता को अपने प्रदेश के मामलों के स्वयं इंतजाम का अधिकार प्राप्त हुआ, आर्थिक व सामाजिक विकास में छलांग की प्रगति हुई। वर्ष 2010 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का सकल उत्पादन मूल्य 50 अरब य्वान से अधिक हुआ, जो 1951 से सौ गुना ज्यादा है, सभी गरीब किसान व चरवाह परिवारों को नया सुविधापूर्ण आवास मिला है, जनसंख्या की औसत आयु मुक्ति के समय के साढ़े 35 साल से बढ़ कर 67 साल हो गयी, तिब्बती भाषा में अध्ययन, उपयोग व संरक्षण और विकास पर बड़ा ध्यान दिया गया, धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता का पूर्ण सम्मान किया जाता है तथा भक्तों की धार्मिक कार्यवाहियों की पूरी तरह रक्षा की जाती है।

चीनी तिब्बतविद्या अनुसंधान केन्द्र के विद्वान श्री ली तेछङ ने कहा कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति ने तिब्बत में सामाजिक प्रगति के लिए मजबूत नींव डाली है और उस का गहरा महत्व व प्रभाव होता है। उन्होंने कहाः

पहले, तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद तिब्बत मामलों में दखलंदाजी करने तथा तिब्बत को चीन से अलग करने वाली पश्चिमी शक्तियों को पूरी तरह बाहर निकाला गया। दूसरे, वहां की जनता के अपने भाग्य का स्वामी बनने के लिए राजनीतिक आधार बनाया गया और लोकतांत्रिक सुधार के बाद विश्व में भूदास व्यवस्था को रद्द करने का सब से व्यापक आंदोलन चला तथा सामंती शासन तंत्र का अंत कर दिया गया। तीसरे, देश की अन्य जातियों की भांति तिब्बती जाति भी प्रगति व विकास के रास्ते पर चल निकली।

तथ्यों से साबित हुआ है कि 60 साल पहले संपन्न हुए तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के समझौते का सब से बड़ा महत्व इस में है कि इस के चलते तिब्बत सामंती भूदास व्यवस्था से निजात होकर समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत आया और तिब्बत में गरीबी व पिछड़पन से छुटकारा कर खुले व समृद्ध सभ्यता में परिणत होने का युगांतरकारी छलांग हुआ और सचे माइनों में मानवीय करिश्मा रचा गया है।

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