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जनरल छन ब्येनते की अमेरिका यात्रा
2011-05-17 16:21:57

अमेरिकी ज्वाइंट चीफ आफ स्टाफ के अध्यक्ष मैकल.मलेन के निमंत्रण पर चीनी केन्द्रीय सैनिक आयोग के सदस्य, चीफ आफ जनरल स्टाफ छन ब्येनते के नेतृत्व में चीनी जन मुक्ति सेना का उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल 15 से 22 मई तक अमेरिका की औपचारिक यात्रा कर रहा है। सात साल बाद जनरल छन ब्येनते की मौजूदा अमेरिका यात्रा पर दोनों देशों की सरकारें और सेनाएं बड़ा ध्यान देती हैं और उस पर अमेरिकी मीडिया का भी व्यापक ध्यान हुआ है।

छन ब्येन ते की रहनुमाई में चीनी सैनिक प्रतिनिधि मंडल के 24 सदस्य 15 मई को वाशिंगटन पहुंचे थे, स्थानीय समय के अनुसार 16 तारीख को प्रतिनिधि मंडल ने विर्जिनिया स्टेट में स्थित प्रथम अमेरिकी राष्ट्रपति वाशिंगटन के पुराने निवास और वाशिंगटन सीडी का दौरा किया और अमेरिकी सेना के ज्वाइंट चीफ आफ स्टाफ के अध्यक्ष मलेन द्वारा दी गयी पारिवारिक दावत में भाग लिया। उसी दिन की रात, चीनी जन मुक्ति सेना और अमेरिकी सेना के बैंडों ने केनेडी आर्ट सेन्टर में प्रथम बार संयुक्त संगीत कार्यक्रम पेश किया और श्री छन ब्येन ते और मलेन दोनों ने संगीत कार्यक्रम का आनंद उठाया। स्थानीय समय के अनुसार 17 तारीख को श्री मलेन फार्ट मेएर्स में चीनी सैनिक प्रतिनिधि मंडल के स्वागत में सलामी दल की रस्म आयोजित करेंगे। 18 तारीख को चीनी सेना के जनरल छन ब्येन ते अमेरिकी रक्षा मंत्री गेट्स, विदेश मंत्री हिलेरी, ह्वाइट हाउस के सुरक्षा सलाहकार डोनिलुन आदि वरिष्ठ अधिकारियों और अनेक सांसदों से मुलाकात करेंगे और अमेरिकी प्रतिरक्षा युनिवर्सिटी में बयान देंगे। इस के बाद वे लोग अमेरिका के कुछ सैनिक अड्डों व ट्रेनिंग केन्द्र का दौरा करेंगे।

अमेरिकी सेना के लिए चीनी सेना के प्रतिनिधि मंडल की मौजूदा यात्रा भारी प्रगति का मायना रखता है। क्योंकि पैंटागन चाहता है कि चीनी सेना के प्रतिनिधि मंडल की यात्रा से दोनों देशों के सैनिक संबंधों में बड़ी प्रगति आए। अमेरिकी मीडिया ने एक अमेरिकी सैन्य अफसर के हवाले से कहा कि मलेन की अपेक्षा है कि इस से चीन के साथ और ज्यादा मिलने वाली व्यवस्था कायम हो, यानिकि नियमित तेटीफोन संपर्क स्थापित हो जाए ताकि दोनों पक्षों के संबंधों में थोड़ी बहुत तरक्की हो सके। इस उच्च अधिकारी ने कहा कि क्षेत्र और सारी दुनिया की आशा है कि अमेरिका और चीन की सेनाएं एक प्रकार की ऐसी व्यवस्था कायम करेंगी जिस से परस्पर विश्वास कायम हो और एक दूसरे के प्रति पारदर्शी हो। इस प्रकार की व्यवस्था की मौजूदगी में यदि कोई गलतफहमी पैदा हुई, या छोटी मोटी घटना हुई, तो भी उन्हें नियंत्रण में रखा जा सकता है। अमेरिकी सेना के अफसरों का कहना है कि उन का मुख्य लक्ष्य चीनी सेना के साथ आदान प्रदान का माध्यम कायम हो, वरना, प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा के मसले पर छुटमुट टक्कर होने से भी बड़े संकट का खतरा उत्पन्न हो सकेगा। चीनी सेना के प्रतिनिधि मंडल की यात्रा चीन अमेरिका संबंधों की पुनः बहाली की स्थिति में हुई है, अमेरिका चाहता है कि इस मौके का लाभ उठाकर इन सालों में थाईवान को हथियारों की बिक्री और चीनी सेना की शक्ति के बढ़ने के सवाल को लेकर चीन अमेरिका संबंधों में आए तनाव को शिथिल बनाया जा सके।

अमेरिकी मीडिया का मत है कि जनरल छन ब्येनते की मौजूदा अमेरिका यात्रा दोनों देशों की सेनाओं के बीच संबंधों के सुधार का एक आसार है, दोनों में आदान प्रदान का लक्ष्य दोनों सेनाओं के बीच आपसी अविश्वास की स्थिति को बदलना है। वाशिंगटन पोस्ट ने कहा कि मौजूदा यात्रा दो बड़े देशों की सेनाओं के बीच ठंडे हुए संबंधों में फिर से सुधार आने का नवतम लक्षण है। अखबार ने अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ के हवाले से कहा कि उच्च स्तरीय सेनाओं में संपर्क कायम करने की कोशिश का अर्थ है कि अमेरिका चीन संबंध में स्थायित्व की कमी है और दोनों पक्षों की सेनाएं समझ गयी हैं कि दोनों पक्षों के लिए सब से बड़ा हित सहयोग में है।

पिछले साल के शुरू में अमेरिका ने थाईवान को 6 अरब 30 करोड़ डालर के हथियार बेचने का एलान किया था, इसके बाद चीन ने चीन अमेरिका के बीच सैनिक आवाजाही बन्द कर दी। इस साल से दोनों सेनाओं के संबंध धीरे धीरे सामान्य रास्ते पर लौट आये। पिछले महीने में अमेरिकी प्रशांत कमान के कमांडर रोबर्ट.विलार्ड ने अमेरिकी कांग्रेस की एक सुनवाई में कहा कि वर्ष 2011 में चीन का रूख उतना सख्त नहीं रहा। अधिकांश अमेरिकी अधिकारियों का भी मानना है कि चीनी राष्ट्राध्यक्ष हु चिनथाओ की जनवरी अमेरिका यात्रा के बाद चीन अमेरिका संबंधों में गर्मी आने लगी है। इस साल की शुरूआत में अमेरिकी रक्षा मंत्री गेट्स ने चीन की यात्रा की थी, जो संबंधों में गर्मी आने का स्पष्ट संकेत है। इस के बाद दोनों सेनाओं के बीच विभिन्न स्तरों पर आवाजाही चलती रही। खास कर निकट दिनों में दोनों पक्षों ने रणनीतिक व आर्थिक वार्तालाप के ढांचे में प्रथम रणनीतिक सुरक्षा वार्ता हुई, जिस में एशिया प्रशांत मामलों पर आपसी सलाह मशविरा आरंभ करने पर समहति प्राप्त हुई, जो दोनों सेनाओं में आदान प्रदान की एक बड़ी उपलब्धि है। बेशक, दोनों सेनाओं के संबंधों के निकट आने की बात आसान नहीं है और थाईवान को हथियार बेचना फिर भी चीन अमेरिका के सैनिक संबंधों के विकास में सब से बड़ी बाधा है। अमेरिका को चीन की सैनिक शक्ति के बढ़ने पर भी आशंका है। इसलिए दोनों सेनाओं के संबंधों में सुधार क्रामिक होना चाहिए और दोनों में परस्पर समझदारी व विश्वास बढ़ाना चाहिए।

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