अल कायदा के सरगना बिन लादेन को पाकिस्तान के भीतर अमेरिकी सेना द्वारा मारे जाने के बाद इस पर पाक सेना बराबर मौन साधे रखती रही है। विभिन्न पहलुओं से आयी आशंकाओं को लेकर पाक सेना ने 5 मई को मीटिंग बुलाकर बिन लादेन मारे जाने की घटना का आकलन किया। पाक सेना ने माना कि पाक सेना की संबंधित गुप्तचर सूचना जुटाने में कमी मौजूद है। इस के साथ ही उस ने पाकिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या को निम्नतम घटाने का फैसला भी किया है।
बिन लादेन मारे जाने के बाद अमेरिका के इस फौजी अभियान को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में आशंकाएं पनपी हुई हैं। अमेरिकी पक्ष ने पाक की निन्दा करते हुए कहा कि उस ने आतंक विरोधी संघर्ष में पर्याप्त प्रयास नहीं किया, जबकि पाक मीडिया ने आरोप लगाया कि अमेरिकी हैलिकोप्टरों ने पाक की अनुमति लिए बगैर पाक में जो कार्यवाही की थी, वह पाक की प्रभुसत्ता का अतिक्रमण करने के बराबर है। मीडिया ने यह भी कहा कि पाक सेना ने मातृभूमि की रक्षा करने का अपना फर्ज नहीं निभाया। ऐसे लोकमतों को लेकर पाक सेना ने 5 मई को एक मीटिंग बुलाकर अमेरिकी सेना के इस आपरेशन का आकलन किया । पाक थल सेनाध्यक्ष अशफाक परवेज क्यानी ने मीटिंग के बाद बयान जारी कर कहा कि अगर भविष्य में अमेरिका द्वारा पाक प्रभुसत्ता का उल्लंघन करने की जैसी घटना फिर घटित हुई हो, तो पाक पक्ष अमेरिका के साथ फौजी व खुफिया क्षेत्र में सहयोग का पुनः आकलन करेगा। इस के अलावा पाक पक्ष ने पाकिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या को निम्नत्तम कराने का भी फैसला किया।
इसी मीटिंग में पाक सेना ने यह माना है कि पाकिस्तान में बिन लादेन के आवास के बारे में सूचना जुटाने के लिए पाक का काम अपर्याप्त है। लेकिन उसने माना कि पाक सेना के सूचना ब्यूरो ने अल कायदा और उस की शाखाओं पर प्रहार करने में अतूल्य कामयाबियां हासिल की हैं। बीते सालों में करीब सौ अहम अलकायदा सरगनाओं को आईएसआई द्वारा मारे गए या गिरफ्तार किए गए। पाक सेना ने अपने बयान में यह भी कहा कि अमेरिकी सीआईए ने आईएसआई द्वारा मुहैया सुराग के आधार पर बिन लादेन के छिपने की जगह का पता चला है। लेकिन इस के बाद अमेरिका ने पाक को सूचना का साझा करने नहीं दिया जिससे दोनों देशों के खुफिया विभागों के बीच सहयोग के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है, पाक सेना ने इस के बारे में जांच करने का आदेश जारी किया है।
लोकमत का कहना है कि पाकिस्तान को सूचित करने के बिना अमेरिका ने आतंक विरोधी कार्यवाही करने के लिए हैलिकोप्टर भेजे थे, इस से जाहिर है कि पाकिस्तान पर अमेरिका को विश्वास नहीं है। अमेरिकी सीआईए के डायरेक्टर पैनेटा ने अमेरिकी मीडिया के साथ बातचीत में स्वीकार कर लिया कि अमेरिका को डर थी कि कहीं पाक पक्ष लक्षित पक्ष को खबर न पहुंचाए, जिस से आपरेशन विफल हो सकता है, इसीलिए उस ने आपरेशन से पहले पाक को सूचित नहीं किया। अमेरिका के इस प्रकार के अविश्यास पर पाक पक्ष को असंतोष हुआ। ऐसे में उस ने पाक में अमेरिकी सैनिकों की संख्या निम्नत्तम घटाने का जो फैसला लिया है, वह समझ में आता है।
किन्तु कुछ लोगों का कहना है कि पाक सेना की यह पेशकश आम लोगों में अमेरिका का विरोध करने की भावना को शांत करने के मकसद में की गयी है, दरअसल आतंक विरोधी सैनिक सहयोग में अमेरिका-पाक सहयोग को कम किया जाना असंभव है। पहले, पाक सेना ने अपने बयान में तो कहा है कि पाकिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या निम्नतम सीमा तक घटायी जाएगी, किन्तु यह निम्नत्तम सीमा कितनी होगी, इसे नहीं बताया गया, इस तरह उन के भावी सहयोग के लिए गुंजाइश छोड़कर रखी गयी है। दूसरे, दोनों देशों के बीच अफगान सवाल तथा आतंक विरोधी सवाल पर सहयोग करना पड़ेगा। यूंतो बिन लादेन की मौत हुई, किन्तु आतंकवाद की भूमि नहीं उखाड़ी गयी, फिर अमेरिका आफगानिस्तान से सेना हटाना चाहता है, इसलिए उसे सूचना व राजनीति के क्षेत्र में पाक का समर्थन पाने की जरूरत है। उधर, पाक को भी आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका के समर्थन की आवश्यकता है, अतः पाक को अमेरिका व पाक लोकमत के बीच संतुलन कायम करने की कोशिश करनी होगी यानी जहां एक तरफ पाक अमेरिका के साथ सहयोग बनाए रखेगा और वहीं दूसरी तरफ अपने देश के लोगों के क्रोद्धावेश को शांत करने के लिए भी कोशिश करेगा।
जहां तक अमेरिकी सैनिकों की संख्या घटाने का ताल्लुक है, अमेरिकी ज्वाइंट स्टाफ प्रमुख माइक मुलेन ने कहा था कि अमेरिकी सैनिकों की संख्या घटाना अथवा नहीं, वह पाक पर निर्भर करता है, लेकिन अमेरिका को यकीन है कि पाक के साथ सैनिक सहयोग अहम सिद्ध होगा। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी ने भी 5 मई को कहा कि दोनों देशों के संबंध कभी भी सहज नहीं हो पाए है, किन्तु सरकारों, सेनाओं और न्याय संस्थाओं में दोनों का सहयोग जारी रहेगा।