फिलस्तीन राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन यानी फतह और फिलस्तीन इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन यानी हमास समेत फिलस्तीन के विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच 4 मई को मिस्र की राजधानी काहिरा में राष्ट्रीय सुलह समझौता संपन्न हुआ। विश्लेषकों का कहना है कि यह इस बात का द्योतक है कि फिलस्तीन के दो बड़े राजनीतिक दलों यानी फतह व हमास के बीच 4 साल से चले आया संघर्ष समाप्त हो गया है और फिलस्तीन में आंतरिक सुलह कायम होने, एकजुट होकर विकास के रास्ते पर चल निकलने तथा फिलस्तीन देश की स्थापना के लिए आशा की किरणें निकली हैं।
खबरों के अनुसार फतह के नेता, फिलस्तीनी राष्ट्रीय सत्ताधारी संस्था के अध्यक्ष अब्बास और हमास के पोलित ब्यूरो के नेता खालिद मेशाअल दोनों हस्ताक्षर रस्म में उपस्थित थे। समझौते के मुख्य विषयों में स्वतंत्र व्यक्तियों से गठित अंतरिम सरकार की स्थापना शामिल है, जो आम चुनाव तथा गाजा के पुनर्निर्माण के लिए तैयारी का काम संभालेगी। समझौते के एक साल बाद फिलस्तीनी राष्ट्रीय सत्ताधारी संस्था के अध्यक्ष व संसद के चुनाव आयोजित होंगे, सुरक्षा मामले के लिए एक सर्वोच्च सुरक्षा कमेटी की स्थापना होगी और इजराइल के साथ वार्ता की जिम्मेदारी फतह पर होगी।
2007 के जून माह में गाजा पर अपना कब्जा कायम करने के बाद हमास जोर्डन नदी के पश्चिमी तट पर तैनात फतह के विरूद्ध मुकाबले की स्थिति में आया। मिस्र की मध्यस्थता में दोनों पक्षों ने 2009 से अनेक बार समझौते की वार्ता की, लेकिन पदों के समीकरण और सुरक्षा बल के इंतजाम के सवाल पर गंभीर मतभेद होने के कारण खास प्रगति नहीं हुई। इस बार आकस्मिक रूप से जो सुलह का समझौता हुआ है, वह आशातीत भी है और वर्तमान परिस्थिति की मुख्य धारा के अनुकूल भी। फिलस्तीनी मीडिया के अनुभवी टिप्पणीकार हेन्ना सिनिओरा ने कहा कि मध्य पूर्व में वर्तमान डांवाडोल स्थिति से फिलस्तीन के नेतागण को मालूम हुआ है कि दीर्घकालीन विभाजन पर जनसमुदाय असंतुष्ट और क्रूद्ध हो उठे, केवल जनइच्छा के अनुसार राष्ट्रीय सुलह प्राप्त करने से ही इजराइल के साथ समानता के आधार पर वार्ता की जा सकती है। अब्बास को भी साफ साफ पता चला है कि अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले, बराक ओबामा मध्य पूर्व मामले पर कोई खास कदम नहीं उठा सकेंगे और अमेरिका इजराइल के कब्जे पर मौन बना रहेगा, ऐसी स्थिति में फिलस्तीन के सामने महज यह विकल्प रह गया है कि वर्तमान दो अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण सालों का लाभ उठाकर संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिए एकतरफा तौर पर फिलस्तीन देश की स्थापना करने की कोशिश करें। इस लक्ष्य के लिए राष्ट्रीय सुलह कायम होना अत्यन्त जरूरी है। वर्तमान में फिलस्तीन के नेतागण और जन समुदाय दोनों आर्थिक निर्माण व राजनीतिक तौर पर देश की स्थापना करने में अपनी शक्ति अर्पित करने को तैयार हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि फिलस्तीन में आंतरिक सुलह कायम होना फिलस्तीन का जनादेश है और वह विभिन्न राजनीतिक दलों में एकता व सहयोग बढ़ाने में मददगार सिद्ध होगा तथा फिलस्तीन के भीतर रूखों के समन्वय और एकीकृत कार्यवाही के लिए हितकारी होगा, जिस के आधार पर गतिरोध में पड़ी फिलस्तीन इजराइल वार्ता पुनः शुरू हो सकेगी और अंत में फिलस्तीन देश की स्थापना एवं फिलस्तीन इजराइल शांति की प्राप्ति भी संभव होगी। विश्लेषकों का यह भी कहना है कि सुलह समझौते पर हस्ताक्षर सिर्फ एक अच्छी शुरूआत है। लेकिन फतह और हमास के बीच विभाजन और राजनीतिक मतभेद दीर्घकालिक रहे है, खास कर दोनों में सशस्त्र झगड़े भी हुए थे, इस से उन के बीच बने घाव और दरार कम समय में नहीं भर सकेंगे। फिलस्तीन के सामने अब भी अनेक चुनौतियां मुहबाने खड़ी हैं। सुलह समझौते पर सुचालू अमल होने के लिए फिलस्तीन के विभिन्न पक्षों को जनहित का ख्याल करते हुए आपस में रियायत देने, रूखों का समन्वय करने तथा बाहर से आने वाली बाधाओं को दूर करने की जरूरत है।
सुलह समझौते पर हस्ताक्षर के बाद जोर्डन नदी के पश्चिम तट और गाजा पट्टी में लोगोंने खूब जश्न मनाया, जबकि इसे लेकर इजराइल में बड़ी चिन्ता और परेशानी पनपी। 27 अप्रैल को जब सुलह समझौते पर आरंभिक सहमति की घोषणा की गयी थी, उसी समय इजराइली प्रधान मंत्री नेतान्याहू ने फतह को चैतावनी देते हुए कहा था कि वे हमास और इजराइल दोनों में से एक चुन लें, इजराइल हमास या हमास की भागीदारी वाली संयुक्त सरकार के साथ संबंध नहीं कायम करेगा। समझौते पर हस्ताक्षर के एक दिन पूर्व भी नेतान्याहू ने अब्बास से अपील की कि वे पूरी तरह सुलह समझौता त्याग दें। इजराइली वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने भी कहा था कि इजराइल हमास को वार्ता से बाहर रोकने के लिए फिलस्तीन पर आर्थिक दबाव डालेगा। फिलस्तीनी विशेषज्ञ सिनिओरा ने कहा कि भावी अल्प समय में फिलस्तीन के सामने विदेशी सहायता घटने की दिक्कत पैदा हो सकेगी और इजराइल तरह तरह की गड़बड़ियां देता रहेगा, लेकिन इस से स्वतंत्रता व स्वालंबन के लिए फिलस्तीन के कदम को नहीं रोका जा सकता।