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भारत के कुछ तबकों में बिन लादेन की मौत पर प्रतिक्रियाएं ठंडी क्यों है?
2011-05-04 16:21:33

इन दिनों अलकायदा के सरगना बिन लादेन की अमेरिकी सेना की गोलीबारी से मृत्यु की घटना पर भारतीय मीडिया में बहुचर्चित विषय बना रहा है। भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री चिदंबरम ने अपने अपने भाषण में लादेन को मारे जाने का स्वागत किया और यह आशा भी जतायी कि इस घटने से प्रेरित होकर मुम्बाई आतंकी हमले के षड़यंत्रकारी को भी पकड़ा जा सकेगा। लेकिन भारत समाज के कुछ तबकों में इस घटना पर प्रतिक्रिया प्रायः ठंडी लग रही है, और धार्मिक संगठन व राजनीतिक दल आम तौर पर मौन बने रहे, खास कर मुस्लिम समुदाय में बहुत ही सावधानी बरतती रही है।

भारत एक बहुधर्मों, बहुजातियों और बहुसंस्कृतियों वाला देश है, जहां एक अरब 20 करोड़ जन संख्या में हिन्दू का अनुपात 82 प्रतिशत और मुस्लिम संप्रदाय व अन्य अल्पसंख्य जातियों की प्रतिशत 15 के करीब है। ऐतिहासिक कारण से भारत नियंत्रित कश्मीर क्षेत्र में वर्षों से मुस्लिम अलगवादी आंदोलन चलता आया है जो भारत सरकार के लिए बड़े सिर दर्द की समस्या बनी है। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद से यहां हिन्दू और मुस्लिम के बीच लगातार मुठभेड़ चलती रही और कभी कभी हिंसक रूप भी ले लिया गया। उदाहरणार्थ, वर्ष 1992 के 6 दिसम्बर में अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़े जाने की घटना हुई, जिस से हिन्दू और मुस्लिम संप्रदायों के बीच बड़े पैमाने पर खूनी दंगा छिड़ा । 26 दिसम्बर 2008 को मुम्बाई में आतंकी हमला हुआ, जिस ने सारी दुनिया को अचंभे में डाला, इन दोनों घटनाओं से लोगों की भारी हताहती हुई । जाहिर है कि भारत देश में जब धर्म और जाति-पांती से कोई अहम घटना हुई, तो उस के बारे में मीडिया आम तौर पर सावधानी का रूख अपनाती है, किसी को भारतीय नागरिकों के इस संवेदनशील स्नायु को दुखित करने का दुस्साहस नहीं है। अलकायदा के नेता बिन लादेन मारे जाने की खबर सुनने के बाद भारत की राजधानी नई दिल्ली के कुछ मुस्लिम छात्रों ने मीडिया संवाददाताओं से बातचीत में कहा, अल कायदा की आतंकवादी कार्यवाही गलत है, चूंकि वह इस्लाम धर्म के मूल सिद्धांत के विरूद्ध है। किन्तु आतंकवादी शक्ति को इस्लाम धर्म के साथ जोड़ देने की कोशिश भी गलत है। असलियत यह है कि अमेरिका आदि पश्चिमी देशों की नीतियों के कारण आतंकवाद की उत्पत्ति हुई है, न कि इस्लाम धर्म से।

भारत देश में हिन्दुओं की जन संख्या सर्वाधिक है, लेकिन उन का अधिकांश भाग भी इस उप महाद्वीप के मूल निवासी नहीं थे, वर्तमान के बहुत से जन समुदाय दूसरी जगहों से यहां आ बसे थे। मध्य युग के बाद मुस्लिम जाति मध्य एशिया में पनपी, जो धीरे धीरे पूर्व की ओर विस्तार करते हुए बढ़ती गयी और 16वीं शताब्दी में वे लोग दक्षिण एशिया उप महाद्वीप में आ बसे, उन्हों ने भारत में मुगल राजवंश की स्थापना की। मुगल काल में बड़ी संख्या में निम्न श्रेणी की हिन्दू जाति के लोगों ने अपना धर्म त्याग कर इस्लाम स्वीकार कर लिया। आधुनिक काल में ब्रितानी उपनिवेशवादियों ने उप महाद्वीप पर अपना अधिकार कायम किया और हिन्दू व मुस्लिम के बीच फूट का बीज बोने की नीति अपनायी, जिस के कारण दोनों संप्रदायों में पैदा हुए तीव्र द्वेष से राजनीतिक झगड़े छिडते रहे जो ब्रितानी शासन के खात्मे तक चलते आए थे। वर्ष 1947 में भारत और पाकिस्तान ब्रिटिश इंडिया से अलग होकर स्वतंत्र हो गए, पर दोनों संप्रदायों में अन्तरविरोध और मुठभेड़ नहीं हल हो पाए। शीत युद्ध के बाद अल कायदा जैसी आतंकी शक्तियां अस्तित्व में आयी और आहिस्ते आहिस्ते भारत की स्थिरता के लिए भी खतरा बन गयी । ऐसे में भारत बड़ी दुविधा की स्थिति में पड़ा, जहां एकतरफ वह अमेरिका द्वारा आतंक विरोध के नाम से अपनी प्रभुसत्ता को आंच पहुंचाने से चौकस रहता है, वहीं दूसरी तरफ वह अमेरिका के हाथों पाकिस्तान को दबाना भी चाहता है और कश्मीर क्षेत्र में अपना स्थान मजबूत करने की कोशिश करता है. भारत के पश्चिम व पूर्व में दो मुस्लिम देश मौजूद हैं, वहीं अपने देश में भी बहुत से मुसलमान लोग रहते हैं, इसीलिए भारत मुस्लिम आंदोलन जैसे सवालों पर हमेशा सावधानी बरतता आया है, ताकि धार्मिक मसले के कारण देश में हलचल न पैदा हो।

हालांकि भारत में हिन्दू व मुस्लिम दो संप्रदायों में अन्तरविरोध तीव्र होता है, किन्तु भारतीय मुस्लिम का कभी अलकायदा जैसी अन्तरराष्ट्रीय आतंकी शक्ति से नाता-वाता नहीं है। अमेरिका में 11 सितम्बर घटना के बाद बहुत से भारतीय मुस्लिम संगठनों ने खुले तौर पर बयान देकर आतंकी हमले की कड़ी निन्दा की और कुछ शक्तियों की आतंवाद सवाल का बेजा इस्तेमाल कर इस्लाम धर्म को कलंकित करने की कुचेष्टा की भर्त्सना की । 10 नवम्बर 2008 को 6 हजार मुस्लिम मूल्लाओं ने हैदराबाद में हिंसा विरोधी सभा बुलायी और एक बयान जारी किया जिस में कुरान के मुताबिक आतंकवाद को एक बड़ा पाप करार कर दिया गया और कहा गया कि आतंवाद मानव सभ्यता को भंग करने वाला अपराध है। भारतीय मुस्लिम अलकायदा आदि की आतंकी कार्यवाहियों का दृढता के साथ विरोध करता है। क्योंकि धार्मिक मुठभेड़ भारत में एक बहुत संवेदनशील सवाल है, इसलिए सभी राजनीतिज्ञ हर खुले मौके पर जरूर इस से बचने की कोशिश करते हैं और अल कायदा की आतंकी कार्य़वाही से संबंधित सवाल की चर्चा में भी आतंकवाद व धार्मिक उग्रवाद को इस्लाम धर्म से अलग करने की हरचंद कोशिश करते है।

बिन लादेन की मौत के बाद कुछ भारतीय मीडिया संस्थाओं ने समीक्षा में कहा कि भौगोलिक स्थिति व इतिहास के लिहाज से भारत और अमेरिका दो भिन्नता वाले देश हैं, आतंक विरोधी मसले पर भारत को अमेरिका के कदम में कदम मिलाने की कतई जरूरत नहीं है। भारत को आतंकवादी शक्ति को आम धार्मिक उग्रवादी संगठन से अलग कर देना चाहिए, देश में धार्मिक एकता बनाए रखने की भरसक कोशिश करनी चाहिए और साथ ही अपनी सतर्कता ऊंची उठाते हुए लादेन की मृत्यु से देश में नये आतंकी हमले को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।

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