अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने पहली मई की देर रात घोषणा की कि अमेरिका के वांछित नम्बर एक अपराधी, 11 सितम्बर घटना के षड़यंत्रकारी, अलकायदा के सरगना बिन लादेन को पाकिस्तान के भीतर अमेरिकी सेना के हाथों मारा गया है। दस सालों तक अथक प्रयासों के बाद अखिरकार अमेरिका ने आतंक विरोधी संघर्ष के नम्बर एक लक्ष्य का सफाचट कर दिया है, जो अन्तरराष्ट्रीय आतंक विरोधी संघर्ष में एक बड़ी घटना और अच्छी प्रगति मानी जाती है। लेकिन लादेन को मारे जाने का यह अर्थ नहीं है कि आतंकवाद का विरोध करने का काम खत्म हो गया हो, उल्टे आतंकवाद के नये रूपांतरण व नयी विशेषता के मुद्देनजर अन्तरराष्ट्रीय समाज को आतंक विरोधी काम में आपसी सहयोग को और अधिक मजूबत करना चाहिए, आतंकवाद की उत्पत्ति के मूल कारण का निवारण करने पर जोर दिया जाना चाहिए।
आतंकवाद वर्तमान में पूरे विश्व के लिए एक समान खतरा है। आतंकवाद की यह सब से बड़ी विशेषता है कि वे बेगुनाह नागरिकों और नागरिक संरचनाओं को निशाना बनाकर हिंसा व आतंकी खौफ डालने से अपना राजनीतिक उद्देश्य सिद्ध करते हैं। आज से दस साल पहले हुई 11 सितम्बर घटना एक ठेठ आतंकवादी हरकत थी । घटना के बाद अमेरिका ने आतंक विरोधी युद्ध का डंका बजाया और बिन लादेन और उस के अल कायदा संगठन का सफाया करने में कोई कसूर नहीं छोड़ा। दस साल बाद कई बार लादेन की मौत की खबर भी आयी थी, किन्तु हर बार वह असत्य साबित हुई। इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने खुद बयान देकर बिन लादेन की मृत्य की पुष्टि की है, यह अल कायदा जैसी आतंकवादी शक्तियों के लिए एक करारी चोट है और अन्तरराष्ट्रीय आतंक विरोधी संघर्ष में प्राप्त एक अच्छी उपलब्धि भी है।
लेकिन लादेन की मौत का यह अर्थ जरूर नहीं है कि अलकायदा और अन्तरराष्ट्रीय आतंकवादी शक्तियों का विनाश हो गया हो। असलियत यह है कि पिछले दस सालों तक चले अमेरिका के नेतृत्व वाले विश्वव्यापी आतंक विरोधी संघर्ष के साथ साथ अल कायदा संगठन में भी ढांचागत परिवर्तन आया है, उन्होंने छुटपुट रूपों में बंट कर यमन, इराक, अल्जीरिया आदि अनेकों देशों में शाखाएं कायम की हैं, लादेन की मौत से अल कायदा में प्रतिशोध करने की भावना भड़क सकेगी। इसके अलावा अल कायदा के छोटे ग्रुपों में बंटने के कारण वास्तव में विभिन्न आतंकी कार्यवाहियों पर लादेन का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं रहा, कहा जा सकता है कि वे सिर्फ एक आध्यात्मिक नेता रह चुके हैं, इसलिए उन की मौत से आतंकवादी शक्ति कमजोर नहीं हो सकेगी। असलियत यह भी है कि अल कायदा में अनेक नए नेता भी उभरे हैं, मसलन् अल कायदा की अरब प्रायद्वीपीय शाखा के प्रमुख अनवार अल अवालक नेटवर्क का बिन लादेन के नाम से मशहूर है, जिसे अमेरिकी राष्ट्रीय आतंक विरोधी एजेंसी अमेरिका का सब से बड़ा खतरा मानती है। बिन लादेन की मौत से यह आशंका भी हुई है कि अल कायदा ज्यादा प्रतिशोध की कार्यवाही कर डालेगा, इसी के मुद्देनजर बहुत से देशों ने अपनी सतर्कता का दर्जा ऊंचा कर दिया है।
असली स्थिति यह है कि अमेरिका द्वारा दस सालों तक आतंक विरोधी संघर्ष चलाये जाने पर भी आतंक विरोधी स्थिति में मूल परिवर्तन नहीं आया है। इस से जाहिर है कि मात्र बल प्रयोग व युद्ध के तरीके से
आतंकवाद का समूल विनाश नहीं किया जा सकता। बहुत से विशेषज्ञों के अनुसार निम्न चर्चित तीन तरीकों से आतंक के खिलाफ संघर्ष चलाना चाहिएः एक, आतंक विरोधी संघर्ष में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया जाए। आतंकवाद समूची मानव जाति का समान दुश्मन है, विभिन्न देशों के बीच कारगर सहयोग करना आतंकवाद का दमन करने के लिए एकमात्र बेहतर रास्ता है। दो, आतंकवाद की उत्पत्ति की भूमि उखाड़ी जाए। आतंकवाद की उत्पत्ति के जटिल कारण है, जिस में हिंसा, भूखमारी, गरीबी, उग्रवाद और सामाजिक विषमता जैसे सामाजिक कारण शामिल हैं, जब तक ये कारण मौजूद रहेंगे, तब तक आतंकवाद की उत्पत्ति का जन आधार तथा संभावना बनी रहेगी। तीन, आतंकवाद पर प्रहार करने में दुहरी मापदंड से बचना चाहिए। बेगुनाह नागरिकों व नागरिक उपयोगी संस्थापनों को निशाना बना कर हमला करने की सभी कार्यवाहियां आतंकवादी कार्यवाही में गिनी जानी चाहिए। कुछ पश्चिमी देश आतंक विरोधी मसले पर दुहरी मानदंड अपनाने के इच्छुक हैं, वे दूसरे देशों के आतंक विरोधी संघर्ष पर अनुचित टीका-टिप्पणी करते अथकते हैं, यहां तक कि आतंक विरोध के नाम पर अपनी उल्लू सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, उन की ये हरकत अन्तरराष्ट्रीय आतंक विरोधी संघर्ष के लिए अहितकर है और सिर्फ आतंकवादी शक्तियों की हेकड़ी बढ़ा सकते हैं।