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ब्रिक्स से विश्व अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व राजयनिक ढांचा बदलेगा
2011-04-21 15:50:22

ब्रिक्स देशों की तीसरी शिखर वार्ता चीन के सानया में समाप्त हुई। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका पांच ब्रिक्स देशों के उत्थान से विश्व की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व राजनयिक ढांचा अवश्य ही बदलेगा।

विश्व वित्तीय संकट से विकसित पश्चिमी देशों की कुछ मूल कमजोरियां प्रकट हुईं जिस से साबित हुआ है कि पश्चिम की लोकतंत्र प्रणाली एवं आर्थिक स्वतंत्रता सर्वोपयोगी और अजेय नहीं होती है। यद्यपि पश्चिमी देशों की श्रेष्ठता अभी अपरिहार्य है, तथापि व्यापक मान्य हुई वार्शिन्टन सहमति के चलते बड़े पैमाने वाला आर्थिक संकट भी नहीं बचेगा और वह विश्व में विकास का एकमात्र सही फार्मुला भी नहीं बन सकेगा।

21वीं शताब्दी के पहले दशक में चीन के आर्थिक विकास ने तेज गति पकड़ी। 2001 से लेकर 2010 तक चीन की जीडीपी विश्व की जीडीपी में 4.1 प्रतिशत से उन्नत होकर 8.8 फीसदी तक पहुंची, इस दौरान अमेरिका की जीडीपी विश्व की 32.1 प्रतिशत से घटकर 23.5 रह गयी और जापान की प्रतिशत 12.5 से नीचे आकर 8.2 प्रतिशत हो गयी।

अपने विकास के लिए चीन ने न तो पूर्व सोवियत संघ का रूप अपनाया, न ही पश्चिम का फार्मूला, उस ने नए रास्ते की खोज निकाली है।

चीन ने अमनचैन व एकता के आधार पर आर्थिक विकास को केन्द्रित बनाने का रास्ता अख्तियार कर लिया है। सरकार अहम मामले के लिए देश की शक्तियों को केन्द्रित कर देती है, साथ ही प्रबल रूप से बाजार व योजना दोनों की श्रेष्ठता का सहारा ले लिया जाता है। इस के अलावा चीनी जनता मेहनती और बुद्धिमान है और उनमें शिक्षा का स्तर तेजी से उन्नत भी हुआ है और उन्होंने विदेशों की समुन्नत तकनीकों और प्रबंध अनुभवों का लाभ भी ले लिया है, फलस्वरूप चीन का विकास आश्चर्यजनक बन गया।

चीन के पुनरूत्थान से अन्य देशों के विकास को भी प्रेरणा मिली । ब्रिक्स देशों में रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की श्रेष्ठता उन के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों पर रहती है, वे चीन के साथ एक दूसरे के पूरक बने हैं। भारत ने पिछली सदी के नब्बे वाले दशक से चीन के खुलेपन व उदारता से रू ब रूब करते हुए भारी प्रगति प्राप्त की है।

ब्रिक्स के पांच देशों की कुल जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 43 प्रतिशत बनती है, उन की जीडीपी का विश्व की जीडीपी में अनुपात 2001 की 9 प्रतिशत से बढ़कर 2010 में 17 फीसदी बन गया। अनुमान है कि अगले दशक तक चीन की जीडीपी अमेरिका से आगे निकलेगी, ब्रिक्स के अन्य चार देशों को मिलाकर ब्रिक्स के पांच देशों की कुल जीडीपी विश्व में 30 प्रतिशत से अधिक होगी, इसतरह वह विश्व का सब से बड़ा आर्थिक समुदाय बनेगा।

ब्रिक्स के पांच देशों के तेज विकास में चीन की सफलता व भूमिका ने योगदान दिया है। फिर भी चीन और अन्य चार देशों में विकास के दौरान बहुत सी कमजोरियां और समस्याएं देखने को मिली हैं।

विकसित पश्चिमी देशों की तुलना में ब्रिक्स देशों की नागरिक आय संतुलित नहीं है और भ्रष्टाचार व सामाजिक अन्याय के मामले खासे दिखते हैं। विश्व की दूसरी अर्थव्यवस्था बन चुके चीन में औद्योगिक ढांचा ज्यादा ऊर्जा व कच्चे मालों के खपत पर आश्रित है और वहां ऊर्जा की प्रयोग दर काफी नीची है।

चीन ने समझ लिया है कि ऊर्जा और पर्यावरण जैसी समस्याएं आर्थिक विकास के लिए मुख्य बाधा बनी हैं। इस साल से शुरू अपनी नयी पंचवर्षीय योजना के तहत चीन आर्थिक विकास के तौर तरीकों में बदलाव तेज करेगा और वैज्ञानिक रूप से सृजन की नयी स्थिति बनाने पर प्राथमिकता देगा। भावी पांच साल चीन के निरंतर आर्थिक विकास के लिए कुंजीभूत काल होगा। चीन को आर्थिक ढांचागत सुधार में तकनीकों का स्तर उन्नत करने, ऊर्जा व कच्चे मालों की प्रयोग दर ऊंचा करने तथा पूंजी निवेश की क्षमता व सामाजिक समानता बढ़ाने पर जोर लगाना चाहिए।

चीन के अनवरत विकास की सफलता अपने देश का अन्दरूनी मामला ही नहीं, बल्कि इस का अन्य नवोदित विकासशील देशों के भविष्य से भी संबंध है। यदि चीन सफल हुआ, तो ब्रिक्स देशों को सफलता की उम्मीद और अधिक बंधेगी ।

ब्रिक्स देशों की तीसरी शिखर वार्ता में यह बताया गया है कि जी-20 के ढांचे में वे मौसम, संसाधन, ऊर्जा तथा खाद्य सुरक्षा आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाएंगे। यह अनुमान किया जा सकता है कि निकट भविष्य में विश्व अर्थव्यवस्था को डावांडोल होने से रोकने, गरीबी व भूखमरी मिटाने, मौसम परिवर्तन से निपटने और सहस्राब्दी विकास लक्ष्य प्राप्त करने में ब्रिक्स देश अपना विशेष योगदान देंगे।

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