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ब्रिक देशों की शिखर वार्ता पर बड़ी आशा
2011-04-13 16:45:04

श्रोता दोस्तो , ब्रिक देशों की तीसरी शिखर वार्ता 14 अप्रैल को चीन के सानया शहर में हो रही है । मौजूदा वार्ता पर विविधतापूर्ण आशाएं बांधी हुई हैं , विभिन्न पक्ष आशा करते हैं कि यह वार्ता अहम व सकारात्मक सफल होगी । चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के अंतर्राष्ट्रीय सवाल विशेषज्ञ ये हाई लिन का मानना है कि हालांकि भिन्न भिन्न देशों के हित और मांग अलग अलग हैं , पर उन्हें समान आशा यह है कि ब्रिक देश साथ मिलकर एक ही आवाज उठायेंगे ।

ये हाई लिन ने कहा कि एक आर्थिक सहयोग तंत्र की स्थापना के लिये सर्वप्रथम समान हित निश्चित करना आवश्यक है । इधर सालों में वास्तुगत स्थिति की वजह से ब्रिक देशों ने काफी ज्यादा नैतिक समानताएं अभिव्यक्त की हैं । 

मसलन लीबिया सवाल पर पांच ब्रिक देशों में किसी ने नाटो का समर्थन नहीं किया है । अब कुंजीभूत सवाल यह है कि इसी प्रकार की समानता को समन्वित कर विभिन्न पक्षों की समान कार्यवाही का रुप दिया जायेगा । पांच ब्रिक देश समान हित और समझ के आधार पर सजग रुप से अपना रुख समन्वित कर एक ही आवाज करते हैं , यह इधर सालों में ब्रिक देशों की अत्यंत बड़ी प्रगति ही है ।

ब्रिक देशों की प्रादेशिक भूमि सारी पृथ्वी का तीस प्रतिशत है और जनसंख्या सारी दुनिया की कुल जनसंख्या का 42 प्रतिशत है । नवोदित आर्थिक समुदायों का प्रतिनिधि होने के नाते ब्रिक देशों के सहयोग की संभावना विशाल है । मौजूदा वार्ता में विभिन्न पक्ष अपनी आशा व मांग लेकर आये हैं ।

ब्राजिल को उम्मीद है कि ब्रिक देशों के सहारे अन्य नवोदित देशों के साथ सहयोग मजबूत होगा और भूमंडलीय उत्पादन श्रृंखला में शामिल होगा । रूस इस तंत्र में अपनी भूमिका निभाने और अपना अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव बढाने पर आशाप्रद है । भारत अन्य ब्रिक देशों के नेताओं के साथ अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग पर विचार विमर्श करने को तैयार है । दक्षिण अफ्रीका इस मौके का फायदा उठाकर अफ्रीकी देशों के हितों की रक्षा करने पर आशा संजोये हुए है । जबकि चीन यह आशा रखता है कि ब्रिक देश इस वार्ता के जरिये अंतर्राष्ट्रीय मामलों में मध्यस्थता बिठाकर विभिन्न क्षेत्रों में सार्थक सहयोग को और विस्तृत कर देंगे ।

ये हाई लिन का विचार है कि इसी प्रकार वाली बहुपक्षीय प्रक्रिया में भाग लेने के लिये हरेक ब्रिक देश का हित व मांग अलग अलग है । अतः ब्रिक देशों के बीच मतभेद फिर भी मौजूद हैं । इसी वास्तविक स्थिति को मान्यता देने पर भी भिन्न भिन्न मांगों को एक ही मंच पर रखकर आदान प्रदान व विचार विमर्श किया जा सकता है । पर ब्रिक देशों के बीच बहुत ज्यादा समान हित व मांग और अभिलाषाएं देखने को मिलती हैं । 

और अधिक युक्तिसंगत अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना पांच ब्रिक देशों को एक साथ जोड़ने की प्रमुख प्रेरक शक्ति है । चीन को उम्मीद है कि पांच ब्रिक देश समानताओं की खोज कर पांच ब्रिक देश तंत्र को और अधिक स्थायीकरण व नियमितकरण बनाने की कोशिश करेंगे ।

यह वार्ता चार ब्रिक देशों का विस्तार करने के बाद आयोजित प्रथम शिखर वार्ता है । विश्व के दूसरे बड़े आर्थिक समुदाय और मौजूदा अध्यक्ष देश की हैसियत से ब्रिक देशों में चीन की भूमिका अत्यंत ध्यानाकर्षक है । ये हाई लिन ने कहा कि ब्रिक देशों का नेता बनने का चीन का इरादा नहीं है , क्योंकि यह हमारे हित के अनुकूल नहीं है और हमारी नीति भी नहीं है । चीन वार्ता , शांति और समन्वय बढाने में भूमिका निभाना चाहता है ।

चीन एक बाहर उम्मुख आर्थिक देश है , उस का अर्थतंत्र बाहर पर निर्भर रहता है , इस से चीन और भारत , रुस , ब्राजिल , यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका के बीच बहुत ज्यादा फीताएं मौजूद हैं , जबकि इसी प्रकार की फीताएं अन्य ब्रिक देशों के बीच साफ साफ देखने को नहीं मिलती हैं । चीन कच्चे मालों का बड़ा आयातित देश ही नहीं , उत्पादनों का बड़ा निर्यातित देश भी है । ब्रिक देश तंत्र के भीतर चीन अपनी भूमिका निभाएगा , यह हमारा फर्ज है । हम इसी तंत्र में और अधिक सकारात्मक भूमिका निभाने को तैयार हैं , क्योंकि हम उक्त चार देशों के साथ घनिष्ट व्यापार सम्पर्क बना लेते हैं , इस व्यापार सम्पर्क से चीन को अन्य ब्रिक देशों के साथ जोड़ने का प्रोत्साहन मिला है , जिस से ब्रिक देश विश्वव्यापी व्यापार में और बड़ा प्रभाव डालेंगे ।

कुछ विशेषज्ञों का यह मानना भी है कि ब्रिक देशों की तीसरी शिखर वार्ता विश्व को भूमंडलीय राजनीतिक व आर्थिक तंत्र में नवोदित आर्थिक समुदायों के प्रभाव व भूमिका पर ध्यान जगा देगी , जिस से ब्रिक देशों के बीच सहमित व सहयोग को बढाने के लिये फायदेमंद है । ब्रिक देशों की तीसरी शिखर वार्ता विभिन्न पक्षों की प्रतीक्षा में उद्घाटित हो रही है ।

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