दोस्तो , कोरिया गणराज्य व अमरीका के बीच 28 फरवरी को शुरू कुंजीभूत संकल्प नामक संयुक्त युद्धाभ्यास दस मार्च तक जारी रहेगा । कोरिया गणराज्य की मीडिया के अनुसार अमरीकी विमान वाहक पोत मौजूदा युद्धाभ्यास में भाग लेगा । उसी दिन चार दिवसीय जापानी अमरीकी संयुक्त युद्धाभ्यास भी जापान के योकोसुका अड्डे में भी शुरु हो गया । विशेषज्ञों का कहना है कि कोरियाई प्रायद्वीप की परिस्थिति संवेदनशील काल में है , ऐसी स्थिति में युद्धाभ्यास का आयोजन स्पष्टतः उत्तर पूर्वी एशियाई क्षत्रीय सुरक्षा परिस्थिति के लिये लाभदायक नहीं है ।
कुंजीभूत संकल्प नामी अमरीका व कोरिया गणराज्य का वार्षिक नियमित युद्धाभ्यास फौजी उत्तेजना के बजाये रक्षात्मक युद्धभ्यास माना जाता है , यह युद्धभ्यास कोरिया गणराज्य व जनवादी कोरिया का संबंध काफी बेहतर होने पर भी बंद नहीं हुआ । तो मौजूदा युद्धाभ्यास का मकसद आखिर क्या है ?चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय स्कूल के कोरिया सवाल विशेषज्ञ प्रोफेसर चांग ल्येन क्वे ने इस का उल्लेख करते हुए कहा हर बार के युद्धाभ्यास का विषय व मकसद भिन्न होता है , खासकर चालू वर्ष में प्राप्त खबर के अनुसार इस युद्धाभ्यास का प्रमुख उद्देश्य यह है कि यदि जनवादी कोरिया में कोई आकस्मिक घटना होगी , तो इस के मुकाबले के लिये क्या क्या कदम उठाये जाये , जनवादी कोरिया के न्यूक्लीयर हथियारों का निपटारा व नियंत्रण कैसे किया जाये । पर आक्रमणकारी दृष्टि से उन की जनवादी कोरिया पर राजनीतिक दबाव डालने की कोशिश है , जिस से जनवादी कोरिया में कुछ राजनीतिक सुधार आने को बढावा दिया जाएगा , यह उन का एक महत्वपूर्ण इरादा ही है ।
साथ ही जापान व अमरीका के संयुक्त युद्धाभ्यास का मकसद है कि बैलिस्टिक गाइडेड मिसाइल का सामरिक स्तर उन्नत किया जाए और जापानी व अमरीकी फौजी टुकड़ियों के बीच मध्यस्थता बिठायी जाये । जनवादी कोरिया का मिसाइल खतरा बराबर जापान व अमरीका के संयुक्त युद्धभ्साय का महत्वपूर्ण लक्ष्य रहा है । प्रोफेसर चांग ल्येन क्वे ने कहा कि अमरीका ने लगातार कोरिया गणराज्य व जापान के साथ जो बड़े पैमाने वाले युद्धाभ्यास किये हैं , उन का मससद है कि जनवादी कोरिया को डराने धमकाने के साथ साथ इसी क्षेत्र में अपनी ताकतवर फौजी शक्तियां प्रदर्शित की जाये ।
अमरीका , जापान व कोरिया गणराज्य का विचार है कि वर्तमान कोरियाई प्रायद्वीप की परिस्थिति के मद्देनजर जनवादी कोरिया बड़ी राजनीतिक मुश्किल का सामना कर रहा है , वहां पर कुछ बदलाव आने की संभावना है । इसलिये उन्हें चिन्ता है कि जब जनवादी कोरिया में कुछ बदलाव आयेगा , तो परिस्थिति मिसाइल व न्यूक्लीयर हथियार के बेकाबू होन से जापान व कोरिया गणराज्य को कुछ नुकसान पहुंच सके । दूसरी दृष्टि से देखा जाये , तो अमरीका एशिया में वापसी के बाद उत्तर पूर्वी एशिया में अपनी फौजी श्रेष्ठता कायम कर कोरियाई प्रायद्वीप व उत्तर पूर्वी एशिया के विकास का मार्गदर्शन करना चाहता है ।
अमरीका व जापान और अमरीका व कोरिया गणराज्य के बीच युद्धाभ्यासों को लेकर जनवादी कोरिया ने अत्यंत जबरदस्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है । जनवादी कोरिया की सेना ने चेतावनी देते हुए कहा कि युद्धाभ्यास से प्योंगयांग सत्ता को संपूर्ण युद्ध छेड़ने के लिये प्रेरित किया जायेगा , मौके पर कोरिया गणराज्य की राजधानी युद्धाग्नि में पड़ेगी ।
प्रोफेसर चांग का विचार है कि वर्तमान अमरीका व कोरिया गणराज्य के संयुक्त युद्धाभ्यास के प्रति जनवादी कोरिया का रुख सख्त तो है , पर उस की कार्यवाही फिर भी संयमशील है । जनवादी कोरिया व कोरिया गणराज्य के बीच वार्तालाप हुआ है , पर दोनों पक्षों ने इस वार्तालाप को एक सामरिक विकल्प मान लिया है , मामलों पर विचार विमर्श करने का उन का इरादा नहीं है । इस के साथ ही अमरीका जापान व कोरिया गणराज्य के साथ अपने युद्धाभ्यासों और त्रिपक्षीय फौजी गठबंधन के जरिये उत्तर पूर्वी एशियाई सुरक्षा के एकाधिकार को मजबूत बनाने की रणनीति नहीं छोड़ेगा ।
वर्तमान प्रत्यक्ष परिणाम से देखा जाये , फौजी अभ्यास से जनवादी कोरिया को धैर्य से परिस्थिति को समझने और अधिक संयमी रुख अपनाने में मदद मिलेगी । पर दूरगामी दृष्टि से देखा जाये , तो उत्तर पूर्वी एशिया में अमरीका की फौजी मौजूदगी से इसी क्षेत्र में शस्त्रीकरण होड़ और तीव्र रूपधारण लेगी , जिस से अंतर्राष्ट्रीय संबंध और तनावपूर्ण होगा ।