दोस्तो , जापान की यात्रा पर गये भारतीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनन्द शर्मा और जापानी विदेश मंत्री सेजी माहेरा ने 16 फरवरी को क्रमशः अपनी अपनी सरकार की ओर से भारत जापान आर्थिक सहयोग समझौता संपन्न किया । इस समझौते के अनुसार भारत व जापान दोनों देश आगामी दस वर्षों में कदम ब कदम दोनों देशों के कुल व्यापार से जुड़ने वाले 94 प्रतिशत के उत्पादनों पर शून्य सीमा शुल्क लगा देंगे ।
शर्मा ने उसी दिन हुई हस्ताक्षर रस्म की समाप्ति पर मीडिया के सम्मुख कहा कि इधर सालों में भारत के तेज आर्थिक विकास के मद्देनजर विदेशी आर्थिक सहयोग का विस्तार करना अत्यावश्यक है , भारत और अधिक जापानी उपक्रमों से भारत में पूंजी निवेश करने और व्यापारिक गतिविधियां चलाने पर उम्मीद करता है । शर्मा ने भावी तीन चार सालों के भीतर दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार के दुगुना बढने की संभावना भी जतायी । आंकड़ों के अनुसार 2010 में भारत व जापान का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 15 अरब 50 करोड़ अमरीकी डालर तक पहुंच गया , जापान का अनुकूल संतुलन करीब तीन अरब 55 करोड़ अमरीकी डालर रहा । नये संपन्न आर्थिक सहयोग समझौते के अनुसार भावी दस वर्षों में 90 प्रतिशत के जापानी निर्यातित उत्पादनों और 97 प्रतिशत के भारतीय निर्यातित उत्पादनों पर शून्य सीमा शुल्क लगायी जायेगी , जापान भारत में दुर्लभ मिट्टी की खुदाई में भाग लेगा और भारत में विशेष माल ढुलाई रेल मार्गों और नयी दिल्ली से मुम्बई तक पहुचने वाले प्रमुख औद्योगिक मार्ग के निर्माण में हिस्सा भी लेगा । भारत को जापानी निर्यातित वाहनों के कलपुर्जों , लौहा इस्पाती उत्पादनों और मशीनों पर कदम ब कदम शून्य सीमा शुल्क लगायी जायेगी , पर वर्तमान में चावल और गूहू समेत कुछ कृषि उपजें उक्त सीमा शुल्क से वंचित हैं । भारत व जापान दोनों देशों ने 2007 के शुरु में आर्थिक सहयोग समझौते पर वार्ता शुरु की , गत अक्तूबर में भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की जापान यात्रा के दौरान दोनों सरकारों ने इस नये आर्थिक सहयोग समझौते से जुड़े मामलों पर सहमति जतायी । ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत व जापान दोनों देशों ने जो आर्थिक सहयोग समझौता संपन्न किया है , वह देशों के बीच संपन्न साधारण मुक्त व्यापार समझौते के बजाये बड़ी रियायत वाला आर्थिक सहयोग समझौता ही है । इस समझौते के अनुसार भारत व जापान आयातित व निर्यातित मालों पर लगी सीमा शुल्क में कटौती करने के अलावा बौद्धिक संपदा अधिकार , व्यक्तियों के आदान प्रदान और एक दूसरे देश के उपक्रमों को नागरिक दर्जे वाला बर्ताव देने आदि क्षेत्रों में और ज्यादा उदार कदम उठा देंगे ।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत जापान आर्थिक सहयोग समझौते के हस्ताक्षर ने दोनों देशों के संबंधों को एक नयी बुलंदी पर पहुंचा दिया है , साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि भारत जापान आर्थिक सहयोग समझौता केवल इन दोनों देशों की सर्वींगीर्ण रणनीति व सहयोग का एक अंश ही है । नयी सदी में भारत व जापान अपनी अपनी रणनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखकर एक दूसरे की नजदीकी पहुंचने और सहयोग बढाने में तेजी लाये हैं । क्षेत्रीय राजनीतिक दृष्टि से देखा जाये , भारत व जापान के बीच कोई ऐतिहासिक विवाद मौजूद नहीं है , इतना ही नहीं , ये दोनों देश रणनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों में एक दूसरे का बड़ा पूरक भी हैं । हालांकि इधर सालों में भारत का तेज आर्थिक विकास हुआ है , पर समुन्नत तकनीकी क्षेत्र में भारत फिर भी काफी पिछड़ा हुआ है , साथ ही भारतीय आधारभूत संस्थापन कमजोर ही नहीं , मशीनरी उद्योग भी विकसित नहीं है , इसलिये भारत को आर्थिक विकास के दौरान दूसरे देशों के साथ पूंजी निवेश , तकनीक और औद्योगिक हस्तांतरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग करने की सख्त जरूरत है , जबकि जापान इन क्षेत्रों में काफी अग्रसर रहा है । रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में जापान भारत का छठा बड़ा निवेशक देश है , जबकि भारत जापान का सब से बड़ा सहायतार्थ देश ही है , आर्थिक सहयोग समझौते का हस्ताक्षर दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को तेज गति से बढावा देगा ।
आर्थिक संबंध की मजबूती के साथ साथ भारत व जापान का राजनीतिक संबंध भी दिन ब दिन घनिष्ठ बढ़ता गया है । 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधान मंत्री शिन्जो अबे की भारत यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने जारी संयुक्त वक्तव्य में भारत व जापान का रणनीतिक साझेदार संबंध नये दौर में प्रविष्ट करने को कह दिया है । साथ ही भारत व जापान के बीच प्रधान मंत्री स्तरीय वार्षीक वार्ता तंत्र भी बरकरार रहा है , और तो और दोनों देशों के शासनाध्यक्षों ने हर बार की शिखर वार्ता में द्विपक्षीय सहयोग के महत्व पर जोर दिया है । दूसरी तरफ दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सथायी सदस्य देश के मामले पर भी गठबंधन बना दिया है ।
विश्लेषकों का मत है कि इधर सालों में भारत जापान संबंध मजबूत होने का असली कारण यह है कि दोनों देश आर्थिक व तकनीकी क्षेत्रों में एक दूसरे का बड़ा पूरक हैं , जबकि यह पूरक भूमंडलीय आर्थिक बदलाव के साथ साथ और अधिक महत्वपूर्ण ही बनेगा । कहा जा सकता है कि भारत जापान संबंध के घनिष्ट होने का रुझान अबाध्य भी रहेगा ।