भारत और पाकिस्तान ने 10 फरवरी को अलग अलग तौर पर नई दिल्ली व इस्लामाबाद में यह ऐलान किया कि दोनों देशों के बीच आगामी जुलाई से पहले 2008 में टूटी हुई शांति वार्ता पुनः चालू की जाएगी। इस घोषणा ने सारी दुनिया के लोकमतों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है।
भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता 2008 में मुम्बई आतंकी घटना के बाद टूटी। इसे पुनः शुरू करने के लिए दोनों देशों ने इस साल 6 फरवरी को भूतान की राजधानी थिम्पू में विदेश सचिव वार्ता की। वार्ता में भारतीय विदेश सचिव निरुपम राव और पाक विदेश सचिव सल्मान बाशिर ने दोनों देशों के बीच मौजूद सिलसिलेवार सवालों पर निष्कपटतापूर्ण और व्यवहारिक रूप से रायों का आदान प्रदान किया। दोनों पक्ष दोनों देशों के बीच तमाम असुलझे हुए सवालों को हल करने के लिए रचनात्मक वार्ता जारी रखने पर सहमत हुए। यह वार्ता भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले साल के जुलाई में विदेश मंत्रियों की बातचीत की बहाली के बाद आयोजित प्रथम विदेश सचिव स्तरीय वार्ता है, जिस से दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की आगे वार्ता के लिए रास्ता प्रशस्त कर दिया गया है और जिस पर अन्तरराष्ट्रीय लोकमतों का ध्यान आकृष्ट हुआ है।
दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों द्वारा अलग अलग तौर पर जारी किए गए वक्तव्य के मुताबिक पाक विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी अगली जुलाई में भारत की यात्रा पर आएंगे और भारतीय विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा के साथ शांति प्रक्रिया सवाल पर वार्ता करेंगे। अभी विदेश मंत्री स्तरीय वार्ता की तिथि तय नहीं हुई है, किन्तु दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास व्यवस्था की स्थापना के बारे में विदेश सचिव स्तरीय वार्ता जारी रहेगी। दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों ने अपने अपने वक्तव्य में यह भी कहा है कि आने वाले महीनों में आयोजित होने वाली विदेश सचिव वार्ताओं में आतंक विरोध, मानवता, शांति व सुरक्षा, जम्मू-कश्मीर की स्थिति तथा दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण आवाजाही व आर्थिक सहयोग जैसे अनेकों मसलों पर बातचीत होगी।
भारत और पाकिस्तान दोनों भूमि से जुड़े पड़ोसी देश हैं, लम्बे अरसे तक तनाव का संबंध बरकरार रहना दोनों के हित में नहीं होगा। इस के अलावा भारत पाक समस्या दोनों देशों के अलावा अन्तरराष्ट्रीय स्थिति तथा बड़े देशों के संबंधों के परिवर्तन से भी जुड़ी हुई है। इस नयी सदी के शुरू में अमेरिका द्वारा आतंक विरोधी युद्ध छेड़े जाने के बाद पाकिस्तान एक अपरिहार्य रणनीतिक स्थान के कारण मध्य एशिया में तालिबान व उग्रवादी सांप्रदायिक शक्तियों का मुकाबला करने में अमेरिका का सेतुदुर्ग बन गया है। अपने रणनीतिक लक्ष्य के मुद्देनजर अमेरिका पाकिस्तान की परिस्थिति तथा भारत पाक मुठभेड़ के प्रति हस्तक्षेप की नीति अपनाता रहा, वह नहीं चाहता कि मध्य पूर्व व मध्य एशिया में कोई ऐसी समस्या उभरेगी, जो वहां आतंकवाद विरोधी कार्यवाहियों में खलल डाले।
इधर के सालों में भारत का आर्थिक विकास बहुत तेज है और वह विश्व अर्थव्यवस्था में एक नया उभरता सितारा बन गया, इसलिए उस के लिए यदि देश के पश्चिम में एक दुश्मनी रखने वाला देश खड़ा हो, तो वह निश्चय ही एक अप्रिय सवाल होगा। अतः इन सालों में भारत भी अन्तरराष्ट्रीय जगत में अपने के लिए हितकारी राजनयिक वातावरण हासिल करने की निरंतर कोशिश कर रहा है, ताकि वह अपनी शक्ति आर्थिक विकास व देश के सामाजिक समस्याओं के समाधान में लगा सके। वर्ष 2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने बड़े देशों के साथ राजनयिक व्यवहार में भारी सफलता प्राप्त की थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थाई सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं ने भारत की यात्रा की थी और भारत ने उन के साथ बेहतर आदान प्रदान किया है। इस के परिणामस्वरूप भारत को अन्य देशों के साथ संबंधों के निपटारे में अनुकूल स्थिति हाथ लगी। विश्लेषकों का कहना है कि बड़े देशों के साथ दोस्ती बढ़ाने के चलते भारत और ऐसे अन्य देशों के संबंधों में भी सुधार लाया जा सकेगा, जिन के साथ संबंधों में कुछ न कुछ समस्या मौजूद हो। इसका दक्षिण एशिया में तनाव शैथिल्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
फिर भी भारत और पाक के बीच स्थिति का गतिरोध दर्जनों साल बना रहा है, यह गतिरोध अल्पसमय के भीतर पूरी तरह दूर होना भी असंभव है। असलियत यह है कि पिछले 1999 के मई में भी दोनों के बीच कश्मीर के करगिल में तीव्र मुठभेड़ छिड़ा था, फिर भी दोनों देशों के बीच विभिन्न स्तरों पर संपर्क कायम रहा है और दोनों देशों के प्रधान मंत्रियों ने भी अनेक अन्तरराष्ट्रीय मौकों पर भेंटवार्ता की थी। 2008 में मुम्बई आतंकी कांड के बाद भी 2010 के जुलाई में विदेश मंत्री बातचीत हुई। भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि भूस्थिति की दृष्टि से पाकिस्तान भारत का ऐसा पड़ोसी है, जो नकारा नहीं जा सकता है और भारत को पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना होगा। विश्लेषकों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान दोनों को बाह्य दबाव को हल्का करना चाहिए और वार्ता के जरिए शांति कायम करना चाहिए, यह दोनों देशों के दीर्घकालीन हित में है।