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फुंगह्वांग नगर की सैर
2011-01-18 17:20:55

मध्य-दक्षिण चीन के हूनान प्रांत के पश्चिमी भाग में एक बहुत बड़ा तो नहीं, पर बहुत पुराना ऐतिहासिक शहर स्थित है। फूंगह्वांग नामक यह छोटा सा शहर चारों तरफ पर्वतों से घिरा हुआ है। इसका प्राकृतिक दृश्य अपने ही ढंग का है और स्थानीय रीतियों के चलते इसने अपनी विशेष पहचान कायम की है। आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को इस प्राचीन ऐतिहासिक शहर के दौरे पर ले चलते हैं।

फंगह्वांग प्राचीन शहर चीन के सुप्रसिद्ध आधुनिक साहित्यकार व इतिहासकार श्री शन त्सों वन का जन्मस्थान है। पिछले कई हजार वर्षों से यह नगर पर्वतों के बीच छिपा रहा है। चीन के इस प्रसिद्ध साहित्यकार श्री शन त्सों वन ने 60 साल पहले पहली बार सुदूर नगर नामक अपने उपन्यास में इस का चित्रण किया और इस तरह बाहरी लोगों ने इस के जरिये इस प्राचीन नगर का परिचय पाया तो इस का रहस्यमय व शांतिमय वातावरण अनेक लोगों के आकर्षण का केंद्ग बना।

हमारे साथ दौरे पर आयी गाइड श्याओह्वा ने इस शहर का परिचय देते हुए कहा

प्राचीन फुंगह्वान शहर य्वान और मिंग राजवंश कालों में मिट्टी व पत्थरों से बना था , उस समय पूरे शहर की लम्बाई मात्र 2 हजार मीटर थी , जबकि शहर की पुरानी चारदीवारी के पूर्व , दक्षिण , पश्चिम और उत्तर भागों में चार मंडपों रुपी गेट स्थापित हुए थे , हरेक शहरी मंडप का फैसला पांच सौ मीटर था ।

प्राचीन फुंगह्वांग शहर में हमारा पहला पड़ाव है चीनी सुप्रसिद्ध आधुनिक साहित्यकार व इतिहासकार शन त्सों वन का जन्मस्थान है । गाइड श्याओह्वा ने शन त्सों वन के पूर्व निवास की ओर इशारा करते हुए कहा

यह मकान साहित्यकार शन त्सों वन के दादा ने बनवाया था , साहित्याकार शन त्सों वन का जन्म यहां पर हुआ था । वे अपनी 15 उम्र में खानदान का दिवाला होने की वजह से जन्मभूमि को छोड़कर बाहर निकल गये , फिर भटकते भटकते हूनान प्रांत के रुआनश्वी नामक स्थल में सेना में दाखिले हुए , चार साल के बाद अपनी 19 उम्र में पेइचिंग पहुंचकर लेखक का जीवन शुरु हुआ।

शन त्सों वन का पूर्व निवास दक्षिण चीन के चारदीवारी निवास स्थानों की एक ठेठ मिलास है । नक्काशीदार गेट व खिड़कियां बहुत सुदर हैं और पश्चिम हूनान प्रांत की मिंग व छिंग राजवंश कालों की वास्तु शैलियों से युक्त हैं । पूरे निवास में आगे व पिछले दो भाग बटे हुए हैं , दोनों भागों के बीच लाल पत्थरों से बना थ्येन चिंग नामक खुला स्थल है , उस के दोनों तरफ कुल 11 छोटे बड़े कमरे खड़े हुए हैं । ये मकान उन के दादा जी ने 1866 में बनवाये थे । जब 1982 में शन त्सों वन अंतिम बार यहां लौट आये , तो यहां पर काफी लम्बे समय तक रहे ,बाद में मजबूरी से फिर इस स्थल को छोड़कर चले गये ।

पूरे प्राचीन फूंह्वांग शहर में शन कुल को छोड़कर और 24 बड़े खानदानी परिवार भी हैं । इन बड़े खानदानी परिवारों की अपनी अपनी मंदिर भी हैं । तो आइये , अब हम एक बड़े ढंग से संरक्षित यांग कुल के मंदिर को देखने चले ।

साधारण मंदिर में प्रवेश होकर सब से पहले औपेरा मंच नजर आता है , फिर दोनों तरफ औपेरा देखने के लिये कमरे स्थापित हुए हैं , इतना ही नहीं , विशेष तौर पर परिवार के बुजुर्ग लोंगों के लिये सिंगल कमरे भी बनवाये गये हैं । इसी प्रकार के मंदिर में कोई नहीं रहता , सिर्फ महत्वपूर्ण गतिविधियां या कोई अहम निर्णय करने के लिये घरवाले यहां आते हैं । तो इस यांग खानदानी मंदिर और दूसरे साधारण मदिरों के बीच का फर्क यह है कि उस का मुख्य गेट आमने सामने की बजाये बगल में खुला हुआ है , पर चीनी वास्तुशैली की परम्परा के अनुसार मुख्य गेट आमने सामने खुलता है । कारण यह है कि बगल में खुले गेट के सामने ठीक थो च्यांग नदी कल कल करते हुए आगे बह जाती है । चीनी फुंगश्वी के अनुसार श्वी यानी पानी का अर्थ है सपदा , मालामाल , इस से इस खानदान का गेट खुलने का इरादा जाहिर हुआ है ।

प्राचीन फुंगह्वांग शहर में दूसरा चर्चित स्थल है चीनी सुप्रसिद्ध स्याही चित्रकार ह्वांग युंग यू का हरित इमारत नामक बंगला ।

चीनी चित्र कला व लिपि कला के क्षेत्र में ह्वांगयुंगयू का विशेष स्थान है , वे चीन में ऐसे दुर्लभ चित्रकारों की गिनती में आते हैं , जो चीनी स्याही चित्र , तेल चित्र , काष्ठ चित्र , हास्य चित्र व मूर्ति बनाने में अत्यंत निपुर्ण ही हैं । इस के अलावा साहित्य रचने में उन का बड़ा नाम भी है ।

गाइड श्याओह्वा ने कहा कि आप दायं तरफ देखिये , उस पेड के पास एक झूलती इमारत खड़ी हुई है , यह चित्रकार ह्वांग युंगयू का चित्र कक्ष है , वे अकसर वापस लौटर यहां पर चित्र बनाते हैं ।

ह्वांग युंगयू की झुलती इमारत यहां की विशेष स्थानीय वास्तु शैली में निर्मित हुई है ।

थो च्यांग नदी फूंगह्वांग शहर से कलकल करती आगे बहती है। इस नदी का पानी इतना स्वच्छ है कि उस के तल में उगी घास व जंतु तक साफ दिखाई पड़ते हैं। नदी के ऊपरी भाग में निर्मित झूलती इमारतें एक लम्बी कतार में खड़ी नजर आती हैं। प्राचीन फुंगह्वांग नगर की यह भी एक खास पहचान है।

शहर की झूलती इमारतें स्थानीय म्याओ व थू चा जातियों की विशेष जातीय वास्तुशैली में निर्मित हैं। ऐसी एक इमारत का एक छोर नदी तट से सटा होता है, जब कि दूसरा नदी के बीच खड़े दो खंभों पर टिका होता है। एक-दूसरी से जुड़ी ये इमारतें एक ही वास्तुशैली की हैं। ऐसी इमारत में रहने पर आपको शायद यह महसूस हो कि आप एक सुंदर चीनी स्याही चित्र के भीतर रह रहे हों, क्योंकि नीचे एक स्वच्छ नदी बह रही होती है, पीछे हरे-भरे पर्वत होते हैं और ऊपर नीले आकाश में सफेद बादल मंडरा रहे होते हैं। यह एक मर्मस्पर्शी दृश्य की रचना करता है।

यह छोटा सा सुंदर शहर कोई चार सौ वर्ष पुरानी चारदीवारी के बीच खड़ा है। फंग ह्वांग शहर की आबादी तीन लाख से कुछ अधिक है, जिस का अधिकांश म्याओ और थुचा अल्पसंख्यक जातियों का है ।

फूंगह्वांग शहर का दौरा आधे घंटे में पूरा किया जा सकता है। इस शहर के पश्चिमी भाग में स्थित पुराना शहरी क्षेत्र सब से ध्यानाकर्षक है। 13वीं शताब्दी में निर्मित शहर की परम्परागत छवि व ऐतिहासिक पर्यावरण हवा व वर्षा के थपेड़ों की परवाह न करते हुए आज तक बरकरार है। शहर की कई संकरी गलियां, पुरानी दीवारें, प्राचीन भवन, घाट व मंदिर बड़े दर्शनीय हैं। हरेक गली-सड़क यहां पाये जाने वाले भूरे रंग के पत्थरों से बनी है। सड़क के किनारे लगभग सौ साल पुराने मकान सुव्यवस्थित रूप से खड़े हैं। रोचक बात यह है कि इन मकानों की वास्तुशैली एक सी नहीं है यों उन की छतों पर लगी काली खपरैलें और भूरी लकड़ियों की दीवारें एक ढंग की हैं। एक-दूसरे से सटे अपने ही ढंग के ये मकान एक असाधारण दृश्य बनाते हैं। शरद में यहां ढेरों पर्यटक आते हैं और चारों ओर बड़ी हलचल रहती है और बेशुमार मकानों वाली इन गलियों का वातावरण शांत रहता है।

शहरी क्षेत्र में एक-दूसरे से सटे मकानों से जहां एक असाधारण दृश्य बनता है, वहीं सड़कों के किनारे खड़े मकान दुकानों का काम देते हैं। नदी के तट पर अनेक झूलती इमारतें नजर आती हैं और पर्वत की तलहटी में मंदिर देखने को मिलते हैं।

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