वर्ष 2011 की शुरूआत में चीनी उप प्रधान मंत्री ली खछांग ने यूरोप की 9 दिवसीय यात्रा की । लोकमतों का मानना है कि उप प्रधान मंत्री ली खछांग की मौजूदा यात्रा से चीन और यूरोप के बीच संबंधों के आगे विकास को बढ़ावा मिलेगा। विशेषज्ञों ने कहा कि वर्ष 2011 चीन यूरोप सहयोग की नयी शुरूआत है और चीन व यूरोप के संबंधों के लिए नया मौका आएगा और सहयोग का उज्ज्वल भविष्य होगा।
वर्ष 2011 चीन की नयी पंचवर्षीय योजना का पहला साल है। चीन ने आर्थिक विकास के तौर तरीकों में तब्दीली करने का लक्ष्य पेश किया है, जबकि यूरोपीय संघ ने 2020 विकास योजना बनायी है, जिस में यूरोप की आर्थिक हो़ड़ बढाने के उपाय भी प्रस्तुत किए गए हैं। इसतरह दोनों पक्षों के बीच आर्थिक विकास की दिशा बदलने से आर्थिक विकास की दर उन्नत करने का मिलता जुलता आशय सामने आया है और सहयोग की गुंजाइश भी लगातार बढ़ती जाएगी। चीनी अन्तरराष्ट्रीय सवाल अध्ययन प्रतिष्ठान में यूरोप के बारे में अनुसंधानकर्ता सुश्री ली वीवी ने कहा कि यूरोप नयी ऊर्जा और वित्तीय सेवा के क्षेत्र में काफी परिपक्व हो चुका है और उन की समुन्नत तकनीकें और अनुभव भी चीन के लिए सीखने के काबिले है। सुश्री ली ने कहाः
यूरोप में कुछ उद्योगों जैसा कि हरित अर्थव्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण उत्पाद, मोटर गाड़ी, डिजाइन और वास्तु निर्माण एवं नई ऊर्जा व नयी सामग्री के क्षेत्र में समुन्नत तकनीकें और प्रगतिशील अवधारणा संपन्न हुई हैं। सेवा उद्योग, खासकर वित्तीय सेवा उद्योग बहुत ही विकसित है जो चीन के लिए सीखने के लायक है। शिक्षा के क्षेत्र में जर्मनी का व्यवसायी प्रशिक्षण विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। चीन अपनी अगली पंचवर्षीय योजना में व्यवसाय प्रशिक्षण पर जोर देगा, इसलिए चीन और यूरोप के बीच सहयोग का अच्छा आधार है।
तकनीकी सहयोग के अलावा चीन और यूरोप के बीच परस्पर पूंजी निवेश के अवसर अधिकाधिक होते जा रहे हैं। चीनी अन्तरराष्ट्रीय सवाल अध्ययन संस्थान के यूरोपीय मामला विभाग के प्रधान श्री छ्वु होंगच्यान के विचार में वित्तीय संकट की स्थिति में यूरोप के कुछ देशों में कर्ज का संकट आया है, ऐसी स्थिति में चीन और यूरोप के बीच पूंजी के निवेश के अवसर बढ़ जाएंगे। उन्हों ने कहाः
चीन के अन्य व्यापार साझेदारों की तुलना में चीन और यूरोप के बीच पूंजी निवेश के क्षेत्र में सहयोग का स्तर अभी ऊंचा नहीं है। यूरोप में वर्तमान कर्ज संकट होने के कारण चीन के साथ सहयोग की मांग है, चीन के उद्योग और बैंक यूरोप के पूंजी बाजार में प्रवेश कर सकते हैं। आर्थिक संपर्क भी पहले से मजबूत होगा और चीन यूरोप संबंधों के विकास के लिए और पुख्ता आधार तैयार होगा।
वर्तमान में विश्व अर्थव्यवस्था में पुनरूत्थान की प्रक्रिय असंतुलित है और उस का भविष्य भी स्पष्ट नहीं है। ऐसे में चीन और यूरोप के संबंधों के सामने कुछ कठिनाइयां और चुनौतियां भी हैं। श्री छ्वु ने विश्लेषण करते हुए कहा कि कठिनाई और चुनौति सब से पहले आर्थिक व व्यापारिक होड़ के क्षेत्र में देखी जा सकती है। इस पर उन्हों ने कहाः
बीते दस सालों में चीन और यूरोप के बीच व्यापार में बड़ी वृद्धि हुई है और यह बड़ी हद तक चीन यूरोप के आर्थिक ढांचों में मौजूद परस्पर आपूर्ति पर निर्भर है। चीन यूरोप को कम मूल्य वाले उत्पादों का निर्यात करता है और यूरोप से अधिक मूल्य वाले उत्पादों का आयात करता है। चीन में आर्थिक विकास के तौर तरीकों में बदलाव के बाद चीन के उत्पाद भी कम मूल्य वालों से ऊंचे मूल्य वालों में बदलेंगे, जिस से यूरोप को चिंता होगी कि कहीं चीनी माल भी यूरोप के निर्यात बाजार पर कब्जा नहीं कर जाए।
श्री छ्वु ने कहा कि इस सवाल के अलावा चीन यूरोप संबंध में अन्य कुछ समस्याएं भी हैं, मसलन् बाजार में प्रवेश की समस्या, व्यापार में चीन के अनुकूल संतोलन की समस्या और चीनी मुद्रा रनमिनबी के मूल्य में वृद्धि का सवाल तथा चीन को शस्त्रों की बिक्री पर पाबंदी का सवाल इत्यादि. जो चीन यूरोप संबंधों के विकास में बाधा बन सकेंगे।
चीन यूरोप संबंध इन समस्याओं के समाधान की प्रक्रिया में आगे बढ़ता जा रहा है। श्री छ्वु के अनुसार चीन विश्व का सब से बड़ा विकासशील देश है और यूरोपीय संघ विश्व का सब से बड़ा विकसित देशों का गुट है, दोनों पक्षों के बीच संबंधों का उचित समाधान विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिरता व पुनरूत्थान के लिए लाभदायक है और अन्तरराष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को रणनीतिक दृष्टिकोण से द्विपक्षीय संबंध देखना चाहिए और आंशिक व अस्थाई समस्याओं को द्विपक्षीय संबंधों के विकास पर असर नहीं पड़ने देना चाहिए, यह दोनों के लिए समान प्रयासों की दिशा है।