ता च्वे मंदिर अपनी गहरे सांस्कृतिक निचोड़ से विख्यात है , आंगन में हजार वर्ष पुराना जिन्कगौया पेड़ और सौ वर्ष पुराना मैगनोलिया पेड़ इस मंदिर की विशेष पहचान है । हर वर्ष के शरद काल में जिन्कगौया पेड़ की सुनहरी पत्तियों को देखने का सब से बढ़िया समय है , चालू वर्ष के अक्तूबर के अंत में ता च्वे मंदिर का जिन्कगौया पेड़ उत्सब उद्घाटित हुआ है , मौके पर बड़ी तादाद में पर्यटक चारों तरफ से आये हैं ।
ता च्वे मंदिर चीन की राजधानी पेइचिंग के चार सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक जाना जाता है , शहर के केंद्र से हम कार चलाकर लगभग एक घंटे में पश्चिम पर्वत पहुंच सकते हैं , हजार वर्ष पुराना ता च्वे मंदिर यहां पर अवस्थित है । ता च्वे मंदिर का निर्माण 1068 में हुआ था , पिछले हजार वर्षों के दौरान निर्मित अजीबोंगरीब भवन और आकाश से बातें करने वाले प्राचीन पेड़ , यहां तक कि मंदिर का हरेक भू दृश्य और कोई भी वस्तु इसी प्राचीन मंदिर का साक्षी है , मानो वे सब के सब दर्शकों को इस मंदिर की असाधारण कहानी सुनाते हुए खड़े हुए हो ।
ता च्वे मंदिर के अंदर कदम रखते ही कतारों में उगे छायादार प्राचीन पेड़ों और हरा भरा पर्वत तथा पहाड़ी चश्मे की कल कल कर बहने वाली आवाज से कोई भी व्यक्ति तुरंत ही प्रभावित हो जाता है ।
इस मंदिर का गेट पूर्व की ओर खुला हुआ है और वह पर्वत से सटा हुआ है । मंदिर के बीचोंबीच रास्ते के दोनों निकारों पर क्रमशः पर्वत गेट , स्वर्ग राजा भवन , महा वीर भवन , दीर्घायु बुद्ध भवन और ड्रेगन राजा भवन खड़े हुए दिखाई देते हैं । अतीत कालों की लगातार मरम्मत की वजह से ये पुराने भवन बड़े ढंग से सुरक्षित हुए हैं ।
ता च्वे मंदिर अपनी गहरे सांस्कृतिक निचोड़ से विख्यात है , आंगन में हजार वर्ष पुराना जिन्कगौया पेड़ और सौ वर्ष पुराना मैगनोलिया पेड़ इस मंदिर की विशेष पहचान है । हर वर्ष के शरद काल में जिन्कगौया पेड़ की सुनहरी पत्तियों को देखने का सब से बढ़िया समय है , चालू वर्ष के अक्तूबर के अंत में ता च्वे मंदिर का जिन्कगौया पेड़ उत्सब उद्घाटित हुआ है , मौके पर बड़ी तादाद में पर्यटक चारों तरफ से आये हैं ।
छिन च्येन नाम का पर्यटक विशेष तौर पर जिन्कगौया पेड़ देखने ता च्वे मंदिर आये हैं । उस ने हमारे संवाददाता से कहा
गत वर्ष मैं यहां आया था , बड़ा अच्छा लगता है । आज मैं विशेष तौर पर पेड़ देखने आया हूं । क्योंकि इस वर्ष मैं जल्दी से यहां आया हूं , इसलिये केवल एक जिन्कगौया पेड़ की पत्तियां पीली हो गयी हैं । मेरे ख्याल से अक्तूबर के अंत या नवम्बर के शुरु में यहां के जितने ज्यादा भी जिन्कगौया पेड़ पीले होकर सुनहरा शरद देखने को मिलेगा ।
आम तौर पर जिन्कगौया पेड़ देखने का सब से बढ़िया वक्त 20 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक के बीच का है , पर चालू वर्ष में पेइचिंग का तापमान ज्यादा ठंडा नहीं है , अतः ता च्वे मंदिर में उगे जिन्कगौया पेड़ पूर्ण रूप से पीले रंग में नहीं बदले हैं ।
ता च्वे मंदिर में कुल चार जिन्कगौया पेड़ उगे हुए हैं , दीर्घायु बुद्ध भवन के बायं तरफ उगा जिन्कगौया पेड़ कोई हजार वर्ष से अधिक पुराना है , उस की लम्बाई तीस मीटर से ज्यादा है , जबकि उस का व्यास कोई सात , आठ मीटर मोटा है , मंदिर के परिसर का आधा भाग इसी पेड़ की छाया में है ।
दीर्घायु बुद्ध भवन के दायं तरफ दूसरा जिन्कगौया पेड़ उगा हुआ है । देखने में यह पेड़ काफी पतला दुबला लगता है , पर उस की उम्र बायं तरफ उगे पेड़ के बराबर है । फर्क यह है कि इस पेड़ का मुख्य तना मुर्झा हुआ है , जो पतना दुबला तना नजर आता है , वह उस की उप शाखा है । इस से पूर्ण रूप से जाहिर हो गया है कि चीनी परम्परागत संस्कृति में जिन्कगौया पेड़ को क्यों अदम्य भावना का संज्ञा दी गयी है ।
ता च्वे मंदिर में अन्य दो जिन्कगौया पेड़ों के पीछे अपनी अपनी कहानी छिपी हुई है । उन में से एक पेड़ के ईर्द गिर्द नौ छोटे मोटे जिन्कगौया पेड़ उगे हुए दिखायी देते हैं । इस बड़े पेड़ की उम्र कोई पांच सौ वर्ष पुरानी है , पर वह अत्यंत हरा भरा दीखता है , दूर से देखने में एक छोटा जंगल जान पड़ता है । अन्य एक पेड़ और भी अजीबोगरीब है , आम तौर पर नर और मादा अलग अलग से उगे हुए हैं , लेकिन यहां पर एक ही जिन्कगौया पेड़ नर और मादा दोनों भागों में बटा हुआ है । इस पेड़ की जेड़े एक दूसरे से लिपटी हुई हैं , पर भीमकाय शाखाओं में एक भाग पर फल लदे हुए हैं , जबकि दूसरे भाग पर कोई फल नहीं है । यह सचमुच कमाल की बात है ।
ली युन अपनी सहलियों के साथ बुद्ध की पूजा करने के लिये विशेष तौर पर यहां आयी है । उन की नजरों में यहां के जिन्कगौया पेड़ दूसरे जिन्कगौया पेड़ों से अलग हैं । ली युन का कहना है
यह मंदिर हजार वर्ष पुराना है , यहां एक तीर्थ शांतिमय जगह है । और तो और आज छिट पुट वर्षा हो रही है , यह अपनी आत्मा को धोयी जा सकती है । मेरे ख्याल में इस मंदिर में इन पेड़ों समेत सभी पुराने सांस्कृतिक अवशेष भगवान बुद्ध के संरक्षण में हैं । इन जिन्कगौया पेड़ों की अलग आत्मा जरुरी ही है । अपनी विशेष पहचान बनाती है ।
बेशक , ता च्वे मंदिर के दौरे पर मिंग ह्वी चाय घर जाना जरूरी है ।
लाल लालटेनों से सुसज्जित संकरी गली पार कर चीनी वास्तु शैली से युक्त एक छोटा आंगन प्रकाश में आया है । आंगन में प्रवेश होकर चीनी वाद्य यंत्र कू छिन और सरिता की कल कल कर बहने की आवाज सुनायी पड़ती है । हर वर्ष के वसंत में यहां पर उगे तीन सौ वर्ष से पुराने मैगनोलिया पेड़ों पर सुंदर सफेद गैगनौलिया फूल खिले हुए दिखाई देते हैं , ऐसे मौके पर बहुत से फोटोकारों को फोटो खिंचने यहां आकर्षित किया जाता है । चाय घर विशेष तौर पर प्रसिद्ध रसोइयों को खाना पकाने बुलाता है , इसी बीच चीनी चाय संस्कृति के बारे में जानकारी भी दी जाती है । ता च्वे मंदिर की प्रबंधन कमेटी की जिम्मेदार सुश्री श्वान ली पिन ने इस का परिचय देते हुए कहा
ता च्वे मंदिर का मिंग ह्वी चाय घर बहुत विख्यात है । चाय संस्कृति चीनी संस्कृतियों का निचोड़ है । उन्हों ने आगे कहा कि चालू वर्ष में हम ने ता च्वे मंदिर की चित्र प्रदर्शनी लगायी । साल के चार मौसमों में ता च्वे मंदिर की अलग अलग पहचान देखने को मिलती है , पर्यटक हरेक मौसम के प्राकृतिक सौंदर्य को देखने नहीं आ पाते हैं , पर यहां पर प्रदर्शित चित्रों के जरिये पर्यटकों को वसंत के खिले हुए मैगनोलिया फूल , गर्मियों का वर्षा दृश्य , शरद के मैगनोलिया पेड और सर्दियों का बर्फीला दृश्य देखने को मिलता है , ताकि वे अपनी पसंदीदा प्राकृतिक दृश्य देखने यहां आ सके ।
यदि आप पहली बार ता च्वे मंदिर आते हैं , तो आप के लिये इसी मंदिर के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व को जानना जरुरी है । सुश्री श्वान ली पिन ने कहा
ता च्वे मंदिर की यात्रा में वसंत के मैगनोलिया फूल उत्सव और शरद के पेड़ उत्सव को छोड़कर पूरे मंदिर के विर्माण वातावरण , वास्तु शैली और निर्माणों का बंटवारा बड़े ढंग से संरक्षित हुए हैं । यह दूसरे मंदिर से एकदम अलग है । संयोग की बात है कि हमारे दीर्घायु बुद्ध भवन की छत की मरम्मत की जा रही है , पर्यटक दौरे के साथ साथ यहां के शिल्पकारों के सूक्ष्म कौशल का लुत्फ भी ले सकते हैं । विदेशी पर्यटक ता च्वे मंदिर का सीधा सादा वातावरण बहुत पसंद करते हैं । आखिर ता च्वे मंदिर पुरानी राजधानी पेइचिंग की संस्कृति के प्रतीकों में से एक अवश्य ही है ।