अक्तूबर माह के एक दिन, हम ने हबूखसेर घास मैदान में प्रवेश किया। इस चौड़े घास मैदान पर मंगोलियाई जाति की जनता ने कई शताब्दियां बितायी हैं। लगभग मंगोलियाई जाति का हर व्यक्ति जांगर सुनता है, लेकिन, अब जांगर सुनाने वाला केवल एक आदमी बचा है, जिस का नाम जा जूनेई है।
स्थानीय लोगों के नेतृत्व में हम जांगर के कलाकार जा जूनेई से मिलने उन के घर गये।श्री जा जूनेई का आंगन बहुत छोटा है, फिर भी साफ़ सुथरा है। मंगोलियाई जाति के एक युवक ने हमारा स्वागत किया। हमारा दुर्भाग्य है ,श्री जू जूनेई कुछ समय से पहले ही पहाड़ पर चले गये। उन के घर में हमारी मुलाकात उन के पोते खानूलू से हुई। इस वर्ष खानूलू की उम्र 11 है और वह स्थानीय प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहा है।
खानूलू ने कहा कि 6 साल की उम्र से ही उस ने दादा के साथ जांगर गाना सीखना शुरु कर दिया था , अब वह दो तीन भाग गा सकता है। लेकिन, अपने दो बड़े भाइयों की तुलना में वह बहुत कम जांगर गा सकता है। उस का बड़ा भाई कोर्बाईंग विश्वविद्यालय में दाखिला ले चुका है और गिटार के साथ जांगर गा सकता है।
खानूलू ने गौरव से हमें बताया कि अब उस की क्लास में 50 से ज़्यादा छात्रों में केवल वह ही जांगर गा सकता है। हालांकि वह केवल दो हिस्से ही गाने में निपुण है, फिर भी उसे इस बात की बड़ी खुशी है। खानूलू के लिए दादा जी बहुत अद्भुत है, चूंकि दादा जांगर के 45 हिस्सों को गा सकते हैं। खानूलू आशा प्रकट की कि भविष्य में वह भी अपने बड़े भाई व दादा की तरह जांगर के और ज्यादा हिस्से गा सकेगा।
क्या आप लोग जानते हैं कि जांगर कौन है?क्यों जांगर की संस्कृति सिनच्यांग के हबूखसेर मैदान में पैदा हुई और पनपी ?और क्यों जांगर अब भी लोकप्रिय है, लेकिन, गाने वाले लोग बहुत कम हैं?
हबूखसेर मंगोलियाई स्वायत प्रिफ़ेक्चर की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कमेटी के महा सचिव चांग वनछांग ने हमें संबंधित जानकारी दी।
इतिहास के विकास से देखा जाये, तो जांगर संस्कृति को 15वीं शताब्दी के बाद पैदा होना चाहिए। आज की हबूखसेर की मंगोलियाई जाति का कबीला पहले वेइलात कबीले के पोते हैं। जांगर संस्कृति के सृजक को तुरचाट होना चाहिए। हमारे अनुसंधान के बाद हमें पता लगा कि जांगर संस्कृति सब से पहले आलथेई पहाड़ से रूस के कारमेया गणराज्य के बीच पैदा हुई थी। इसी दायरे में 2005 में हबूखसेर काऊंटी में अंतरराष्ट्रीय जांगर सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया गया। इस गतिविधि में 16 देशों एवं चीन के विशेषज्ञ हमारी काऊंटी में आये और उन्होंने जांगर संस्कृति का ध्यान से अनुसंधान किया। अंत में लोगों ने यह सहमति प्राप्त की कि जांगर संस्कृति का स्रोत सिनच्यांग की हबूखसेर काऊंटी ही है।
श्री चांग वनछांग ने कहा कि जांगर एक लम्बी वीर कविता के रूप में व्यक्तियों के सृजन में उल्लेखनीय उपलब्धियां मिली हैं। इस कविता में जांगर के कठोर बचपन व लड़ाई अनुभव का वर्णन किया गया है। कविता के अनुसार, जांगर एक चतुर, सुयोग्य व बहादुर वीर हैं। उन्हें सैनिकों व जनता का समर्थन मिला है।
लेकिन, क्यों जांगर मंगोलियाई जाति की जनता में बहुत लोकप्रिय है, फिर भी बहुत कम लोग इसे गा सकते हैं?हबूखसेर टी वी स्टेशन की मंगोलियाई जाति के संवाददाता बाईंग ने कहा, जांगर सीखना बहुत कठिन है। जांगर में कुल मिला कर बीसियों लाख शब्द हैं। अब केवल श्री जूनेई ही जांगर के 45 हिस्से गा सकते हैं। बाईंग की मदद से हम ने श्री जूनेई की रिकार्डिंग सामग्री की खोज की। मैं आजीवन घास मैदान में रहता आया हूं। इस स्थल का नाम है हबूखसेर नदी। मैं हमेशा यहां चरवाहे का करता रहा हूं और जांगर गाता रहा हूं। क्यों मुझे जांगर पसंद है?कारण यह है कि मुझे जांगर में वीर पसंद हैं। वे सीमा की रक्षा करने के लिए साहस से और कठोर संघर्ष करते थे। मैं उन की बहादुरी से प्रेम करता हूं।जांगर लोककथा में वीरता है, इसलिए, मैं जांगर का प्रसार करना चाहता हूं।
इस वर्ष श्री जूनेई की उम्र 85 हो चुकी है। उन के छोटे पोते ने हमें बताया कि दादा बाद में जांगर नहीं गाएंगे। वे अपना ज़्यादा समय छात्रों को जांगर गाना सीखने में लगाएंगे।
श्री जूनेई को अपना बड़ा पोता सब से पसंद है। अब उस की सब से बड़ी अभिलाषा यह है कि नीमा सभी जांगर सीख सके।मेरे दादा जांगर गाने वाले मशहूर कलाकार हैं। मुझे भी जांगर बहुत पसंद है। जांगर हमारी जाति की अवमूल्य सांस्कृतिक विरासत है। फ़ुरसत के समय मैं जांगर सीखता हूं। मैं आशा करता हूं कि मैं दादा के कार्य एवं जातीय संस्कृति कार्य के लिए अपना योगदान दे सकूंगा।
हबूखसेर घास मैदान मंगोलियाई जाति की वीर कविता जांगर की जन्मभूमि है। आशा है कि और ज़्यादा लोग जांगर गा सकेंगे, ताकि इस की मधुर धुन हमेशा इस घास मैदान में गूंजती रहे।
(श्याओयांग)