दोस्तो , आज य़ानी पहली दिसम्बर से चीन ने देशी विदेशी पूंजी से संचालित सभी उपक्रमों की कराधान प्रणालियों को एकीकृति कर दिया है और विदेशी पूंजी से संचालित उपक्रमों के प्रति उदार नीति समाप्त कर दी है । विश्व व्यापार संगठन के नियम के अनुसंधान विशेषज्ञ हो वी वन ने हमारे संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि विकासशील देशों ने अपनी वास्तविक स्थिति के मद्देनजर विकास के शुरु में विदेशी पूंजी से संचालित उपक्रमों के लिये जो उदार नीति निर्धारित की है , वह विश्व व्यापार संगठन की युक्तिसंगत प्रतिस्पर्द्धा और भेदभाव रहित सिद्धांतों के अनुरुप है । ऐसी स्थिति में जबकि वर्तमान चीनी युक्तिसंगत व पारदर्शी बाजार वातावरण विदेशी पूंजी से संचालित उपक्रमों के लिये और आकर्षित है और चीनी अर्थतंत्र उम्दा दौर में है , उदार नीति की समाप्ति से चीन में विदेशी पूंजी के प्रवेश पर असर नहीं पड़ेगा ।
चीनी विश्व व्यापार संगठन अनुसंधान कमेटी की स्थायी परिषद सदस्य हो वी वन का विचार है कि 1985 व 1986 से मूल चीनी उपक्रम शहरी निर्माण व शिक्षा के विकास के लिये अपना दायित्व निभाने लगे हैं , चीन में विकसित व लाभप्राप्त विदेशी पूंजी को दीर्घकालिक रुप से अपने दायित्व से वंचित नहीं होना चाहिये ।
यह स्वाभाविक है कि आम तौर पर विदेशी पूंजी दूरस्थ गोवों के बजाये शहरों में अपना कारोबार लगाती है । शहरों में कारोबारी विकास के लिये जरूरी संस्थापनों के अलावा और ज्यादा सार्वजनिक संस्थापनों , मकानों, अस्पतालों व स्कूलों जैसे शहरी निर्माणों में ज्यादा खर्च होता है , इस खर्च का कुछ भाग चीन में लाभप्रद विदेशी पूंजी को उठाने की जरूरत है । दूसरी तरफ विदेशी पूंजी वाले उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों व मजदूरों को प्रशिक्षित करने में जो पूंजी जुटायी गयी है , उस का कुछ भाग उन्हें उठाना भी उचित है ।
हो वी वन का मानना है कि विदेशी पूंजी को आकर्षित करने की उदार नीति दीर्घकालिक रुप से अपरिवर्तनीय नहीं है , बाजार आर्थिक व्यवस्था को संपूर्ण बनाने के साथ साथ सरकार और अधिक युक्तिसंगत , खुला व पारदर्शी वातावरण तैयार करने में क्रियाशील है , यदि कुछ उपक्रमों के प्रति अति उदार बर्ताव किया जाता है , तो वह वैश्विक नियमित व्यापार नियमों के अनुरुप नहीं है और दूसरे उपक्रमों के लिये भेदभाव ही है ।
विश्व व्यापार संगठन के नियम का यह तकाजा है कि एक समान बाजार में किसी भी उपक्रम के लिये एक ही प्रस्थान बिंदु पर खड़ा होना आवश्यक है । एक समानता के युक्तिसंगत बर्ताव में यदि चीनी उपक्रमों को 25 प्रतिशत कर भुगताना है , तो विदेशी पूंजी से संचालित उपक्रमों को मात्र 15 प्रतिशत का भुगतान करना है , भिन्न लागत व अलग प्रतिस्पर्द्धा शक्ति की स्थिति में यह अयुक्तिसंगत प्रतिस्पर्द्धा ही है । विदेशी पूंजी के प्रयोग के शुरुकाल में अपने देश के आर्थिक विकास व समुन्नत तकनीकों के आयात के लिये विदेशी पूंजी को अति उदार नीति लागू की जाती है , बहुत ज्यादा विकासमान देश ऐसा भी करते आये हैं , लेकिन जब अपना विकास निश्चित हद तक पहुंच जाता है , तो इस उदार नीति को विश्व व्यापार संगठन के नियम के निकट लाना ही होगा , युक्तिसंगत प्रतिस्पर्द्धा व भेदभाव रहित सिद्धांत के अनुसार बराबर वर्ताव किया जाना चाहिये , नहीं तो अंदरुनी उपक्रमों के लिये भेदभाव ही है ।
हो वी वन का यह विचार भी है कि विदेशी व्यापारियों के लिये अधिक युक्तिसंगत और सुव्यवस्थित कानूनी वातावरण व बाजार व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
युक्तिसंगत कर वसूली व्यवस्था अमरीका व यूरोप में समान रुप से अपनायी जाती है , इस में कोई फर्क नहीं पड़ता । अब विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिये कर वसूली के बजाये कानूनी वातावरण व खुले , युक्तिसंगत व पारदर्शी प्रतिस्पर्द्धा वातावरण पर निर्भर है । पर विदेशी व्यापारियों को चीन में पूंजी लगाने से ज्यादा लाभ प्राप्त है , चीनी अमरीकी वाणिज्य सोसाइटी की अपने सदस्यों की जांच से पता चला है कि 2009 में चीन में स्थापित तीन चौथाई भाग के विदेशी पूंजी से संचालित उपक्रमों का लाभ औसतन विश्वव्यापी लाभ से अधिक है ।
असल में गत अक्तूबर में चीन ने 7 अरब 60 करोड़ अमरीकी डालर की विदेशी पूंजी का प्रयोग किया है , जो समान अवधि से 7 प्रतिशत बढ़ गयी है , यह वृद्धि गत 15 माहों तक बनी हुई है । चीन में युक्तिसंगत वातावरण तैयार करने और शहरीकरण तेज करने की प्रक्रिया में विदेशी पूंजी वाले उपक्रमों को चीनी मूल उपक्रमों की तरह और अधिक मौका प्राप्त होगा ।