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चीनी रेल संग्रहालय
2010-11-24 15:17:41

2 नवम्बर की सुबह चाइना रेडियो इंटरनेशनल-हिन्दी विभाग के सभी कर्मचारी चिएनमेन सबवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एकत्रित हुए- लक्ष्य था, चीनी रेल संग्रहालय का दौरा करना। संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर लिखा था-बीजींग का छंगयानमेन पूर्वी स्टेशन जिसका निर्माण 1903 में हुआ था और यह चीनी आधुनिक रेलवे स्टेशन का प्रतिनिधित्व करता है। संग्रहालय के बाहर तक पहुँच कर भी मेरे मन में एक छवि थी कि यह भी अन्य संग्रहालयों की तरह होगा जहाँ पुरानी ऐतिहासिक रेलगाड़ियों के मॉडल होंगे, कुछ ऐतिहासिक चित्र। पर छवि जितनी साधारण थी, संग्रहालय उतना आधुनिक। 4 मंजिलों वाले इस रेल संग्रहालय का बारे में जान कर आप भी अचंभित रह जाएँगे। चीन की आधुनिक रेल के बारे में तो हम सब बहुत कुछ सुन रहे हैं, पढ़ रहे हैं। पर इसका इतिहास 130 साल पुराना है। 1876 में बनी पहली चीनी रेलगाड़ी। लुगुओचियाओ-हंकोअ के बीच चलने वाली रेल, जिसका मॉडल वहाँ हमने देखा। इंग्लैड में बना भाप लोकोमोटीव, रॉकेट ऑफ चाइना के नाम से जाना जाता। वहाँ हमने देखी 1905 में रेलगाड़ियों की टिकटों की कीमत और रेल समय-तालिका की कॉपी, संधि पर किए हस्ताक्षरों का प्रमाण-पत्र। प्रथम रेलगाड़ी की पटरियाँ, उस समय प्रयोग किए गए औज़ार, पहिए संग्रहालय में संरक्षित किए गए हैं। हमने मौका पाकर इन ऐतिहासिक चित्रों, मॉडल को अपने कैमरे में कैद कर लिया और रेलगाड़ियों के सामने खड़े होकर अपनी तस्वीरें लीं। इन सब के दौरान संग्रहालय की गाइड सुश्री होअ ने हमें बताया यह संग्रहालय इस साल 28 सितंबर को खुला था। इस संग्रहालय के निर्माण में 3 साल लगे। पहले यहां पर पेइंचिंग का पूर्वी चंग यांग मेन स्टेशन था, और वह भी पेइचिंग-फ़नथ्यैन रेलवे का पहला स्टेशन था।इस स्टेशन की स्थापना वर्ष 1903 में की गयी थी।जिसका इतिहास 100 से अधिक साल पुराना है। इस संग्रहालय की स्थापना का लक्ष्य रेलवे संस्कृति को आगे ले जाना है। यहां पर प्रतिदिन दर्शकों की भीड़ रहती है,खास कर विकेंड पर।

च्यो श्यैन ब्रिज के पास चीनी रेलवे संग्रहालय का लोकोमोटिव हाल है। अगर आप लोकोमोटिव के शौकीन हैं,तो वहां जाकर देख सकेंगे। बड़े स्टीम लोकोमोटिव,मौ ट्से डोंग लोकोमोटिव और जो एन लाइ लोकोमोटिव वहां हैं। इसके अलावा चीन में सबसे पुराना स्टिम लोकोमोटिव नंबर ज़ीरो भी उस हाल में है।

हमारे इस संग्रहालय में मूल तौर पर चीन रेलवे इतिहास व विकास का परिचय दिया जाता है। जो पांच काल में बांटा गया है।

पहला काल वर्ष 1876 से 1911 तक रहा था अर्थात् हमारे देश में पहली व्यापारिक रेल वू सूंग रेलवे की स्थापना से 1911 क्रांति से छिंग राजवंश के तख़्तापलट के पहले तक।

दूसरा काल वर्ष 1911 से 1949 तक रहा था अर्थात् 1911 क्रांति से छिंग राजवंश के तख़्तापलट के बाद चीनी लोक गणराज्य की स्थापना के पहले तक।

तीसरा काल वर्ष 1949 से 1978 तक रहा था अर्थात् नये चीन की स्थापना के बाद खुलेपन व सुधार की नीति लागू करने के पहले तक। चौथा काल वर्ष 1978 से 2002 तक रहा था।

पांचवां काल वर्ष 2002 से आज तक रहा है।

1876-1911 के बीच चीनी रेल का संघर्षपूर्ण इतिहास। 1949-1978 का सफर। वर्ष 2000 के बाद चीन के रेलवे ने इतिहास के पन्नों पर लिखी कहानी को नया रूप दिया और दौर शुरू हुआ नए चीन की नई हाई स्पीड रेल। जिसने दिनों की दूरी को चंद घंटों में तबदील कर दिया। 7000 कि.मी. की दूरी इस साल तक ट्रेनें तय कर रही हैं और 2012 तक 13000 कि.मी. की दूरी तय करने का टारगेट है। हाई स्पीड पैसेन्जर रेलवे से जाने जानी वाली इस रेल ने चीन को रूस और भारत से आगे लाकर पहले स्थान पर पहुँचा दिया है। चीन में कहीं भी यात्रा करने का सबसे सुविधापूर्ण साधन यही हैं। 2010 तक चलने वाली 10 हाई स्पीड रेल में हैं- बीजींग से तिएनजीन 330 की.मी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली। वुहान से क्वांगचो तक 350 की.मी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली रेल। शियान से चंगचो 350 की.मी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली रेल। शांगहाई से नानजिंग तक चलने वाली रेल इस दुनिया में व्यस्ततम रेल में से हैं। क्वांगचो से शंनजन और यहीं तक दूरी को कम करने का सफर खत्म नहीं हुआ हाई स्पीड रेल ने बीजींग से तिब्बत के ल्हासा तक का सफर ल्हासा एकस्प्रेस ने तय कर लिया है। प्लान कुछ इस प्रकार है कि चीन के किसी भी शहर, किसी भी कोने तक 8 घंटे के अंतराल में पहुँचा जा सके। इन में से अधिकतर ट्रेनों के मॉडल वहाँ मौजूद हैं। ये रेल किन-किन पहाड़ों, जंगलों, नदियों से भरे दुर्गम रास्तों को भेदती-काटती हुई आगे बढ़ रही हैं इसका अनुभव भी हमें संग्रहालय में थ्री-डी फिल्म देखकर भली-भांति हो गया। इस 10 मिनट की शार्ट फिल्म ने हमें एहसास करा दिया कि मनुष्य के लिए कुछ भी कर गुज़रना नामुमकिन नहीं और जहाँ चाह वहाँ राह के स्थान पर जहाँ जाना हो वहाँ हाई स्पीड रेल कहना कुछ गलत नहीं होगा। छिंग हाई-तिब्बत रेलवे दुनिया भर के पठारों पर सबसे ऊंचे अलटिट्यूड के साथ सबसे लंबा रेलवे है।छिंग हाई-तिब्बत रेलवे की पूरी लंबाई 1972 कि.मी है,जिसका निर्माण दो भागों में किया गया था।पहला भाग शी निंग से गोलमूड तक रहा है,जिसकी लंबाई 830 किमी है।इसका निर्माण वर्ष 1984 में समाप्त किया गया था।दूसरा भाग गोलमूड से ल्हासा तक रहा है,जिसकी लंबाई 1142 किमी है।इसका निर्माण एक जुलाई 2006 में पूरा किया गया था।इस रेलवे के निर्माण के दौरान वैश्विक स्तर की समस्याओं का समाधान किया गया।पहला है पठार पर जमी मिट्टी, दूसरा है ऊंचे पठार पर कम तपमान व ओक्सिजन का अभाव और तीसरा है परिस्थिति की कमज़ोरी।यह परियोजना वैश्विक रेलवे के इतिहास में सबसे चूनौतिपूर्ण वाली रही है।हमारे राष्ट्राध्यक्ष हू चिन थाओ ने कहा था कि यह न सिर्फ़ चीन के रेलवे निर्माण इतिहास का कमाल ही है बल्कि वैश्विक रेलवे निर्माण के इतिहास की करामात भी है।

संग्रहालय का दौरा करने आए एक चीनी बुजुर्ग से श्याओयांग जी और श्याओथांग जी ने बातचीत की(बातचीत)। यह संग्रहालय बहुत अच्छा लगता है।रेलवे के विकास का काफ़ी ठोस परिचय दिया जाता है।इसका दौरा करके हमें चीन में रेलवे का इतिहास के साथ भविष्य में रेलवे के विकास की परियोजना भी मालूम हुआ है।खासकर उस ट्री डी मुवी से बाद में रेलवे के विकास की दिशा दिलायी गयी है।जिसे देख कर हम बहुत प्रोत्साहित हुए हैं।हम वू हांग से आये हैं।बीस साल पहले वू हांग से पेइचिंग तक 20 से ज़्यादा घंटे लगे थे।आब केवल 4 घंटे लगते हैं।सूना है कि हमारे रेलवे कई विदेशी वालों से भी विकसित रहे हैं।

अब हम अनिल जी से बात करना चाहेंगे और उनसे उनके अनुभवों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं कि भारतीय रेल का इतिहास यहाँ से पुराना है पर प्रगति यहाँ तेज़ी से हो रही है। आपने हाई स्पीड रेल से यात्रा की है और चीन के कुछ शहरों का दौरा किया है। आप हमें हाई स्पीड रेल के बारे में, कोच, सेवा-सुविधाओं के बारे में बताएँ।

इस तरह रोमांचक और ज्ञानवर्धक संग्रहालय का दौरा कर हम सब बाहर आए। हम सब मिलकर चिएनमेन स्ट्रीट पर गए। यह सड़क छंगयानमन के ठीक सामने है जहाँ राजा अपनी प्रजा से मिलने के लिए आया करते थे। इस सड़क के दोनों ओर कई नामी-गिरामी विश्व प्रसिद्ध ब्रेंडीड दुकानें हैं और स्थानीय ब्रेंड की दुकानें भी हैं। ह्वांग दीदी ने बताया कि कुछ वर्षों पहले इस स्थान पर छोटी-छोटी गलियाँ हुआ करती थीं जिनमें दुकानें तथा घर बने होते थे और अब उन सब की जगह चौड़ी सड़क, बड़ी-बड़ी दुकानों ने ले ली हैं। हमने देखा इस सड़क के बीचो-बीच एक लम्बी रेल भी चल रही थी जिसमें विदेशी पर्यटक सैर कर रहे थे। श्याओथांग जी ने हम सब के लिए एक स्थानीय स्नेक खरीदा–थांग हू लू- 4-5 बेरों को चाश्नी में पकाकर एक लकड़ी की सीक पर लगाया जाता है। बहुत ही स्वादिष्ट था वह। इस तरह हम सब सैर करते हुए पहुँचे अपने दफ्तर। श्रोताओं, यहाँ बीजींग में देखने-घूमने, सैर करने, सीखने-जानने को इतना सब है कि समय कम पड़ जाता है पर स्थान खत्म नहीं होते।

हेमा कृपलानी

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