जैसा कि आप लोगों को मालूम है कि भारतीय वासियों की दृष्टि में पेड़ प्राण का प्रतीक है । शांगहाई विश्व मेले में खड़े भारतीय राष्ट्रीय भवन में चाहे अर्धअंडेकार प्रवेश द्वार पर हो या गोलाकार बाह्य सजावटे , यहां तक कि भारतीय राष्ट्रीय भवन के चिन्ह पर क्यों न हो , सभी जगहों पर प्राण के पेड़ की छायां देखने को मिलती है ।
भारतीय राष्ट्रीय भवन शांगहाई विश्व मेले के ए ब्लोक में अवस्थित है , इस भवन का प्रमुख निर्माण लाल भुरे रंग का है , हरित वनस्पति से सुसज्जित गोलाकार छत जबरदस्त दक्षिण एशियाई धार्मिक वास्तु शैलियों से युक्त है , देखने में बहुत सुदर लगता है । जिस में 37 मीटर बड़े व्यास वाली केंद्रीय गोलाकार छत समूचे प्रदर्शनी भवन का प्रतीकात्मक निर्माण ही है , उस के निर्माण की धारणा महत्वपूर्ण बौद्ध धार्मिक सांची स्मारक पर आधारित है , जो पृथ्वीव्यापी सामंजस्य का द्योतक है और वह भारतीय हिन्दु धर्म , बौद्ध धर्म , मुसलिम धर्य , सीख धर्म और कैथोलिय धर्म की मिश्रित वास्तु शैली के रुप में दिखाई देता है ।
आज के इस कार्यक्रम में हम आप के साथ 2010 शांगहाई विश्व मेले में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय भवन के दौरे पर जाते हैं । मुझे विश्वास है कि आज आप को अवश्य ही इस मजेदार दौर में मजा आयेगा । अच्छा , अब हम देखने चलते हैं ।
जैसा कि आप लोगों को मालूम है कि भारतीय वासियों की दृष्टि में पेड़ प्राण का प्रतीक है । शांगहाई विश्व मेले में खड़े भारतीय राष्ट्रीय भवन में चाहे अर्धअंडेकार प्रवेश द्वार पर हो या गोलाकार बाह्य सजावटे , यहां तक कि भारतीय राष्ट्रीय भवन के चिन्ह पर क्यों न हो , सभी जगहों पर प्राण के पेड़ की छायां देखने को मिलती है ।
भारतीय राष्ट्रीय भवन शांगहाई विश्व मेले के ए ब्लोक में अवस्थित है , इस भवन का प्रमुख निर्माण लाल भुरे रंग का है , हरित वनस्पति से सुसज्जित गोलाकार छत जबरदस्त दक्षिण एशियाई धार्मिक वास्तु शैलियों से युक्त है , देखने में बहुत सुदर लगता है । जिस में 37 मीटर बड़े व्यास वाली केंद्रीय गोलाकार छत समूचे प्रदर्शनी भवन का प्रतीकात्मक निर्माण ही है , उस के निर्माण की धारणा महत्वपूर्ण बौद्ध धार्मिक सांची स्मारक पर आधारित है , जो पृथ्वीव्यापी सामंजस्य का द्योतक है और वह भारतीय हिन्दु धर्म , बौद्ध धर्म , मुसलिम धर्य , सीख धर्म और कैथोलिय धर्म की मिश्रित वास्तु शैली के रुप में दिखाई देता है ।
सांची बौद्ध धार्मिक स्मारक आज की दुनिया में सब से प्राचीन बौद्ध धार्मिक ऐतिहासिक अवशेष माना जाता है और वह बौद्ध धार्मिक अनुयाइयों का प्रमुख तीर्थ स्थल भी है । बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार भारत से आने की वजह से चीनी लोगों को सांची बौद्ध धार्मिक स्मारक से एकदम लगाव है । इसलिये भारतीय राष्ट्रीय भवन की केंद्रीय गोलाकार छत भिन्न संस्कृतियों व धार्मिक मेल मिलाप का जबरदस्त चिन्ह भी है ।
भारतीय राष्ट्रीय भवन के डिजाइनर नायटू ने हमारे संवाददाताओं से कहा कि भारतीय राष्ट्रीय भवन का प्रमुख मुद्दा सामंजस्य का शहर है । उम्मीद है मौजूदा विश्व मेले के जरिये सारी दुनिया की जनता उस भारत से परिचित होगी , जो प्रकृति को पूर्ण रुप से जोड़ने के लिये ऊर्जा किफायत व पर्यावरण तकनीक को अपनी संस्कृति में शामिल करने की कोशिश कर रहा है , ताकि अनवरत विकास को मूर्त रुप देने के लिये नयी ईजात के समाधान प्रस्ताव पेश किया जा सके । अतः केंद्रीय गोलाकार छत के निर्माण में बांस का प्रयोग भारतीय राष्ट्रीय भवन का एक प्रशंसनीय कमाल है । डिजाइनर नायटू ने इस का परिचय देते हुए कहा कि बांस पुनरुत्पादन की विशेषता ही नहीं , दाम सस्ता और पर्यावरण संरक्षित भी है । बांस विश्व में सब से तेजी से चढ़ने वाली वनस्पति में से एक है , आम तौर पर तीन चार साल में वह पक्का हो जाता है , काटने के बाद वह फिर जल्दी ही उग जाता है , साथ ही वह जिस कार्बन मात्रा का ग्रहण करता है , वह साधारण पेडों की चार गुनी होती है । इस से यह जाहिर है कि भारतीय राष्ट्रीय भवन में बांस का प्रयोग भारत की युक्तिसंगत रुप से प्राकृतिक सन्साधनों का इस्तेमाल करने और प्रकृति के साथ सहअस्तित्व रहने की धारणा सुंदर ढंग से अभिव्यक्त करता है ।
इस के अलावा सौर ऊर्जा पट्टी , जलीय पर्दा झरना , हवादार ईंटे और बिजली चक्की आदि पर्यावरण संरक्षण की डिजाइनें भारतीय राष्ट्रीय भवन के हर कोने कोने में नजर आती हैं , जिस से ऊर्जा किफायत , पर्यावरण संरक्षण और अनवरत विकास की धारणाएं अभिव्यक्त हो गयी हैं ।
भारतीय राष्ट्रीय भवन में ऐतिहासिक प्रसंग का अनुसरण करते हुए यह देखा जा सकता है कि शहर व गांव , परम्परा व आधुनिकता किस तरह सामंजस्यपूर्ण रुप से रहते हैं । भारतीय वासियों की मान्यता है कि सामंजस्य होने पर भी भिन्निता यानी एकीकरण व विविधता साथ साथ रहती है , बहुपक्षीय संस्कृतियों का सामंजस्यपूर्ण मिलाप शहर द्वारा जीवन को और सुंदर बनाये जाने की कुंजी है । भारत का क्षेत्रफल विशाल है , जहां जातीय संस्कृतियों व भाषाओं की विविधतापूर्ण परम्पराएं बनी रही हैं , वह प्राचीन व आधुनिक संभ्यताओं वाला विशेष देश है । भारतीय राष्ट्रीय भवन में पर्यटक अंतरिक्ष सुरंग के माध्यम से यह देख पाते हैं कि भारत के विभिन्न वर्गों , शहरों व गांवों , भिन्न धर्मों और बहुपक्षीय समुदायों के बीच संतुलन , सामंजस्य व विकास के फारमूलों की किस तरह खोज की जाती है ।
यदि ऐसा कहा जाता है कि पर्यावरण धारणा और आधुनिक विज्ञान के व्यापक प्रयोग से भारतयी भवन के लिये ताजा प्राकृतिक माहौल उत्पन्न हुआ है , तो इस भवन में प्रदर्शित परम्परागत दस्तकारी कृतियों ने पर्यटकों को दूसरी दृष्टि से सचे भारत की छवि पेश की है । चाहे रंगबिरंगी साड़ियां , विविधतापूर्ण दस्तकारी कृतियां हों या सूक्ष्म चांदी व सोने आभूषण व ताज महल के सुंदर नमूने क्यों न हों , सबों पर पुरानी गंगा नदी संभ्यता की निचोड़ अंकित है ।
वात्सव नामक दुकानदार की दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है , तोल मोल की आवाज सुनाई देती है । दुकानदार वात्सव ने हमारे संबवाददाताओं से कहा कि विश्व मेले को उद्घाटन हुए तीन महीनों से अधिक समय में अपना बिजनीज खूब चलता है ।
उन का कहना है कि मौजूदा विश्व मेले में हिस्सेदारी के लिये उन्हों ने विशेष तैयारी कर रखी हैं । उन्हें बेहद खुशी हुई है कि चीनी लोगों के साथ भारतीय विशेषताओं वाले मालों का उपभोक किया जाता है । यहां पर चीनी लोग भारतीय दस्तकारी कृतियों को बहुत पसंद करते हैं । विशेषकर भारतीय कालीनं , बालियों और ड्रेसिंग जैसी परम्परागत विशेषता वाली छोटी कलात्मक कृतियों से खासा लगाव है ।
चीनी भाषा न जानने पर वास्सव को पर्यटकों के साथ बातचीत करने में ज्यादा दिक्कत नहीं है । उन्हों ने कहा
हालांकि मुझे चीनी भाषा नहीं आती है , पर मैं चीनी पर्यटकों के साथ इशारे के जरिये आदान प्रदान कर लेता हूं । मैं अत्यंत प्रसन्न हूं कि चीनी पर्यटकों के साथ आमने सामने सम्पर्क करता हूं । यहां पर हम ने बहुत ज्यादा मित्र बनाये हैं और उन के साथ भारतीय संस्कृति का उपभोग करते हैं ।
भारतीय राष्ट्रीय भवन के रिंग बरामदे पर दो भारतीय रेस्तरां भी खुले हुए हैं , पर्यटक यहां पर शुद्ध स्वादिष्ट भारतीय खाना खा सकते हैं । भारतीय रुमाल रोटी , करी चिकन , मेंक्वो दही और वाना प्रकार वाली सब्जियां खाने को मिलती हैं । रेस्तरां के मालिक ने इस की चर्चा में कहा कि भारतीय खाने की अलग पहचान विविधतापूर्ण मसालों पर निर्भर है , खाने में प्रयुक्त करी आदि सभी मसाले हवाई जहाज से भारत से लाये गये हैं ।
भारतीय रेस्तरां में हमारे संवाददाता की मुलाकात उत्तर चीन के हो पेह प्रांत से आयी पर्यटक फंग से हुई , वह अपने बच्चे के साथ बड़े मजे के साथ करि मछली गेंद खा रही थी । उस ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय भवन में प्रदर्शित गाढ़ी सांस्कृतिक विशेषता बेहद मनमोहक है ।
भारतीय राष्ट्रीय भवन की वास्तु शैली अलग पहचान बना लेती है , बहुत आकर्षित है , इतना ही नहीं , यहां पर शुद्ध स्वादिष्ट भारतीय खाना भी उपलब्ध है ।
भारत के केरल का सुखधन दंपति भी विशेष तौर पर शांगहाई विश्व मेला देखने आया है । भारतीय राष्ट्रीय भवन की चर्चा में उन्हों ने कहा
विश्व मेले में आये हुए दो दिन हुए हैं , भारतीय भवन उन के सब से पसंदीदा भवनों में से एक भी है । इस के अलावा वे म्येंमार , लाओसी , कोरिया और वियतनाम आदि देशों के भवन में भी गये हैं ।
वर्तमान में भारतीय भवन में प्रतिदिन औसत तीस हजार पर्यटक आते जाते हैं , अभी तक कुल तीस लाख से अधिक देशी विदेशी पर्यटक आ चुके हैं ।