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संयुक्त चिकित्सा मिशन चीन की यात्रा-4
2010-09-28 13:58:31
पिछले हफ्ते संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2(Joint Medical Mission Part2) के तहत चीन की यात्रा पर आए भारत के 5 सदस्यीय चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल के साथ बिताए एक सप्ताह के अनुभव के बारे में आपको संक्षेप में बताने का प्रयास कर रही हूँ। आज आपको चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल के हपे प्रांत की राजधानी- शिजियाजुआंग में बिताए चौथे तथा आखिरी दिन के अनुभवों के बारे में बताऊँगी।

21 अगस्त की सुबह नाश्ता करने के बाद 10 सदस्यीय चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल को सभागार में एकत्रित होकर संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2 की प्रतिक्रिया व्यक्त करनी थी। दोनों देशों के चिकित्सकों को चिकित्सा मिशन के बारे में अपनी-अपनी राय, सुझाव तथा विचार व्यक्त करने थे। चिकित्सा मिशन अपने मकसद में कितना कामयाब रहा इस बारे में बताना था तथा भविष्य में चिकित्सा मिशन की कामयाबी तथा मकसद को किस प्रकार कायम रखा जाएँ, समाज के पिछड़े तबके के लोगों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने में किन कदमों को उठाया जाए, इस विषय पर चर्चा करनी थी।

सभागार में एकत्रित होकर हपे प्रांत के विदेश मामला कार्यालय के वरिष्ट अधिकारियों ने दिन की कार्यवाही आरंभ की।

सबसे पहले भारतीय चिकित्सकों ने अपने विचार व्यक्त किए। भारतीय चिकित्सकों में डॉ.राजेश धीर ने कहा कि यहाँ आकर अतिथि देवो भव के अर्थ को सही मायने में जाना और समझा। आपकी मेहमान नवाज़ी को हम जीवन भर याद रखेंगे। जहाँ तक व्यावसायिक मेलजोल की बात है तो उसके लिए हमारे पास पर्याप्त समय नहीं था। उम्मीद करता हूँ कि निकट भविष्य में इस प्रकार अन्य चिकित्सा विशेषज्ञता के लोग यहाँ आएँगे तथा एक दूसरे के साथ अपने अनुभव बाँटेंगे।उसके बाद डॉ. गुरुमूर्ति ने अपनी प्रतिक्रिया दी।कहा, आपकी मेहमान नवाज़ी ने हमारे दिल को छू लिया। वरिष्ठ अधिकारी जब हमें हवाई-अड्डे पर लेने आए तो मैं भावुक हो गया था। उन्होंने कहा कि यहाँ के अस्पतालों का दौरा करने पर मैंने जाना कि वे श्रेष्ठ हैं, यहाँ उपलब्ध सेवाएं तथा डॉक्टरों की प्रतिबद्धता देखते ही बनती है, दुनिया के श्रेष्ठ चिकित्सा उपकरणों का प्रयोग यहाँ किया जाता है। यहाँ आने का उद्देश्य और दर्शन था, ई.एन.टी कार्यप्रणाली में हमारा योगदान। डॉ. कोटनिस जिन्हें भारत में लोग शायद भूल गए हैं, यहाँ आकर जाना कि यहाँ अब भी लोग उनकी पूजा करते हैं। एक्युपंचर एक प्राचीन चीनी चिकित्सा पद्धति है, जिसे हम में से एक ने आजमाया और उससे उन्हें फायदा भी हुआ

डॉ. गुरुमूर्ति के बाद डॉ. श्रीधरा रेड्डी ने भी मेहमान नवाज़ी की तारीफ की। उन्होंने जोर दिया कि चिकित्सा मिशन को चिकित्सा विशेषज्ञों के आदान प्रदान के पहलू पर काम करना चाहिए। हम यहाँ अधिक दिन रहकर यहाँ के चिकित्सकों के साथ हर दिन कम-से-कम आधा दिन साथ में काम करें। उन्होंने संयुक्त चिकित्सा मिशन से ऐसा करने का अनुरोध किया।

डॉ. गुरुमूर्ति के बाद डॉ.लवनीश ने अपने विचार रखें। उन्होंने कहा कि भारत में अधिकतर लोग चीन के बारे में अधिक नहीं जानते। हमें यहाँ के चिकित्सकों के साथ अधिक समय बिताने का मौका नहीं मिला लेकिन जितना जानने को मिला उससे मैंने यह देखा कि यहाँ मरीजों की तादाद बहुत है लेकिन फंड और मानक स्तर पश्चिमी देशों के मुकाबले कम हैं। भारत-चीन दोनों ही विकासशील देश हैं।चीन में प्रयोग होने वाले चिकित्सा उपकरण बहुत अच्छे हैं जिसने चीन को आगे लाकर खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि यहाँ आकर हम ने जाना कि अपने दोस्तों को कभी नहीं भूलना चाहिए। चीनी लोग संगठित, समयनिष्ठ और प्रतिबद्ध हैं। इनकी मेहमान नवाज़ी लाजवाब है।

डॉ.लवनीश के बाद डॉ.मोहन रेड्डी ने कहा कि मेरे साथी चिकित्सकों ने वह सब कुछ कह दिया है जिसे मैं कहना चाहता हूँ। इतने कम समय में आपने हमें मिशन के वास्तविक विचार को महसूस करवाया है। हमें लगा कि हम किस तरह चीनी लोगों से बातचीत कर पाएंगे, कैसे काम करेंगे, हमारी सारी भ्रांतियाँ दूर हो गईं।

भारतीय चिकित्सकों के बाद चीनी चिकित्सकों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। सबसे पहले डॉ.आन ने कहा कि यह हमारे लिए एक बहुत अच्छा अनुभव था। संयुक्त चिकित्सा मिशन के जरिए हम ज़रुरतमंद लोगों की मदद कर सकें। भारतीय डॉक्टरों के साथ काम करने पर हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। हालांकि हमें समय कम मिला।

डॉ.आन के बाद डॉ.ज़ाओ ने सभी आयोजकों का संयुक्त चिकित्सा मिशन आयोजित करने का धन्यवाद किया और कहा डॉ.कोटनिस से हमें शक्ति तथा प्रेरणा मिलती है।

उसके बाद डॉ.गाओ ने बताया कि सर्जरी वीडियो से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। हम चाहते हैं कि जब हम भारत जाएँ तो हमें मुफ्त चिकित्सा करने के अधिक मौके मिलें जिससे हम वहाँ के लोगों को अधिक जान सकें। हम अधिक बौद्धिकआदान-प्रदान की अपेक्षा करते हैं।

डॉ.गाओ के बाद डॉ.ऊ ने कहा कि चिकित्सा के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी भारत के साथ बौद्धिकआदान-प्रदान की आवश्यकता है। वे यह सलाह देना चाहते हैं कि चिकित्सा मिशन के बाद भी चिकित्सकों का आपस में विचारों का आदान-प्रदान ई.मेल, फोन के जरिए रहना चाहिए। मिशन को भविष्य को ध्यान में रखकर दीर्घकालिक व्यवस्था का प्रबंध करना चाहिए,ताकि दोनों देश एक टीम की तरह काम कर सकें। छात्र दोनों देशों में पढ़ सकें ताकि वे स्थानीय लोगों तथा असहाय वर्ग की मदद कर सकें। उनका इलाज करें तथा डॉ.कोटनिस की सेवा-भावना को आगे लेकर बढ़ते चलें। जो दोनों देशों की मैत्री के लिए आवश्यक है।

अंत में डॉ.शन ने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण मिशन है, हमारे देश के लिए। बीजींग में हमारी मुलाकात कई बड़े नेताओं से हुई। हम आभारी हैं इस मिशन के। इस मिशन के दो लक्ष्य हैं। पहला- चिकित्सा मिशन निभाना और दूसरा- हमारे रिश्ते को मज़बूत बनाना। हमें लगा कि हम एक-दूसरे से भाषा के कारण बात नहीं कर सकेंगे परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि हम सब बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं। डॉ.कोटनिस और डॉ.बैथयून की सेवा-भावना, लोगों के प्रति प्रेम को देखकर हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। चीन में कहा जाता है कि जो आपकी मदद करे उसे कभी भूलना नहीं चाहिए। हमारे देश चिकित्सा सुविधाओं में निवेश कर रहा है ताकि स्थानीय लोगों को इसका लाभ मिले। भारत और चीन में सहयोग के रिश्ते स्थापित हो ताकि चिकित्सा के व्यापक क्षेत्रों में बढ़ोतरी हो और हमारा रिश्ता मज़बूत बने।

अंत में स्वास्थ्य मंत्रासय के श्री न्यू ने संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2 की सफलता पर सबको हार्दिक बधाई दी।इस के साथ चीनी चिकित्सकों को भारत जाने से पूर्व अंग्रेज़ी भाषा सीखने पर ज़ोर दिया और यह भी कहा कि एक-दूसरे को बेहतर जानने के लिए पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2 का चीन का दौरा यही समाप्त हुआ।

दोपहर के भोजन के उपरांत हम भारतीय चिकित्सकों के साथ हपे से बीजींग की ओर रवाना हुए।

आशा करती हूँ कि संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2 की जानकारी पाकर आपको अच्छा लगा होगा। अब मुझे इज़ाजत दें, नमस्कार।

हेमा कृपलानी

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