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संयुक्त चिकित्सा मिशन चीन की यात्रा-3
2010-09-20 10:53:35
पिछले हफ्ते संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2(Joint Medical Mission Part2) के तहत चीन की यात्रा करने आए भारत के 5 सदस्यीय चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल के साथ बिताए एक सप्ताह के अनुभव के बारे में आपको संक्षेप में बताने का प्रयास कर रही हूँ। आज आपको चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल के हपे प्रांत की राजधानी- शिजियाजुआंग में बिताए तीसरे दिन के अनुभवों के बारे में बताऊँगी।

20 अगस्त की सुबह 10 सदस्यीय चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल ने बैथयून इंटरनेश्नल पीस अस्पताल का दौरा किया। अस्पताल के वाइस प्रेसीडेंट श्री ली शियाओमिंग जो सेना के जनरल भी हैं ने चिकित्सक प्रतिनिधि मंडल का अपने अस्पताल में भव्य स्वागत किया। सभा-भवन में उन्होंने चिकित्सकों को एक वीडियो दिखाया जिसमें बैथयून इंटरनेश्नल पीस अस्पताल के इतिहास, निर्माण, चिकित्सा-सेवा, सुविधाओं से लेकर अस्पताल में प्रयोग होने वाली तकनीक और डॉक्टरों का विस्तृत ब्यौरा दिखाया गया था। इस अस्पताल की नींव डॉ. बैथयून ने जून 18 सन् 1938 में रखी थी तथा नवम्बर 12,1939 में उनका स्वर्गवास हुआ। डॉ.कोटनिस का स्वर्गवास 1942 में जब वे 32 वर्ष के थे, मरीजों का इलाज करते हुए लंबी बीमारी के कारण हुआ था। यहाँ डॉ. बैथयून और डॉ.कोटनिस के मैमोरियल हॉल का निर्माण 1975-1976 में किया गया था। तब से लेकर आजतक यहाँ डॉ. बैथयून और डॉ.कोटनिस के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी कहानी चित्रों में सहेज कर दिखाई गई है। इसे देख सभी चिकित्सक भाव-विभोर हो गए। प्रदर्शनी देखते समय जनरल श्री ली शियाओमिंग ने बताया कि एक दिन पहले ही फोन पर डॉ.कोटनिस की पत्नी के पुत्र से उनकी बात हुई थी और उन्हें पता चला कि वे अस्पताल में निमोनिया से जूझ रही हैं, वे 95 साल की हैं। बात करते समय पता चला कि डॉ.कोटनिस के पुत्र की मृत्यु 24 वर्ष की कम आयु में किसी बीमारी के कारण हुई थी। इसके साथ-साथ श्री ली शियाओमिंग ने यह भी बताया कि यह अस्पताल 1948 से इसी स्थान पर है। यह चीन के मानक स्तर के अनुसार ग्रेड3 लेवल ए अस्पताल है और यहाँ आई एस ओ 9000 स्वीकृत तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस अस्पताल के 1800 रिसर्च पेपरस दुनिया भर में प्रकाशित किए गए हैं और इन्हें 26 इनाम सेना और स्थानीय स्तर से मिले हैं। यहाँ रह्युमटिसम, जच्चा-बच्चा, कारडिएक तथा ई.एन.टी केन्द्र के अलावा कई अनेक विशेषज्ञ केन्द्र हैं। इस अस्पताल का दौरा करते समय भारतीय चिकित्सक भी भारत के अस्पतालों के मानक स्तर का विवरण दे रहे थे। यहाँ का दौरा करने के बाद चिकित्सक बहुत संतुष्ट थे।

इस अस्पताल का दौरा करने के बाद सब लोग दोपहर का भोजन करने गए। आज के भोजन का आयोजन डॉ. सु वेई जो सेकंड अस्पताल एफइलिएटिड टू हपे मेडिकल युनिवरसीटी के वाइस प्रेसिडंट हैं और संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 1 के सदस्य रह चुके हैं, ने किया था। भोजन के समय बातचीत के दौरान वे हमें संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 1 के अनुभवों के बारे में बता रहे थे। इस दौरान मेरी मुलाकात संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 1 के दो चिकित्सकों से हुई तो मैंने उनसे उनके भारत दौरे के अनुभवों के बारे में जब पूछा, तो उन्होंने बताया कि भारत में चीन की अपेक्षा चिकित्सा खर्च कम है तथा वहाँ जिला स्तर के अस्पतालों में विशेषज्ञों की संख्या यहाँ से कम है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में वे चंडीगढ़ तथा हैदराबाद गए थे। इन में से एक गायनोकोलोजिस्ट हैं और दूसरे बच्चों के चिकित्सक।गायनोकोलोजिस्ट ने बताया कि भारत में प्राकृतिक रूप से बच्चों का जन्म देना ज्यादा होता है,लेकिन चीन में आपरेशन द्वारा बच्चों का जन्म भारत की अपेक्षा अधिक है।उसका एक अहम कारण यह है कि क्योंकि चीन में परिवार-नियोजन के चलते माताएँ जोखिम नहीं उठाना चाहती इसलिए इसकी महत्ता को समझते हुए वे आपरेशन द्वारा बच्चों को जन्म देती हैं। बच्चों के चिकित्सक ने बताया कि जिला स्तर के अस्पतालों में बच्चों में पोषण की कमी देखी गई। उनका कहना है, लेकिन भारतीय चिकित्सकों के अनुभव और कुशलता का स्तर बहुत ऊंचा तथा बेहतर हैं, हमें उनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए।

दोपहर के भोजन के उपरांत सभी चिकित्सक सेकंड अस्पताल एफइलिएटिड टू हपे मेडिकल युनिवरसीटी का दौरा करने गए तथा वहाँ के मरीजों का मुफ्त इलाज किया। उन्होंने अस्पतालों के वार्ड, चिकित्सकों के कमरों का दौरा किया, स्पेशलिस्ट केन्द्रों का दौरा करने के बाद भारतीय चिकित्सकों ने चीनी चिकित्सकों की सहायता तथा उनके साथ मिलकर अस्पताल के ई.एन.टी मरीजों का इलाज किया। यह क्रम लगभग 2 घंटे चला।उसके बाद भारतीय चिकित्सकों ने चीनी चिकित्सकों को ई.एन.टी संबंधित सर्जरी करने की सी.डी दिखाई तथा उस पर चर्चा की।

इस प्रकार हपे प्रांत की राजधानी- शिजियाजुआंग में बिता तीसरा दिन बहुत व्यस्त पर ज्ञानवर्धक रहा चिकित्सकों के लिए तथा हम सब के लिए। एक आम इंसान अपने इलाज के लिए संबंधित चिकित्सक से मिलकर दवा लेकर आ जाता है, पर उसके पीछे अस्पताल में चिकित्सक से लेकर नर्स, अन्य कर्मचारियों से लेकर अस्पताल प्रशासन का कितना बड़ा हाथ होता है, इस प्रणाली को जानने, समझने का मेरे लिए भी एक अनुभव था।

इतनी मेहनत के पश्चात पेट में चूहे कूदना तो स्वाभाविक था। आप ठीक समझे रात के भोजन का समय हो गया था। आज रात के भोजन का आयोजन किया था मैडम यू सुवेई ने जो हपे प्रांतीय सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की डिप्डी डायरक्टर जनरल हैं। आप सोच रहे होंगे कि इतने गणमान्य व्यक्तियों के साथ भोजन के अनुभवों के बारे में क्यों बात नहीं की जा रही, तो लीजिए यह शिकायत भी दूर किए देते हैं। चीन के रीति-रिवाज और संस्कृति जाननी है तो किसी चीनी मित्र के साथ भोजन कीजिए। किस प्रकार बैठा जाए, कहाँ बैठा जाए, कैसे खाया जाए, क्या खाया जाए, क्या बोला जाए, क्यों बोला जाए इन सब का क्रैश क्रोस है चीनी मित्र के साथ भोजन करना।जी, सही कह रही हूँ, मेरा विश्वास कीजिए।

रात के भोजन के बाद मैंने चीनी चिकित्सकों से बात की।सब ने अपने अनुभव बताए तथा संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2 किस प्रकार भारत-चीन के संबंधों को और अधिक मज़बूत करने में सहायक हैं। उन्होंने चिकित्सा संबंधी कितनी जानकारियाँ प्राप्त कीं तथा चीनी चिकित्सकों को भारत की चिकित्सा प्रणाली के बारे में पता चला जो निकट भविष्य में उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। चीनी चिकित्सकों ने यह भी कहा कि वे सब अपनी भारत की यात्रा के बारे में बहुत उत्साहित हैं क्योंकि वे सब पहली बार वहाँ जाएँगे और भारतीय चिकित्सकों के साथ यहाँ बिताए समय से उन्हें भारत तथा वहाँ के लोगों के बारे में जानने में बहुत मदद मिली है।

इस प्रकार संयुक्त चिकित्सा मिशन-भाग 2(Joint Medical Mission Part2) का एक दिन और सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। हम अपने अगले कार्यक्रम में आपको अंतिम दिन की विस्तृत जानकारी देंगे, तब तक के लिए इज्जाजत दें, नमस्कार।

हेमा कृपलानी

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