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शहरी पदचिन्ह व मानव जाति की संभ्यता का साक्षी
2010-08-02 16:05:08

सब लोग जानते हैं कि अब शांगहाई विश्व मेला आज की दुनिया में ध्यानाकर्षक विषयों में से एक है , विश्व मेले के उद्यान में आविष्कृत प्रदर्शनी भवन , बुद्धिमान वैज्ञानिक व तकनीक तत्व और मजेदार इंटरएक्टिव कार्यक्रम बड़ी तादाद में दर्शकों को अपनी ओर खिंच लेते हैं । इस के साथ ही कुछ प्रदर्शनी भवनों ने दर्शकों के लिये विशेष तौर पर शहर प्रक्रिया अभिव्यक्त करने और मानव जातीय सम्भेता को सूचित करने वाले असाधारण सांस्कृतिक अवशेष भी दर्शा दिये हैं ।

शांगहाई शहर के फू शी क्षेत्र में स्थापित शहरी पदचिन्ह भवन शांगहाई विश्व मेले के पांच प्रमुख प्रदशनी भवनों में से एक है , इस प्रदर्शनी भवन में वैश्विक शहरों की अपने उद्गम से लेकर आधुनिक सम्भेता की ओर चलने की पूरी प्रक्रिया दर्शायी जाती है । इस प्रदर्शनी की ईजात यह है कि विश्व के विभिन्न देशों से आये तीन सौ से अधिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेषों के जरिये दर्शकों को शहरों के उद्गम और छोटे से बडे होने की पूरी प्रक्रिया से अवगत कराया जाता है । प्रदर्शनी भवन की दूसरी मंजिल पर प्रदर्शित कुछ कांस्य पात्र ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेष सब से आकर्षित हैं , दर्शक इस से चीनी शहरी विकास के प्रारम्भिक काल के सुराग देख पाते हैं और प्राचीन मानव जाति की बुद्धिमत्ता और ईजात को महसूस कर सकते हैं ।

शहरी पदचिन्ह प्रदर्शनी भवन के कर्मचारी छ्यो ई मिंग ने दो सांस्कृतिक अवशेषों की ओर इशारा करते हुए कहा

ये दोनों ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवेशष शहर के विकास की संकल्पना का प्रतीक है । उन में से एक है चंगहोई का कांस्य पात्र । यह कांस्य पात्र बर्फ और मदिरा रखने का काम देता है , यही नहीं , बर्फ उस में नहीं पिघल जाती है और मदिरा भी खराब नहीं होता , वह सचमुच प्राचीन काल का फ्रीज कहा जा सकता है और चीन के प्राचीन शहरों के विकास की एक ठेठ मिसाल ही माना जा सकता है । प्रदर्शित दूसरा सांस्कृतिक अवशेष है कांस्य दीप । इस दीप की विशेषता यह है कि दीप में तेल जलने के बाद जो धुआं निकलता है , यह धुआ ऊपर जाने के बजाये दीप के गले से नीचे जाकर पानी से भरे पेट में पिघल जाता है । वास्तव में आज के जुबान से वह एक प्रकार की कम कार्बन तकनीकी ही है ।

मानव जाति के समाज के विकासक्रम में हरेक देश में कुछ उदास और आनन्द ऐतिहासिक घटना हुई थी , जबकि यह घटना समय गुजरने के साथ साथ धीरे धीरे शहर की स्मृति रह गयी है । शांगहाई विश्व मेले के लक्जमबर्ग प्रदर्शनी भवन के सामने सुनहरी कुमारी की मूर्ति खड़ी हुई नजर आती है , ठीक यही राष्ट्रीय स्तरीय दर्लभ ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेष प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान लक्जमबर्ग की जनता द्वारा जर्मन आक्रमण का विरोध किये जाने के इतिहास का विवरण करता है । लक्जमबर्ग प्रदर्शनी क्षेत्र के जनरल प्रतिनिधि रोबर्ड गोबेल ने कहा कि आशा है कि सुनहरी कुमारी प्रदर्शित होने से लोगों तक शांतिप्रिय विश्वास व भावना पहुंचायी जाएगी ।

इस सुनहरी मूर्ति का लक्जमबर्ग के लिये विशेष महत्व है । विशेष तौर पर लक्जमबर्ग से यहां पहुंचाये जाने से पहले वह लक्जमबर्ग के संविधान चौक पर खड़ी हुई थी । वह प्रथम विश्व महा युद्ध के बाद स्थापित हुई थी और वह नाज़ी जर्मनी आक्रमण का मुकाबला करने का प्रतीक भी है । वर्तमान यह मूर्ति शांति का चिन्ह बन गयी है , सुनहरी कुमारी मूर्ति का वजन डेढ़ टन है और उस पर सोने की पतरें है । यह मूर्ति भावी 6 माहों में शांगहाई विश्व मेला उद्यान में रहेगी , वह चीनी जनता और शांगहाई विश्व मेले के प्रति लक्जमबर्ग की जनता की शुभकामनाओं का प्रतिनिधित्व रखती है ।

सुनहरी कुमारी को छोड़कर शांगहाई विश्व मेले में और एक नारी मूर्ति भी बेहद ध्यानाकर्षक है , वह है डेंमार्क प्रदर्शनी भवन का धरोहर छोटी सुंदरी मछली की कांस्य मूर्ति । इस मूर्ति का मूल रुप आंडरसेन की बाल कथा समुद्र की बेटी में महिला मुख्य पात्र है , डेंमार्क के मूर्तिकार एडवार्ड एरिक्सेन ने 1913 में इस मूर्ति को स्थापित किया । तब से लेकर आज तक यह मूर्ति चुपचाप से कोबनहेगन के लम्बा बांध पार्क में खड़ी हुई है । पर आज वह अपनी जन्मभूमि से शांगहाई विश्व मेले में लाखों करोड़ों दर्शकों के लिये आ पहुंची है । शांगहाई विश्व मेले के डेंमार्क के जनरल प्रतिनिधि बो ब्रामसेन ने इस का परिचय देते हुए कहा

छोटी मेरमैड 2010 शांगहाई विश्व मेले के डेंमार्क भवन का धरोहर है । वह बहुत सुंदर दिखाई देती है , चेहरे पर जो विचारशील भंगीमा नजर आती है , मानो वह अपने अविस्मरणीय प्रेमिका राजकुमार की याद कर रही हो ।

सुनहरी कुमारी और छोटी मेरमैड देखने से दर्शकों को इतिहास और बाल कथा दुनिया की याद आ सकती है , पर शांगहाई विश्व मेला उद्यान में छूने वाला ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेष भी दर्शकों को आकर्षित कर लेता है । जब कोई पर्यटक चेक के चाली पुल को देखने जाता है , वह जरूर ही अपनी खुश किस्मत के लिये सौभाग्यशाली लटकी मूर्ति छूता है । अब चाली पुल की दोनों कांस्य लटकी मूर्तियां प्रथम बार पुल से हटाकर शांगहाई विश्व मेले आ पहुंच गयी हैं , ताकि कोने कोने से आने वाले लाखों करोड़ों दर्शक उसे छूने से खुश किस्मत आ सके । चेक भवन के कर्मचारी कू थ्येन मिन ने कहा

इस पट्टे का नाम है छूने से खुश किस्मत , कहा जाता है कि जब हाथ से इस शीट मेटल छू जाता है , तो खुश किस्मत आ जाती है । और तो और चैकी लोगों की मान्यता है कि बायं हाथ से छूने से और ईमानदार है , क्योंकि बायं हाथ हृदय से अधिक नजदीक है । ये दोनों कांस्य शीट मेटल इतिहास में पहली बार चाली पुल से अलग होकर विदेश में आये हैं । शांगहाई विश्व मेले में चेक प्रदर्शनी भवन बडा सौभाग्यशाली है कि ये दोनों राष्ट्रीय स्तर वाले ऐतिहासित व सांस्कृतिक अवशेष अपने भवन के धरोहर के रुप में प्रदर्शित हुए हैं ।

न्यूजीलैंड प्रदर्शनी भवन के प्रवेश मुंह के पास 18 हजार टन भार वाला जेट पत्थर खड़ा हुआ है । मादा का प्रतीक होने वाला यह जेट पत्थर न्यूजीलैंड के मोली वासियों ने झील में खोज लिया है , इधर सालों में यह भीमकाय जेट पत्थर विश्व के विभिन्न देशों में दर्शाया जाता है । पानी में प्राप्त इस जेट पत्थर को छूने से लोगों को प्रकृति से जा मिलने का अनुभव होता है । न्यूजीलैंड प्रदर्शनी भवन के कर्मचारी श्येन शिन ने इस जेट पत्थर का उल्लेख करते हुए कहा

यह जेट पत्थर मादा का द्योतक है और वह न्यूजीलैंड की विशेष पहचान है और उसे पुनम कहलाया जाता है । यह एक बिलकुल शुद्ध प्राकृतिक जेट पत्थर है , माली वासियों ने झील में उस का पता लगा लिया है । मोली वासियों ने वह न्यूजीलैंड सरकार को भेंट किया है , वह न्यूजीलैंड की ओर से सारी दुनिया में दर्शाया जाता है , अब दुनिया में करीब दो करोड़ लोगों ने उसे छू लिया है । पिछले जापानी एक्सपो 2005 एची में वह प्रदर्शित हुआ है ।

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