चीन और भारत के पुराने मैत्रीपूर्ण आवाजाही के इतिहास में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत के एक अभूतपूर्ण साहित्यकार , विचारक होने के नाते , उनकी रचनाएं सन 1915 में चीन में आयी, जिस ने उस समय चीन के नयी संस्कृति आन्दोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी और चीन के बहुत से आधुनिक लेखकों की रचनाओं में उनकी विलक्षण रचनाओं ने भारी प्रभाव छोड़ा था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 149 वीं जन्म जयंती के समय, चीन स्थित भारतीय दूतावास ने पेइचिंग में विविध गतिविधियों का आयोजन किया। चीन और भारत के बीच राजनयिक संबंध की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित भारत उत्सव के अनेक गतिविधियों में महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर की स्मृति जयंती ने चीन और भारत की सांस्कृतिक जगत के लोगों के बीच आदान प्रदान व आपसी मित्रता को अधिक प्रगाढ़ किया है।
7 मई को चीन स्थित भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित स्मृति समारोह में पेइचिंग विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संगीत कालेज, चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी और चीनी कम्युनीकेशन यूनिवर्सिटी आदि उच्च शिक्षालयों के विशेषज्ञों ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मनोहर कविताओं का आन्नद उठाने के साथ ,चीन और भारत की मित्रता के लिए अपना महान योगदान करने वाले इस अभूतपूर्व साहित्यकार के संस्मरण में उनकी सराहना भी की। पेइचिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर चांग क्वांग लिंग का मानना है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर न केवल चीन के पाठकों में एक लोकप्रिय विदेशी लेखक ही नहीं हैं बल्कि चीनी जनता के घनिष्ठ मित्र भी हैं। प्रोफेसर चांग ने हमें बताया चीन में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं का अनुवाद करने वाले पहले सज्जन, चीन के वरिष्ठ बुद्धिजीवी छन तू श्यो थे, वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक संस्थापक भी हैं। उन्होने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता गीतांजलि की चार कविताओं को चीनी में अनुवाद किया था और 1915 में खुद अपनी संपादन पत्रिका नयी युवा के 10वें संस्करण में इन कविताओं को प्रकाशित भी किया । तब से चीनी पाठकों में इस महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पहचान बनी , उनकी अनेक रचनाएं बाद में चीनी में अनुवाद होने लगी और चीन के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत के प्रसिद्ध कवि, दर्शनशास्त्री व विचारक हैं । 1913 में वे नोबेल साहित्य पुरूस्कार से सम्मानित प्रथम एशियाई व्यक्ति थे । रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विचार व उनकी रचनाओं ने आधुनिक साहित्य पर भारी प्रभाव डाला है। 1915 से उनकी रचनाएं चीन में आने लगी और अब तक चीन के प्रकाशन में सदा बहार कविता संग्रह रही हैं। उनकी रचनाओं ने चीन के पीढ़ी दर पीढ़ी साहित्यकारों पर गहरी छवि छोड़ी है। चीन के जाने माने कवि व लेखक को मो रो, पिन सिंग और श्वी ची मों आदि साहित्यकारों की रचनाओं में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं ने अपना गहरा असर छोड़ा है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी विलक्षण रचनाओं में प्रेम भावना, व्यक्तिगत स्वतंत्र भावना तथा देश भक्त की उत्कट भावना की प्रतिभा दिखलाई हैं। आज भी उनकी कविताएं चीनी युवा की मनपसंद कविता संग्रह हैं और उनकी रचनाओं के स्रोत भी हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर न सिर्फ चीन के पाठकों के पसंदीदा भारतीय लेखक हैं, वे चीनी जनता के एक घनिष्ठ मित्र भी हैं। अपनी 20 साल की उम्र में उन्होने अंग्रेजी उपनीवेशवादी के चीन में अफीम व्यापार-युद्ध छेड़ने की कड़ी निन्दा की और इस पर एक आलेख भी जारी किया । 1924 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर चीन की यात्रा पर आए। उन्होने कहा कि मैं एक पर्यटक की हैसियत से चीन में उसकी खूबसूरत नजारे देखने आया हूं, मैं मित्रता की खोज के लिए आया हूं , मैं चीन की प्राचीन संस्कृति की पूजा के लिए आया हूं। उन्होने घर आया हूं शब्द से अपनी चीन यात्रा का वर्णन किया। पेइचिंग विश्वविद्यालय के भारतीय अतिथि प्रोफेसर देवेन्द्र शुकला ने जानकारी देते हुए कहा कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की यात्रा के दौरान हर जगह विभिन्न जगतों के लोगों ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। अपनी 50 दिन की चीन यात्रा में उन्होने लगभग आधे चीन की यात्रा की और अनेक चीनी लेखकों के साथ मित्रता बढ़ाई , उन्होने अपना 64 वां जन्म दिन भी पेइचिंग में मनाया था। डाक्टर शुकला ने कहा(आवाज 4) रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 1924 में चीन की यात्रा की थी। इस बार की यात्रा ने चीन और भारत के संबंध का एक नया अध्याय खोला , दोनों देशों की हजार साल पुरानी मित्रता ने नयी जीवन शक्ति का प्रसार किया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने हांगचओ, नानचिंग, पेइचिंग और हानखओं आदि शहरों की यात्रा भी की। उन्होने बड़ी उत्साहपूर्ण चीन के अनेक जाने माने विद्वान, लेखक, साहित्यकार व छात्रों से भी मुलाकात कीं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी यात्रा के संस्मरण को अपनी चीन में बातचीत नामक पुस्तक में लिखी। इस बार की चीन यात्रा में उन्हे सम्राट और महान गुरू का सम्मान मिला था।
चीन से भारत लौटने के बाद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कोलकता में स्थापित अपने शान्तिनिकेतन में चीनी कालेज की स्थापना कर चीनी भाषा, साहित्य की पढ़ाई व अध्ययन करना शुरू किया। चीन के अनेक मशहूर विद्वानों व कलाकारों ने शान्तिनिकेतन के चीनी कालेज में शिक्षा लेने के साथ वहां काम भी किया था, इन में चीन के सबसे मशहूर चित्रकार श्वी पए हुंग भी हैं।
1937 में जापानी साम्राज्यवाद ने चीन के खिलाफ आक्रमणकारी हमला बोला, रवीन्द्रनाथ ठाकुर फिर एक बार चीन के पक्ष में खड़े हुए और अपनी कविताओं व रचनाओं से उन्होंने जापानी साम्राज्यवाद की कड़ी निन्दा की और चीन के न्यायपूर्ण संघर्ष के प्रति समर्थन प्रकट किया। प्रोफेसर चांग ने इस की चर्चा करते हुए कहा चीनी जनता के जापान आक्रमणकारियों के खिलाफ युद्ध के दौरान, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कथित जापानी देश भक्त कवि को अपनी भेजी एक खुली चिट्ठी में उनके जापानी आक्रमणकारियों का ढिंढोरा पीटने की कड़ी आलोचना की और क्रोध भरे स्वर में कहा कि अन्तिम विजय अवश्य चीन की होगी। जापान को अपने मुंह की खानी ही पड़ेगी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर दृढ़ता से जापान के आक्रमणकारी युद्ध के खिलाफ चीन का समर्थन करते रहे। इस दौरान उन्होने अपने चीनी दोस्तों से कहा कि मुझे विश्वास है कि आप जरूर विजय होगे। जब आप विजय होंगे , मैं फिर एक बार चीन की यात्रा करूंगा।
अफसोस की बात है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर चीनी जनता के जापानी आक्रमणकारी युद्ध की विजय का दिन न देख सके। 7 अगस्त 1941 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर चीनी जनता की गहरी प्रेम भावना लिए हमेशा के लिए हमसे जुदा हो गए। प्रोफेसर चांग ने कहा रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक प्रसिद्ध विश्व लेखक ही नहीं हैं बल्कि वे चीनी जनता के घनिष्ठ मित्र भी हैं, रवीन्द्रनाथ ठाकुर हमेशा चीनी जनता के दिल में अमर रहेंगे।