15 से 16 मई तक दूसरा चीन-भारत मंच चीनी जन वैदेशिक मैत्री संघ के शांति भवन में आयोजित हुआ। यह मंच चीनी जन वैदेशिक मैत्री संघ एवं चीन-भारत मैत्री संघ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। चीन स्थित भारतीय दूतावास , भारतीय चीनी अनुसंधान संस्था, हपेई सागर ग्रुप, यूरोपीय व अमेरिकी विद्यार्थी संघ व चीन व पृथ्वीव्यापी अनुसंधान केंद्र ने समर्थन दिया। चीन, भारत, अमेरिका, जापान एवं क्यूबा से आये 200 से ज्यादा विद्वानों एवं मीडिया संस्थाओं के पत्रकारों ने संस्कृति, पर्यावरण संरक्षण, अर्थव्यवस्था, राजनीति, शिक्षा, राजनयिक आदि क्षेत्रों के मुद्दों पर व्यापक विचार विमर्श किया।
वर्ष 2010 चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ है। इससे पहले कि 20 शताब्दी के 40 के दशक के अंत में दोनों देशों को लम्बे समय के संघर्ष के बाद क्रमशः स्वतंत्रता व मुक्ति मिली है। दोनों का बराबर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।भारत गैर समाजवादी देशों में नये चीन के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना का पहला देश बना। जापानी आक्रमणकालीन युद्ध के दौरान, चीन में जापानी आक्रमणकालीन युद्ध की तीसरी रणभूमि होने के नाते, चीन, म्यांमार व भारत की रणभूमि की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत के झारखंड प्रदेश में अभी भी चीनी सैनिकों के कब्रिस्तान मौजूद हैं।
चीन व भारत दोनों पुरानी सभ्यता वाले देश हैं, जिनका एक-दूसरे पर असर होता है। दोनों एक दूसरे को प्रेरणा देते हैं और प्रतिसपर्द्धा भी करते हैं। इधर के वर्षों में विश्व के आर्थिक विकास के दो नए इंजन होने के नाते, चीन व भारत के बीच प्रतिस्पर्द्धा विश्व में ध्यानाजनक है। लेकिन, दोनों देशों की आवाजाही में कुछ गलतफहमियां भी मौजूद हैं, जिससे अनावश्यक अंतरविरोध पैदा हुए हैं और चीन व भारत के अच्छे पड़ोसी जैसे मैत्रीपूर्ण संबंधों पर असर भी पड़ा है। ये गलतफहमियां चीन व भारत के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक आदान प्रदान पर प्रभाव डाला है। इसलिए, चीन व भारत के विद्वानों के बीच गहन रूप से आदान प्रदान करने की बड़ी आवश्यक्ता है।
मंच के उद्घाटन समारोह में चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थायी कमेटी के पूर्व अध्यक्ष, चीन-भारत मैत्री संघ के अध्यक्ष, चीनी किसान व मजदूर लोकतात्रिक पार्टी के भूतपूर्व अध्यक्ष चांग जडंह्वा ने अपने भाषण में कहा कि इस वर्ष चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ है। चीनी संस्कृति में 60 का विशेष अर्थ होता है, जो एक काल की समाप्ति का प्रतिबिंब होता है और नये विकास प्रक्रिया की शुरूआत भी होती है। पिछले 60 वर्षों में हालांकि चीन व भारत के बीच कुछ विवाद भी हुए थे, फिर भी अच्छे पड़ोसी जैसे मैत्रीपूर्ण सहयोग हमेशा ही प्रमुख धारा रही है।उन्होंने कहा कि खासकर 21वीं शताब्दी में प्रवेश होने के बाद दोनों का तेज़ विकास हुआ है। दोनों के ध्यानाजनक मुद्दे भी निरंतर बढ़ते रहते हैं। चीन-भारत संबंध घनिष्ट सहयोग व चतुर्मुखी विकास के नये दौर में प्रवेश हो चुके हैं। दोनों के बीच समनव्य व संपर्क निरंतर मजबूत होते रहते हैं और राजनीतिक आपसी विश्वास भी स्थिर रूप से प्रगाढ़ होता रहता है। विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का निरंतर विस्तार किया जाता है। गैर सरकारी आदान प्रदान दिन ब दिन बढ़ रहा है।
जी 20 वस्वर्ण ब्रिक के चार देशों की बहुपक्षीय व्यवस्था के जरिये, चीन व भारत ने जलवायु परिवर्तन एवं अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के रूपांतरण आदि महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दोनों देशों के बीच सहयोग की गहराई व विस्तार भी निरंतर बढ़ रहा है। हाल में चीन-भारत संबंध द्विपक्षीय संबंधों के दायरे से बाहर आ चुके हैं ,जिसका विश्वव्यापी अर्थ है। द्विपक्षीय संबंधों के आपसी लाभ के सहयोग को मजबूत करने से अवश्य ही पूरे एशिया, यहां तक दुनिया की शांति व स्थिरता को महत्वपूर्ण योगदान दिया जाएगा। चांग जडंह्वा ने कहा कि चीन व भारत के विद्वान, राजनयिक एवं मीडिया संस्था के लोग चीन-भारत आदान प्रदान के पूर्वज हैं, जो दोनों देशों की आवाजाही व आपसी विश्वास को प्रगाढ़ करने में अहम भूमिका अदा कर सकेंगे। उन्होंने आशा जताई कि वर्तमान मंच से लोगों को एक आदान प्रदान का अच्छा प्लेटफार्म प्रदान होगा और लोग स्वतंत्र रूप से बातचीत कर सकेंगे। मीडिया संस्था यथार्थ रिपोर्टें देंगी। मंच से चीन व भारत की जनता के बीच आपसी समझ, मैत्री व सहमति को मजबूत करेंगे।
चीन स्थित भारतीय राजदूत एस जयशंकर ने अपने भाषण में कहा कि दूसरे चीन-भारत मंच में मुख्यतऋ राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, समाज एवं पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर विचार विमर्श किया जाएगा। यह खुद ही स्वागत करने योग्य प्रगति है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों का विकास जाहिर हुआ है। उनके विचार में भारत-चीन संबंध अब अच्छे दौर से गुजर रहे हैं। दोनों देशों में विविधतापूर्ण गतिविधियों के आयोजन के जरिए भारत-चीन राजनयिक संबंधों की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठनों या मंचों में भारत व चीन मजबूत सहयोग की क्षमता प्रतिबिंबित कर रहे हैं।हाल में आयोजित स्वर्ण ब्रिक के चार देशों के शिखर सम्मेलन एवं जी 20 ग्रुप सम्मेलन भारत व चीन द्वारा नयी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की नींव डालने वाली मिसाइल हैं। जयशंकर ने कहा कि 2009 का माहौल भिन्न था। दोनों देशों की मीडिया संस्थाओं ने व्यापार, विजान एवं सीमांत मुद्दों पर आलोचना की रिपोर्टें दी थीं। कैसे इसी तरह की स्थिति के पुनः उतन्पन्न होने से बचा सकेंगे। जवाब यह है कि द्विपक्षीय संबंध पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण बात है। उन्होंने कहा, चीन में एक मशहूर कहावत है। वर्षा आने से पहले हमें पूरी तैयारी करनी चाहिए। इसलिए, 2010 में हालांकि हम ने मान्यता दी कि द्विपक्षीय संबंध में प्रगति मिली है, फिर भी मुझे लगा कि हमें ध्यान को द्विपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ़ करने का आह्वान महत्वपूर्ण है।
दोनों देशों के समाज के बीच और विस्तृत संपर्क होना चाहिए। हमें द्विपक्षीय, क्षेत्रीय व विश्वव्यापी सवालों का निपटारा करने का उभय प्रयास करना चाहिए।हमें रचनात्मक वार्तालाप करने का प्रोत्साहन करना चाहिए।
छिंगह्वा विश्वविद्यालय के तत्कालीन चीनी अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर, चीनी कला अनुसंधान संस्था के अनुसंधानकर्ता माओ श्याओय्वू, यूरोपीय व अमेरिकी विद्यार्थी संघ के उपाध्यक्ष वांग ह्वेईयाओ, भारतीय चीनी अनुसंधान संस्था के चीनी प्रतिनिधि चा च्यैईईंग ने अलग अलग तौर पर चीन-भारत राजनीतिक मंच, सांस्कृतिक मंच, आर्थिक मंच एवं पर्यावरण मंच की अध्यक्षता की।
मंच पर भारत स्थित भूतपूर्व चीनी राजदूत छन रेईशंग एवं चो कांग, चीनी कला अनुसंधान संस्था के प्रोफेसर वू चालेई, छिंगह्वा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर छिनह्वेई, चीनी समाज व विज्ञान अनुसंधान संस्था के प्रोफेसर तांग क्वोईंग, आई.सी.आई.सी.आई बैंक के एशिया व मध्य पूर्व क्षेत्र के डिरेक्टर श्री सुदिर दोले, भारतीय जोनाथन बर्टन विश्विद्यालय के प्रोफेसर श्रीराम चलैया, पूर्व भारतीय पर्यावरण व वन्य मंत्री सुरेश प्रभु आदि ने मंच में भाषण दिये।
वर्तमान मंच में चीन व भारत के बीच विभिन्न क्षेत्रों के सहयोग को किस तरह गहरा व विस्तृत किया जाय, मंच में उपस्थित प्रतिनिधियों का ध्यान खींचा है।
चीन में भारत का अनुसंधान करने वाले चीनी विद्वान प्रोफेसर मा चाली ने अपने भाषण में कहा कि विकासशील देश होने के नाते, चीन व भारत के बीच रणनीतिक मेल मिलाप प्रतिस्पर्द्धा से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। राजनीतिक क्षेत्र में दोनों के बीच सहयोग मतभेदों से ज्यादा है। अर्थतंत्र में दोनों के बीच एक दूसरे की आपूर्ति भी है। सांस्कृतिक क्षेत्र में भी दोनों के बीच घनिष्ट संपर्क है। 20वीं शताब्दी में प्रवेश करने के बाद चीन व भारत ने रणनीतिक साझेदारी साझेदारी देश बनाने की घोषणा की और सीमांत समस्या का समाधान करने के राजनीतिक निर्देशन सिद्धांत भी तय किया है। दोनों देशों के नेताओं ने कहा कि चीन व भारत एक दूसरे के लिए शत्रुता नहीं है। दोनों के बीच उच्च स्तरीय यात्रा भी बहुत व्यस्त रही हैं।
मा के अनुसार, चीन व भारत अच्छे पड़ोसी देश हैं। समृद्धि की ओर बढ़ते समय दोनों के बीच घनिष्ट सहयोग की जरूरी है। वे आशा करते हैं कि दोनों देश आपसी विश्वास को प्रगाढ़ कर और विस्तृत रूप से सहयोग को गहरा करेंगे।
दूसरे चीन-भारत मंच के समापन होने के बाद चीनी जन प्रकाशन गृह थ्यैन एनमन से इंडिया गेट तक, 21वीं शताब्दी के उन्नमुख चीन-भारत समस्या का अनुसंधान नामक एक पुस्तक का प्रकाशन भी करेगा। इस पुस्तक में हाल में चीनी विद्वानों द्वारा लिखे गये भारत का अनुसंधान करने वाले सब से श्रेष्ठ लेख शामिल किये जाऐंगे। हमें विश्वास है कि चीन व भारत के विभिन्न तबकों के लोगों के प्रयास से द्विपक्षीय संबंध अवश्य और मजबूत होंगे।(श्याओयांग)