क्या आपने कभी पेड़ की छाल से बने कपडे़ तथा हस्तशिल्प-वस्तुएं देखे हैं। दरअसल, दक्षिण पश्चिमी चीन के युननान प्रांत के हानी जाति के लोगों ने एक हज़ार साल पहले से ही पेड़ की छाल से बने कपडे़ पहनने शुरू कर दिए थे। उन्होंने आज भी इस परंपरा को जीवित रखा है।
यह जातिबहुल गाँव युनान प्रांत में एक प्रसिद्ध पर्यटन-स्थल भी है। इस गाँव में 25 विभिन्न जातीय समूहों की संस्कृतियाँ तथा हस्तशिल्प कला की झलक देखने को मिलती है जिसमें हानी जाति भी शामिल है।
हानी प्रदर्शनी-हाल में छाल से बनी हस्तशिल्प-वस्तुओं को देखा जा सकता है।यहाँ कपड़े, लैम्प और छाल से बने अद्वितीय विभिन्न हस्तशिल्प-चीजों को देखा जा सकता है। कुछ कपड़ों को भी दक्षता से वृक्ष के मॉडलों पर प्रदर्शित किया जाता है।
इन सब के पीछे हानी जाति के हस्तशिल्पकार झांग शुपी का विशेष योगदान रहा है।
"मैंने यह मुखौटा पेड़ की छाल से बनाया है और छाल से बने कपड़े पर यह मुखौटा सजावट के लिए लगाया है। बटनों के लिए बीज का प्रयोग किया है। यह सब प्राकृतिक है। पेड़ की छाल से कई प्रकार की महँगी चीज़ें भी बन सकती हैं जैसे कि टोपियाँ, कंगन, मोबाइल-फोन रखने के लिए केस आदि। यह अच्छा लग रहा है ना? "
यह संयोग ही है कि झांग शुपी के नाम का अर्थ चीनी भाषा में "पेड़ की छाल" होता है। सन् 1994 में एक दिन झांग की कहानी तब शुरू हुई जब उन्होंने अपने घर में एक अद्वितीय वस्त्र देखा। वस्त्र का अनियमित आकार था और असामान्य रूप से बहुत मोटा था, परन्तु वास्तव में छुने पर बहुत नरम था। शुपी के पिताजी ने उन्हें बताया कि यह कपड़ा ज्यानदुमु नामक एक विशेष वृक्ष से बना है।
ज्यानदुमु वृक्ष दक्षिण पश्चिमी चीन के युननान प्रांत के आदिम जंगलों में पाया जाता है। इस पेड़ की छाल मोटी होने के साथ-साथ मुलायम तथा लचीली भी होती है। इस पेड़ को एक बार लंबाई और गहराई से पीटने के बाद इसकी छाल को सरलता से छीला जा सकता है और अन्य पेड़ों के विपरीत इसकी नई छाल शीघ्र ही वापस उग जाती है।इसलिए छाल छीली जाने से भी इस वृक्ष के विकास को नुकसान नहीं पहुँचता है। पेड़ों से ली जानी वाली सामग्री प्राचीन काल से हानी और दाई लोगों के कपड़ों के लिए मुख्य स्रोत रहे हैं।
झांग वेपिंग जल्द ही इस प्राचीन कौशल के बारे में जानने के लिए उत्तेजित हो गए और अपने पिताजी से सीखने लगे। इस बीच, झांग ने छाल की सामग्री ढ़ूँढ़ने और उसके विभिन्न प्रयोगों के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए दूरदराज के गाँवों का दौरा शुरू कर दिया। हस्तशिल्प को बचाने के लिए उनके उत्साह को देखकर लोग बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें "झांग शुपी" बुलाना शुरू कर दिया।
"सबसे कठिन काम पेड़ को पहचानना था। अधिकतर पेड़ रबर के पेड़ों की भाँति दिखते हैं परन्तु जब उनकी छाल को छीलते हैं तो उसमें से ज़हरीला रस निकलता है। बहुत कम लोग इस कार्य को करने का साहस करते हैं क्योंकि इसका रस बाकी सब पेड़ों से बहुत ज़्यादा ज़हरीला होता है।"
काफी कठोर परिश्रम के बाद झांग आखिरकार ज्यांगदुमु वृक्ष को खोजने में सफल रहे। उन्होंने बाहरी छाल को सफलतापूर्वक छीला, धोया और फिर सूरज की रोशनी में उसे सुखाकर कपड़े का एक टुकड़ा बनाया। एक थाईवानी पर्यटक इस कलात्मक कपड़े को देखकर इतने आश्चर्यचकित हुए कि उन्होंने 200 अमरीकी डालर में उसकी बोली भी लगाई। झांग शुपी इससे बहुत उत्साहित हुए और उन्होंने छाल के वस्त्र और हस्तशिल्प-वसु्तएं बनाने शुरू कर दिए। झांग जो कुछ भी बनाते उसमें हमेशा प्रयत्न करते कि उनके डिज़ायनों में हानी लोगों की संस्कृति की झलक नज़र आए।
झांग के अथक प्रयासों का यही नतीजा निकला है कि उनकी कार्यशाला इतनी प्रसिद्ध हो गई। जब किसी राज्य के नेता युननान की यात्रा पर आते हैं तो उन्हें झांग की कार्यशाला में जाकर शानदार प्राचीन हानी हस्तशिल्प की एक झलक देखने की सलाह दी जाती है।
पर्यटक भी झांग की कार्यशाला में जाने का सुअवसर नहीं खोना चाहते।
"यह बहुत आश्चर्यजनक है, क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि यह वास्तव में लकड़ी से बना है?"
"कला जीवन से आता है और जीवन के साथ आता है। यह कलात्मक है और लोगों के उत्पादक जीवन को शामिल करता है।इस तरह का कपड़ा 1,000 से भी अधिक वर्षों से पहना जाता रहा है। आप कह सकते हैं कि यह आधुनिक कपड़े का एक जीवित जीवाश्म है।"
ऐतिहासिक रिकार्ड के अनुसार हानी लोग 1000 से भी अधिक वर्षों से पेड़ की छाल से बने कपड़ों का प्रयोग करते आ रहे हैं। प्राचीन काल में हानी लोग ठंड से बचाने के लिए रजाइयाँ भी पेड़ की छाल से बनाते थे और शारीरिक श्रम के दौरान एक भंडारण कंटेनर की भाँति भी इसका प्रयोग करते थे।
पेड़ की छाल से बने कपड़े बहुत आरामदायक होते हैं क्योंकि यह बहुत हल्के होते हैं तथा उनमें हवा आसानी से प्रवेश कर सकती है। पेड़ की छाल से बने कपड़े कम से कम तीन वर्षों के लिए पहने जा सकते हैं।
हालांकि, सामाजिक विकास के चलते "वृक्ष के कपड़े" विलुप्त होने की कगार पर आ गए हैं। झांग शुपी ने इस दुर्लभ कारीगरी को बचाने के लिए बहुत कुछ किया है।
अप्रैल 1997 में झांग शुपी युनान प्रांत के शिशुआंगबन्ना के व्यापार मेले में अपनी हस्तशिल्प-वस्तुएं लेकर आए। वहाँ उन्होंने लोगों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी और 1999 के खुनमिंग एक्सपो में छाल के बने कपड़ों के बाज़ार में अचानक उछाल आ गया। एक बार फिर झांग शुपी के छाल से बनी हस्तशिल्प-वस्तुओं को वर्ष 2001 और 2002 में चीन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन महोत्सव व्यापार मेले में "उत्कृष्ट पर्यटन उत्पाद" से सम्मानित किया गया।
झांग शुपी ने बताया कि अपने हस्तशिल्प में प्राचीन तथा आधुनिक तत्वों का संयोजन तथा साहसिक कलात्मक शैली ही उनकी सफलता का रहस्य है।
मैं कभी भी स्केच नहीं बनाता इसलिए मेरी हस्तशिल्प-वस्तुएं अनूठी होती हैं। मेरी प्रेरणा का स्रोत कुछ भी हो सकता है जैसे कि – प्रकृति, लोग या पर्यटक आदि। हालांकि, पर्यटकों से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है। वे मुझे सलाह या सुझाव देते हैं और यह सब मेरे लिए बहुत लाभदायक साबित हुआ है।
आज, पेड़ की छाल की हस्तशिल्प-वस्तुओं को युननान प्रांत के एक अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई है तथा इस कला के संरक्षण और विकास के लिए सरकार से सब्सिडी पाने के लिए यह उपाधि उत्तीर्ण साबित होगी। झांग को पेड़ की छाल के हस्तकला संरक्षण और विकसित करने के लिए नामित किया गया है।
झांग ने कहा कि एक बार एक पुर्तगाली व्यापारी आश्चर्यजनक राशि देकर मेरे द्वारा निर्मित सामान खरीदना चाहता था लेकिन मैंने मना कर दिया।
"पेड़ की छाल से बनी हस्तशिल्प-चीजें मेरे बच्चों की तरह हैं। इसके अलावा, मैं इस स्थिति में भी नहीं हूँ कि ऐसा करूँ क्योंकि हस्तशिल्प मेरा नहीं हैं, वह सब हानी लोगों का हैं।"
अब, झांग का सबसे बड़ा सपना एक छाल कला संग्रहालय खोलने का है और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को इस प्राचीन कला से अवगत कराना तथा सीखाना है।