विश्वविख्यात बर्फीले हिमालय पर्वत की दक्षिण तलहटी में बसी एक जाति के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं , मात्र चुमुलांगमा चोटी पर चढ़ने वाले पर्वतारोही या पर्ववेक्षक इस जाति से परिचित हैं , क्योंकि इस जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी पर्वतारोहियों के लिये गाईड का काम करते हैं । पर आज इस जाति के जीवन में परिवर्तन भी हुआ है , वे कदम ब कदम पर्वत की घाटियों से बाहर निकल जाते हैं और स्थानीय तिब्बतियों , हान वासियों और नेपालियों के साथ मेलमिलाप के साथ रहते हैं , उन्हों ने अपनी मेहमाननवाजी व उदार भावना से हरेक परिचित पर गहरी छाप छोड़ रखी है , यह जाति शेरपा जाति ही है ।
अभी आप ने जो आवाज सुनी है , वह चीन व नेपाल की सीमा पर स्थित एक गांव से निकल आयी है । इस गांव में कुल 260 से ज्यादा परिवार रहते हैं , कुल जनसंख्या 500 से अधिक है । गत सदी के 60 वाले दशक में करीब 70 शेरपा लोगों ने इसी गांव का गठन किया और गांव का नाम पांग छुन रखा ।
तिब्बती भाषा में शेरपा का अर्थ है पूर्व से आने वाले लोग । चीन के भीतर शेरपा लोगों की संख्या तीन हजार से कम है और वे मुख्यतः तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की न्येलामू कांऊटी के चांग मू कस्बेव तिंन च्ये कांऊटी के छन थांग कस्बे में बिखरे हुए हैं ।
तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले अधिकतर शेरपा लोग बड़े पर्वतों की घाटियों में रहते थे और उन का जीवनयापन पीठ से माल ढोने पर आश्रित था , इसलिये वे हिमालय पर्वत के ढोने वाले के नाम से जाने जाते थे । त्सेरिंग इस पांग छुन गांव के उप प्रधान हैं , उन्हों ने कहा कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद शेरपा लोग पर्वतों से बाहर निकलने लगे हैं , जीवन उपाय भी विविधतापूर्ण हो गये हैं , इसलिये पांग छुन गांव वासियों ने भी इसी आधार पर नया खुशहाल रास्ता प्राप्त कर लिया है ।
अतात काल में गांववासी मुख्यतः खेतीबाड़ी का काम करते थे , कम लोग शिकारी के काम पर निर्भर रहते थे , और ऐसे लोग भी थे कि लकड़ियों से सादा फर्निचर बनाकर बेचते थे , इसलिये अधिकतर गांववासियों का जीवन काफी दूभर था । कई माहों से पहले इस गांव ने पर्यटन के लिये एक विश्राम गांव का निर्माण किया , अब इस विश्राम गांव का उद्घाटन होकर हर रोज तीन चार हजार य्वान कमाया जा सकता है , कभी कभार दस हजार य्वान का लाभ भी हो सकता है ।
गांव में कदम रखते ही हम ने तीन मंजिली पक्की इमारत देखी , यह इमारत इस विश्राम गांव का प्रमुख निर्माण है , इमारत के पास एक स्विमिंग पुल और कुछ मनोरंजन संस्थापन भी उपलब्ध हैं । शेरपा वासियों की आय बढाने के लिये गत वर्ष के शुरु में कुल 40 लाख से अधिक य्वान जुटाकर विश्राम गांव स्थापित किया गया , इन 40 लाख य्वान में स्थानीय सरकार ने दस लाख य्वान अनुदित किया , निम्न ब्याज दर पर 20 लाख य्वान का कर्ज लिया गया , बाकि दस लाख 60 हजार य्वान गांववासियों ने खुद जुटा दिया । त्सेरिंग ने कहा कि विश्राम गांव से प्राप्त कुछ आय कर्ज और गांववासियों की पूंजी चुकायी जाती है, बाकी आय का प्रयोग इसी गांव के निर्माण में किया जायेगा । गांववासी अपने गांव के भावी विकास के लिये संकल्पबद्ध हो गये हैं ।
अब हम विश्राम गांव में अपनी विशेषता वाले खान पान व्यवसाय करने को तैयार है , ताकि पर्यटक हमारे शेरपा वासियों के आहार खाने का मौका मिल सके । आइंदे हम और अधिक पर्यटकों के लिये विश्राम गांव के पास मकान बनवा देंगे । क्योंकि हमें मालूम है कि पर्यटन से गांव को और ज्यादा मुनाफा होगा ।
विश्राम गांव की कल्पना शेरपा वासियों के लिये बड़े पर्वतों से बाहर निकलने और बाहरी दुनिया से सम्पर्क कर खुशहाल रास्ते की ओर ले जाने में सफल साबित हो गयी है । जहांतक शेरपा की युवा पीढी का ताल्लुक है कि वे अपनी आंखों से बाहरी दुनिया देखने के इच्छुक ही नहीं , बल्कि वर्तमान तीव्र पतिस्पर्द्धा में कदम रखने को तैयार भी हैं ।
24 वर्षिय त्सेरिंग फिंगत्सोक का जन्म इसी पांग छुन गांव के चेरवाहे परिवार में हुआ । चार साल पहले उस ने हू पेह प्रांत के ऊ हान चुंग नान जातीय विश्वविद्यालय में दाखिला हुआ , स्नातक के बाद उसे ल्हासा शहर में एक पसंदीदा नौकरी मिली । त्सेरिंग फिंगत्सोक ने कहा कि पांग गांव में उस जैसे युवक कम नहीं हैं , अब बीसेक शेरपा युवक देश के भीतरी उच्च शिक्षालयों से स्नातक हो चुके हैं। इधर सालों में गांववासियों के जीवन में बड़ा परिवर्तन भी आया है , लेकिन सब से बड़ा बदलाव यह है लोग विचार बंधन से मुक्त हुए हैं । आज गांव में अधिक से अधिक युवक परम्परागत कृषि व पशु पालन का काम करना नहीं चाहते , वे बड़े पर्वतों से बाहर निकलकर आधुनिक समाज से जा मिलने को उत्सुक हैं ।
हमारे परिवार में 6 सदस्य हैं , मेरा बड़ा भाई तिब्बत की लिन ची कांऊटी में नौकरी करता है , मेरी छोटी बहन चाम मू कांऊटी के किंडरगार्टन की टीचर है , मेरा छोटा भाई तिब्बती पर्वतारोही दल में रसोई का काम करता है।
इस के साथ ही स्थानीय तिब्बती व हान जातियों के लोग बड़े पर्वतों की घाटियों से बाहर निकलने वाले वासियों से परिचित हो गये हैं , वे बड़े मेल मिलाप से सहअस्तित्व रहते हैं । फुर्बू चाम मू कांऊटी के स्थानीय शहरी प्रबंधन विभाग के एक पदाधिकारी हैं , काम की वजह से चार स्थानीय गांव वासियों के साथ उन का घनिष्ट रिश्ता है । उन की नजर में शेरपा वासी बर्फीले पर्वत से आने वाले दयालु व सीधे सादे मेहमान हैं ।
शेरपा वासियों का स्वभाव बहुत सीधा सादा है , मसलन तिब्बती वासी आम दिनों में घी चाय पीना पसंद करते हैं , शेरपा वासी मेहमानों के सम्मान में इसी प्रकार वाली चाय पिला देते हैं । उन के रीति रिवाज के अनुसार मेहमान के सम्मान में घी चाय या मिठी चाय बनाकर पिला दी जाती है , बाकी समय वे यह चाय नहीं बनाते है ।
प्राचीन काल से ही शेरपा वासी उत्साह व दयालु से जाने जाते हैं । बर्फीले पहाड़ी क्षेत्रों में जब वे मालों की ढुलाई करते हैं , तो वे अकसर बड़ी नम्रता से बिना किसी शर्त के सर्वेक्षकों को रहने के स्थान का बंदोबस्त करते हैं व गरमागरम मीठी चाय पिला देते हैं । आज अधिक से अधिक शेरपा वासी बड़े पर्वतों की घाटियों से बाहर तो निकल आये हैं , पर उन के उत्साहपूर्ण व उदार स्वभाव में जरा सा बदलाव नहीं आया है , साथ ही वे और खुले रवैये से व्यापक तिब्बती व हान देशबंधुओं के साथ सम्पर्क व आदान प्रदान करने में क्रियाशील हैं ।