युन नान अल्पसंख्यक जाति गाँव, अल्पसंख्यक जाति की संस्कृति को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से बसाया गया एक पर्यटन क्षेत्र है। इस पर्यटन क्षेत्र में युन नान के 25 अल्पसंख्यक जाति की गाँव है। हानी जाति की गाँव में, एक बहुत ही विशेष शैली की "पेङ की छाल से निर्मित कपङे का प्रदर्शनी" स्थल है, यही प्रदर्शनी स्थल "चांग शू फी" का कार्यशाला है। यहाँ पर प्राचीन काल में उपयोग किया जानेवाला लालटेन है, वृक्षों की छाल के उपर बनी मुखाकृति है, पेङ की छाल से बनी कपङे पहने लकङियाँ हैं।
इस तरह के चमत्कारी शिल्पकला को देखने के बाद आपका मन भी आर्द्र हो जाएगा और आप कह उठेंगे कि चांग शू फी जी की दाँतो तले अंगूली दबा देने वाली कलाकृति ने न केवल हानी जाति के प्राचीन रीति-रिवाज और पेङ की छाल से बनी कपङे के बारे में बताता है ब्लकि इस कला को पूरे विश्व को भी दिखाता है।
"यह मुखौटा पेङ के छाल के बचे हुए भाग से बनाया गया है, मैंने इस मुखौटे को छाल से बने कपङे के उरप सिल दिया है, जिससे यह काफी सुंदर लग रहा है। इसका बटन बीजों का उपयोग करके बनाया गया है। छाल से अनेक तरह की वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है जैसे- चूङी, कंगन, टोपी, लैंप स्टैंड आदी......"
चांग शू फी का असली नाम चांग वेई फिंग है। वे कहते हैं कि 1994 में 29 वर्ष की आयु में पहली बार छाल से बना कपङा देखा था। एक दिन अचानक ही पिता जी के पलंग पर एक विशेष प्रकार का कपङा मिला जो देखने में काफी सख्त और मोटा लग रहा था, लेकिन स्पर्श करने पर बहुत ही मुलायम था उसकी मुटाई अन्य कपङों से कई गुनी ज्यादा थी। पिता जी ने कहा कि यही पेङ की छाल से बना कपङा है, जो कि युन नान में पाई जाने वाली विशेष प्रकार के पेङ की छाल से बनी है जिसका नाम चिएन तु है। यह पेङ के तने पर परत दर परत लिपटी होती है, इसे पेङ के तने से खुरच कर अलग किया जाता है और अंत में कपङा बनाया जाता है। पेङ के तने पर फिर से नया छाल आ जाता है, जिससे पेङ के विकास पर कोई प्रभाव नहीं पङता है। युन नान के हानी जाति, ताय जाति के लोगों में इस तरह के कपङे पहनने का रिवाज है।
पिता जी से पेङ के छाल का इस तरह के उपयोग की जानकारी मिलने के बाद, चांग वेई फिंग काफी उत्तेजित हो गए और अपने पिता से छाल से कपङा बनाने की कला को सिखाने का आग्रह किया। साथ ही, छाल से निर्मित कपङे की संस्कृति को बचाने के लिए, चांग वेई फिंग ने उससे संबंधित सामग्रियों की खोज करने लगे, तब से ही धीरे-धीरे "चांग शू फी" के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
सबसे ज्यादा कठिनाई इस पेङ को ढूंढने में होती है, क्योंकि सामान्यतया इस पेङ को पहचानना मुश्किल है। कुछ पेङ रबङ की पेङ की तरह दिखते हैं लेकिन हथौङे का इस्तेमाल करने पर तुरत टूट जाते हैं। कभी-कभी इस पेङ का पानी आँख में चले जाने पर काफी दर्द होता है जिसके कारण साधारण तौर पर लोग यह काम नहीं करते हैं।
इस पेङ का नाम जहरीला पेङ भी है। विश्व के सबसे जहरीले वस्तु के आधार पर कहा जाता है कि इस पेङ में भी बहुत जहर होता है, जो कि अगर मानव या पशु के शरीर में चला जाए तो जान चली जाती है। इन सब कठिनाईयों से गुजरने के बाद चांग शू फी को एक पेङ मिला। छाल उतारने के बाद, उस पानी में धोने के बाद एक पीला रंग का छाल मिला, इस अमूल्य छाल का प्रयोग करके इन्होनें एक छोटा कपङा तैयार किया।
1995 में, एक थाइवान के पर्यटक इस कपङे को देखने के बाद आश्चर्यचकित हो गए और बिना किसी निसंकोच के उस कपङे को 200 अमेरिकी डॉलर में खरिद लिया। बाजार की माँग और ग्राहकों के सम्मान ने चांग में एक नया उत्साह डाल दिया, इसके बाद वे मुख्य तौर पर छाल से विभिन्न प्रकार के सामान बनाने लगे। इनके द्वारा बनाए गए सामान छाल का टोपी, जूता, पैंट, झोला आदी दस प्रकार के सामान हैं। इसके साथ ही वे छाल के उपर नक्काशी का भी काम कर रहे हैं जिससे हानी जाति के प्राचीन परंपरागत शैली को एकीकृत रूप दिया जा सके। इनके अथक प्रयास के कारण, छाल से निर्मित वस्तुएँ काफी प्रचलित हो गई हैं। चांग शू फी का कार्यशाला भी काफी दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया है। इनके कार्यशाला में न सिर्फ बङे-बङे नेता लोगों का आवाजाही हुआ है, ब्लकि सामान्य व्यक्ति भी इनके अतिथी बन चुके हैं और सभी लोग इनके कला से काफी अचंभित हैं।
पहला पर्यटक—कितना आश्चर्यजनक है। यह वृक्ष के छाल का कपङा है।
दूसरा पर्यटक---इसके कला में जीवन का रस और कला के सौंदर्य का बोध होता है। मनुष्य के उद्भव के दृष्टिकोण से, वृक्ष का छाल ही कपङे का मूल है, इसे हम कपङे का जीवाश्म भी कह सकते हैं।
रिकार्ड के आधार पर, हानी जाति के लोगों द्वारा, छाल से बने कपङे का प्रयोग का इतिहास हजार वर्षों से भी पुराना है। प्राचीन काल में हानी जाति के लोग युन नान के दक्षिणी भाग में रहते थे। वे लोग दिन के समय छाल से बने कपङे का प्रयोग करते थे, रात में भी ठंढ से बचने के लिए उसी का प्रयोग करते थे, काम करने के समय भी छाल से ही बनी वस्तु का उपयोग करते थे। हानी जाति के लोगों द्वारा बनाया गया कपङा काफी मुलायम होता था, एक कपङे को तीन से पाँच सालों तक पहना जा सकता था, इसके साथ ही यह विभिन्न खतरों से रक्षा भी करता था। लेकिन सामाजिक विकास के कारण, 19वीं शताब्दी की शुरूआती समय तक छाल से बने कपङे का प्रयोग धीरे-धीरे लुप्त होता चला गया, आजकल कोई भी छाल से कपङे का निर्माण नहीं कर सकता है।
अप्रैल 1997, चांग शू फी ने पहली बार अपने सामान के साथ सी श्वांग पाना में आयोजित व्यापार मेले में भाग लिए, पहली बार औपचारिक तौर पर लोगों ने उनके सामान को देखा था, जिससे लोगों ने काफी पसंद किया। 1999 में खुन मिंग के विश्व कला प्रदर्शनी में भाग लेने पर काफी वाहवाही मिली। 2001 और 2002 में चीनी अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व्यापार मेले में लगातार सबसे उत्तम पर्यटक सामान और सबसे उत्कृष्ट नमूना का पुरस्कार मिला।
चांग जी के कार्यशाला का अवलोकन करने पर ऐसा लगता है जैसे टीवी पर सामान देख रहे हैं। इनके द्वारा बनाए गए सामान में असली बनावट नजर आता है, प्राचीन शैली के बनावट को देखने पर ऐसा लगता है जैसे प्राचीन काल में प्रवेश कर गये हों, साथ ही आधुनिक बनावट शैली का भी अनुभव होता है। चांग जी के कलात्मक सफलता का रहस्य , प्राचीन शैली का प्रयोग, नई नमुनों को रचने की कला, कढाई की कला आदी है।
मैने कभी भी नमुनों का निर्माण नहीं किया है, न ही किसी सामान को दुबारा बनाया है।मुझे पर्यटकों से काम करने की प्रेरणा मिलती है। मेरे विचार में पर्यटक ही मेरे शिक्षक हैं, वे लोग मेरे सामान को खरिदते हैं साथ ही कुछ राय भी देते हैं, जिसके आधार पर मैं फिर काम करता हूँ । यह सब उसी का फल है।
दूसरे लोगों के द्वारा नजरअंदाज की गई वस्तु, चांग जी के हाथ में पहुँच कर एक नया रूप ले लेती है। चांग जी के द्वारा नक्काशी की गई वस्तुओं में लोग, पक्षी आदी विभिन्न तरह की वस्तुएँ शामिल है। आप जिस वस्तु की कल्पना नहीं कर सकते हैं, सिर्फ उसी वस्तु को चांग जी नहीं बना सकते हैं। जांग जी के द्वारा बनाई गई वस्तुएँ, विश्व के अलग-अलग भागों के संग्रहालयों में सुरक्षित रखी गई हैं। संसार के सभी कोनों में, छाल की बनी हुई वस्तुएँ, हानी जाति का कलात्मक रूप का प्रतिक बन चुका है।
आज के चांग शू फी जी, युन नान प्रांत के गैर-भौतिक सांस्कृतिक अवशेष के संरक्षक बन चुके हैं। प्रति दिन विभिन्न भागों से आये हुए लोगों को कला का परिचय देते हैं। एक बार एक पुर्तगाल के पर्यटक चांग जी के सभी कलाकृति को भारी धनराशि से खरीदना चाहता था। लेकिन चांग जी ने बेचने से मना कर दिया।
चांग जी ने कहा, ये कलाकृतियां मेरे बच्चे हैं और यह सभी सामान मेरे जाति के हैं।
चांग जी का सबसे बङी इच्छा, एक पेङ के छाल का कला संग्रहालय का निर्माण करना है, और इस कला को पीढी दर पीढी लोगों में बाँटना है।