सिनचियांग वेइवुर स्वायत्त प्रदेश में जीवन व्यतीत कर रहे, मंगोल जाति के लेखक पाथु से परिचय किये जा रहे हैं। 1952 में पाथु जी का जन्म सिनचियांग के छांग ची प्रिफेकचर के चीमुशार काउंटी के साधारण परिवार में हुआ है। विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण होने के बाद, इन्होनें अध्यापक, एथलीट, अनुवादक आदी जैसे काम किए। अध्यापक के रूप में काम करने के दौरान, इनकी चीनी और वेइवुर भाषा का काफी तेजी से विकास हुआ।
उस समय मैं न सिर्फ मंगोल जाति के विद्यार्थियों को पढाता था, ब्लकि हान जाति के विद्यार्थियों को भी वेइवुर भाषा सिखाता था। मेरी चीनी और वेइवुर भाषा का विकास इसी के दौरान हुआ था। उनके भाषा ज्ञान के प्रतिभा और असाधारण काम के आधार पर उनका स्थानांतरण सिनचियांग वेइवुर स्वायत्त प्रदेश के जाति-धर्म कमेटी के प्राचीन अवशेष कार्यालय में कर दिया गया। यहां पर इनका काम सिनचियांग अल्पसंख्यक जाति के प्राचिन अवशेषों के संग्रहण, संकलन और प्रकाशन था। इस काम ने वास्तव में पाथु जी को मंगोल जाति की संस्कृति से गहरा नाता जोड़ दिया।
खुलेपन और सुधार नीति लागू होने के बाद, संस्कृति का विकास भी तेज हो गया, विशेषकर शोधकर्ताओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 1989 में, हमलोगों ने पेइचिंग में चांगर वीरगाथा की प्रदर्शनी लगायी, जिसमें 70 परिच्छेदों का प्रकाशन किया गया।
भाषा शोध एक बहुत ही उबाऊ और मुश्किल काम है। भाषा के शोध में विभिन्न विषयों की वैज्ञानिक जानकारी और समझ, शारीरिक शक्ति, मानसिक शक्ति की जरूरत होती है। लेकिन जातीय भाषा के सीमित प्रयोग क्षेत्र, संग्रहण सामग्री की सीमित उपलब्धी के कारण, इसके संग्रहण और संकलन में और भी अधिक कठिनाई बढ जाती है। सिनचियांग में मंगोल जाति की जनसंख्या 18 हजार के आसपास है, और अधिकतर लोग यातायात के ख्याल से पिछङे इलाकों में निवास करते हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मंगोल जाति के भाषा का शोध करना कितना कठिन कार्य है।
पाथु जी कहते हैं कि किसी दंतकथा या किसी शब्द के प्रमाणीकरण के लिए बार-बार अपने गाँव चीमुशार काउंटी जाकर कुछ वृद्ध लोगों की सहायता लेनी पङती है। भाषा संग्रह एक निरंतर मुश्किल काम है। किसी प्रश्न के शोध में बहुत सारी सामग्रियों को पढना और खोजना पङता है इसलिए अक्सर दिन में पाँच घंटे की ही फुरसत मिल पाती है। परंतु, पाथु जी कहते हैं कि इस काम के प्रति बहुत इच्छुक हैं, क्यों कि उन्हें लगता है कि उनके काम की बहुत महत्ता है। जब उन्हें मालूम होता है कि, मंगोल जाति के लोगों को अपने इतिहास की अच्छी जानकारी है और लोग उनके द्वारा संकलित पुस्तकों को बहुत लगन से पढते हैं तो पाथु जी को बङी खुशी महसूस होती है।
1985 में सिनचियांग में बहुविषयक अकादमी "सिनचियांग वीलाथ मंगोल जाति अनुसंधान" की स्थापना की गई और 1999 में राष्ट्रीय संघ "चांगर अनुसंधान"की स्थापना की गई। इन व्यवसायिक केन्द्रों की स्थापना ने, सिनचियांग के मंगोल जाति की संस्कृति के विकास की नींव डाली है।
पहले हमारे पास स्वतंत्र अनुसंधान केंद्र और अकादमी नहीं थी। इन अनुसंधान केंद्रों की स्थापना ने इस जाति के संस्कृति के विकास को भी दर्शाया है। अगर आपके पास विशेष शोधकर्ता, इससे संबंधित लेखक नहीं हो तो, इस तरह का अनुसंधान की स्थापना असंभव है।
पाथु जी वर्तमान में सिनचियांग वेइवुर स्वायत्त प्रदेश के जाति-धर्म कमेटी के दूसरे विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। अपने व्यस्त काम के बीच, पाथु जी हमेशा मंगोल जाति के इतिहास, सांस्कृतिक अवशेष के सामग्रियों की संग्रहण, खोज, मेल-मिलाप आदि के कामों मे लगे रहते हैं। कई सालों से, पाथु जी अपने आराम के समय में भी, मंगोल जाति के इतिहास, सांस्कृतिक अवशेष से संबंधित सामग्रियों के खोज, संकलन, संग्रहण, अनुवाद,प्रकाशन जैसे कामों में समय व्यतित करते चले आ रहे हैं। उनके काम के अलावा, दूसरा पहचान राष्ट्रीय चांगर अनुसंधान केंद्र और सिनचियांग विलाथ मंगोल जाति अनुसंधान केंद्र के उप डायरेक्टर के रूप में अल्पसंख्यक जाति की संस्कृति को लागातार विकसित करना। इनके शब्दों में यही इनका फर्ज और कर्तव्य है।
इन तीन अनुसंधान केंद्रों की स्थापना की मदद से, सिनचियांग में मंगोल जाति के संस्कृति का अनवरत विकास हो रहा है, जो कि विकास के नये आयाम को छू रही है। वतर्मान में, अखबार, साहित्य, इस भाषा का अनुवाद, स्वास्थ्य, सामाजिक विज्ञान आदि सभी उपलब्ध हैं। इन सभी पत्रिकाओं का मंगोल भाषा में भी प्रकाशन हो रहा है, इसके अलावा हमने बहुत सारे नवयुवकों को भी प्रशिक्षित किया है। यह सभी हमारे सांस्कृतिक विकास के नये रूप को दिखाते हैं। वर्तमान में मंगोल जाति के लगभग सभी विद्यालयों में द्विभाषीय शिक्षा है। यह सब अच्छे वातावरण का परिणाम है।
सिनचियांग विलाथ मंगोल जाति अनुसंधान केंद्र और राष्ट्रीय चांगर अनुसंधान केंद्र के दुसरे सदस्यों का साक्षात्कार लेने के समय, उनलोगों ने कहा कि , पाथु जी भाषा के काम के प्रति व्यवहारिक रुख और लोकतंत्र की नीति अपनाते हैं। वे विभिन्न भाषाओं के लोगों के राय का सम्मान करते हैं। अनुसंधान केंद्र के नियमावली में, वे किसी से ज्यादा कठोर अपेक्षा नहीं करते हैं, उनकी यह भावना सबों के लिए सिखने का एक मापदंड है। सिनचियांग विलाथ मंगोल जाति अनुसंधान केंद्र के सदस्य लीली जी कहती हैं, मैं दो साल पहले इस अनुसंधान केंद्र में नियुक्त हुई थी, पाथु जी नये लोगों का काफी ख्याल रखते हैं। काम के प्रति नये लोगों से काफी अपेक्षा रखते हैं, हमेशा कामों में मदद करते हैं। वे हमेशा हमलोगों की मदद को तैयार रहते हैं, हम नये लोगों के लिए एक उदाहरण हैं।
पाथु जी मंगोल जाति के सांस्कृतिक विकास के भविष्य के बारे में कहते हैं कि अनुसंधान केंद्रों की शक्ति को बढाना चाहिए। पाथु जी का मानना है कि बहुविषयक अकादमी एक मंच का काम करता है। आशा करता हूँ कि अधिक से अधिक नवयुवक इस मंच के द्वारा, मंगोल जाति के संस्कृति के विकास में अपना योगदान करेंगे।
मैं मुख्य तौर पर अभी नये लोगों की सहायता करता हूँ, उन्हें अधिक से अधिक मेहनत करने की प्रेरणा देता हूँ। मैं खुद उनकी जितनी मदद कर सकता हूँ, करने को तैयार रहता हूँ। इस मंच की मदद से हम सभी मिलकर संस्कृति के विकास को आगे बढा सकते हैं। क्योंकि इस मंच में विभिन्न अनुसंधान कार्यों के लोग, विभिन्न भाषाओं के लोग हैं, जो कि एक बहुत बङी शक्ति है, इसलिए इस मंच की स्थापना से हमारे सिनचियांग की मंगोल जाति की संस्कृति के विकास में बहुत बङा योगदान होगा। मंगोल जाति की संस्कृति का दूसरी संस्कृति के साथ मिश्रण भी एक बङा सवाल है, उदाहरण के तौर पर – सिर्फ मंगोल भाषा पर्याप्त नहीं है, यह इस छोटे मंच की मदद से बङे मंच में शामिल होना चाहता है, इसका मतलब है कि, अगर मंगोल भाषा अनुसंधान के परिणाम को दूसरी भाषा जैसे मानक चीनी भाषा और दूसरे अल्पसंख्यक जाति की भाषा में अनुवाद करते हैं तब वास्तव में मंगोल जाति संस्कृति पूर्ण रूप से जीवित हो सकेगी।