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भाईचारा
2009-12-23 09:00:39
21 अगस्त, मुसलमानों के रोजा शुरु करने की पूर्व संध्या थी। यह दिन हान जाति के लोगों के लिए कोई खास दिन नही है। परंतु सिनचियांग के काशगर शहर के बेशकिरम प्रखंड में ताजागजी गाँव के हान जाति के लियु श्वे वन सुबह-सुबह उठकर, अपने दोस्त नुलाहोश से मिलने चल दिए। लियु श्वे वन का अपने दोस्त के घर पहुंचते ही, बङा जोङदार स्वागत हुआ।

नुलाहोश—"सिन शंग" तुम आ गये। बहुत अच्छा हुआ।

लियु श्वे वन—नुलाहोश। तुमसे मिले बहुत दिन हो गये थे, इसलिए आज मिलने आ गया। आज तुम क्या कर रहे हो ?कल रोजा है, इसलिए आज मैं तुमको खाना खिलाना चाहता हूँ।

लियु श्वे वन, ताजागजी गाँव में पले-बढे हान जाति के हैं। वर्षों सेवेइवुर जाति के नुलाहोश के साथ सुख-दुख मे एक-दुसरे के मदद ने जीवन के पथ पर, इन्हें सगा भाई जैसा बना दिया है। आज के इस कार्यक्रम में हम इन दो भाइयों के जीवन से जुङी कहानी प्रस्तुत करेंगे। आशा है कि, आपलोगों को भी इन दोनो की अगाढ प्रेम और दोस्ती की कहानी पसंद आएगी।

नुलाहोश के पूरे परिवार के लोग लियु श्वे वन को प्यार से "सिन शंग" नाम से पुकारते हैं। "सिन शंग" का मतलब सिनचियांग में पैदा हुआ बच्चा से है। अपनी और नुलाहोश की कहानी सुनाते-सुनाते लियु श्वे वन दस साल पिछे चले गये और दस सालों का प्यार और दोस्ती दिल में उमर आया। वे कहते हैं, हम दोनों की दोस्ती के दस साल हो गए हैं, पहले वह मेरी खेतीबारी के कामों में मदद किया करता था, मैं भी उसके खेत को जोतने और बोने में मदद करता था। उसके मदद से मुझे हमेशा तसल्ली मिलती थी, एक दोस्त के रूप में, मै भी हमेशा उसकी मदद करने को तैयार रहता था। हमलोग इस तरह एक-दुसरे की मदद करते रहे, कदम से कदम मिलाकर आगे बढते रहे। मुझे अपने दोस्त पर काफी गर्व है।

लियु श्वे वन अपनी प्रशंसा करने से सकुचाते हैं। वे कहते हैं कि, उन्हें अपने दोस्त की मदद करनी बहुत अच्छा लगता है, और उनके दोस्त भी सामान्य जीवन मे उनका बहुत ख्याल रखते हैं। दस सालों से, दोनों दोस्तों के बीच का आदान-प्रदान अनवरत रूप से चला आ रहा है, और समय के साथ दोनों परिवारों के बीच अटूट दोस्ती के रूप में बदल गया।

33 वर्षिय नुलाहोश, अपने दोस्त की मदद की बात बताते समय बहुत उत्तेजित हो जाते हैं, आँखों मे एक चमक आ जाती है, जिससे पता चलता है कि इनके बीच की दोस्ती कितनी गहरी है। नुलाहोश कहते हैं, बहुत सालों से, जब खेती के समय मुझे ट्रैक्टर की जरूरत होती है तो यह अपना ट्रैक्टर लेकर आ जाता है। शकरकंद और गेंहूँ बोने के समय, खाद खरीदने में मेरी मदद करता है। इतना ही नहीं, जब कभी भी मुझे पैसे की जरूरत होती है तो मैं इसी की मदद लेती हूँ। यह हमेशा बिना किसी झिझक के मेरी मदद को तैयार रहता है। मैं भी हमेशा इसकी मदद करना चाहता हूँ, इसलिए शकरकंद की खुदाई और बुआई के समय बिना बुलाए इसके खेतों में मदद करने पहुंच जाता हूँ।

तागागची गाँव मे इस तरह की हान जाति औरवेइवुर जाति के बीच के सौहार्द और प्रेम की घटनाएँ अनगिनत है। लोगों के हृदय को पिघला देने वाली कहानियाँ भी बहुत है। लोग तो इसे बहुत सामान्य समझते हैं, सामान्यत:बताने से सकुचाते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि विभिन्न जातियाँ एक परिवार की तरह है, जो एकता और सहयोग के हकदार हैं। बेशकिरम प्रखंड के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव चांग फंग कहते हैं कि इस गाँव का नामकरण "अल्पसंख्यक जाति सौहार्द" गाँव करने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होनें कहा,

तागागची गाँव, काशगर शहर के आठ प्रखंडो में एकमात्र गाँव है जिसमें चार भिन्न अल्पसंख्यक जातियाँ निवास करती है।इस गाँव मेंवेइवुर जाति, हान जाति, ह्वी जाति, और तिब्बती जाति के लोग रहते हैं। इस गाँव का इतिहास भी बहुत पुराना है, पिछले सदी के तीसरी, चौथी दशक में चीन के भीतरी भागों से लोग आकर यहाँ बस गए। विभिन्न जातियों के बीच का संबंध काफी सौहार्दपूर्ण है। परंतु कुछ लोग अच्छा काम करने के बाद भी बताना नहीं चाहते हैं। इस तरह के दोस्ती की कहानियाँ अनगिनत है, जो कि इस गाँव का अच्छा रूप दिखाती है।

तागागची गाँव के नेता ने भी गाँव की एकता और सहयोग को बढाने में काफी योगदान दिया है। इस गाँव में 526 लोगों के बीच, 219 हान जाति के , 240वेइवुर जाति और 67 ह्वी जाति और तिब्बती जाति के लोग हैं। विभिन्न जातियों के जनसंख्या अनुपात को देखते हुए, विभिन्न स्तर के अधिकारियों का मुख्य लक्ष्य, लोगों के बीच एकता और सौहार्द को बढाना है। गाँव के मुखिया थांग कुआंग द कहते हैं कि गाँव मे एकता, सोहार्द, धन-धान्य, खुशहाली को बढाने के लिए गाँव ने भी अनेक कदम उठाएँ हैं। वे कहते हैं, अभी हमने गाँव में दो छोटे-छोटे समूहों का निर्माण किया है, जिनका काम आपस में नियम-कानूनों का आदान-प्रदान करना है। पहले समूह में हान जाति, ह्वी जाति और तिब्बती जाति के लोग शामिल हैं, जब्कि दूसरा समूहवेइवुर जाति का है। पहले समूह की जिम्मेदारी ट्रैक्टर, खाद-बीज आदी खरीदना है, जबकि दूसरे समूह की जिम्मेदारी सींचाई और फसल की कटाई है। अगर कभी किसी समूह का व्यक्ति बीमार पङ जाता है तो, हमलोग पूरे गाँव से चंदा इकट्ठा कर उसका ईलाज करवाते हैं। लोगों के शकरकंद बोने के समय, हान जाति के लोग उन्हें खेत को जोतने के तकनीक की जानकारी देते हैं, अगर किसी के पास बीज नहीं होता है तो, हान जाति के भाई लोग बीज की व्यवस्था करने में मदद करते हैं, सब्जीयाँ उगाने के लिए तंबू लगाने मे सहायता करते हैं। हमारे समूह के सभी लोग दो भाषा सिखते हैं, जीवन को खुशहाल बनाने में एक-दूसरे की मदद करते हैं। समूह के लोग गाँव के बाहर से नई तकनीक सीखकर आने के बाद, लोगों को इसकी जानकारी देते हैं। पहले हमलोग पशुपालन पर निर्भर रहते थे, लेकिन अब कृषि का बहुत विकास हो गया है, फलों की पैदावार बढ गई है, सब्जी उगाने वाले तंबुओं के संख्या में भी वृद्धि हुई है, जिससे लोगों का जीवन स्तर सुधर गया है।

आज ताजागजी गाँव में, नुलाहोश और लियु के बीच की परस्पर सहयोग और प्यार जैसा बहुत सारा उदाहरण देखने को मिलता है। नुलाहोश और लियु अल्पसंख्यक जाति के बीच के प्यार और सहयोग के प्रतिक बन गये हैं। इन दोनों ने अपने प्यार को पूरे गाँव मे फैलाकर विभिन्न जातियों के बीच के प्यार और सहयोग को और अधिक बढा दिया है। नुलाहोश की दूसरी बेटी चीनी भाषा के प्राथमिक स्कूल में दूसरी साल की छात्रा है, वह भी लियु चाचा के सहयोग का आभार प्रकट करती है। वह कहती है, लियु चाचा ने हमारे परिवार की हमेशा बहुत मदद की है, वह बहुत अच्छे हैं। जब मैं छोटी थी तो मेरा बहुत ख्याल रखते थे। मुझे एक कितोबों वाली बैग भी खरीद कर दिए थे।

वर्षों के परस्पर सहयोग ने दोनों परिवारों के बीच के संबंध को और अधिक मजबूत बना दिया है। नुलाहोश जी की पत्नी हेरहान जी , कहती हैं कि लियु जी ने उनके परिवार के लिए काफी सहयोग प्रदान किया है, जो लोगों को साफ पता चलता है। वे कहती हैं, पहले हमारा जीवन काफी कठिन था, लेकिन अब पहले से काफी अच्छा हो गया है। पहले हमलोग मुख्य रूप से खेती पर निर्भर थे, न अंगूर था, न हि ईतना सारा भेङ था। लियु श्वे वन की मदद से हमारे खेती की आमदनी बढ गई है। वर्तमान में हमारे परिवार की वार्षिक आमदनी लगभग 20 हजार युवान है। उस समय हमारे पास पैसे की कमी के कारण, मेरे बङी बेटी की शादी मध्य विद्यालय उत्तीर्ण होते ही हो गयी। अब मैं दूसरी लङकी के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी, कुछ भी हो जाए, वह जहां तक पढना चाहेगी, मैं उसे पढने दूंगी। हेरहान के लिए एक और खुशी की बात है कि, लियु जी की पत्नी भी उसकी अच्छी सहेली बन गई है। हेरहान हँसते हुए कहती है, हमलोग अक्सर लियु जी के परिवार से संपर्क करते हैं। हमलोग एकसाथ शकरकंद की रोपाई और कटाई करते हैं , साथ ही एकसाथ बेचने भी जाते हैं। दोनों परिवार के बीच आवाजाही काफी ज्यादा है। इतने सालों के आवाजाही से अब हमलोग एक परिवार के तरह बन गये हैं। कभी-कभी हमारे परिवार मे कोई कठिनाई पैदा होने पर हमलोग लियु जी के परिवार के साथ सलाह-मशविरा करते हैं।

दो साल पहले, नुलाहोश की बङी लङकी, एक तलाकशुदा लङके के साथ शादी करना चाहती थी। नुलाहोश और पत्नी दोनों इस शादी के खिलाफ थे। तब नुलाहोश अपने सबसे करीबी मित्र लियु जी से इस संबंध में बातचित किए। लियु जी ने उस लङके के परिवार के जाँच-पङताल करने के बाद पाया कि लङके की स्थिति काफी अच्छी थी, फिर लियु जी लङकी की शादी के लिए हमें राजी कर लिया। नुलाहोश जी को लियु जी की बातें तर्कपूर्ण लगी , और यह शादी संपन्न हो गया। आज मेरी लङकी अपने जीवन से काफी खुश है। आज मेरी लङकी भी लियु जी की इस मदद की आभारी है, जिनके कारण आज वह खुशीपूर्वक जीवन बिता रही है। नुलाहोश जी कहते हैं,

प्रत्येक साल हान जाती के चीनी वसंत त्यौहार के समय, मैं लियु के घर कुछ खाने का सामान लेकर मिलने जाता हूँ, लियु भीवेइवुर जाति के त्यौहार पर हमारे घर मिलने आता है। हमारे बीच का परस्पर सहयोग काफी सौहार्दपूर्ण है। लियु न केवल हमें आर्थिक मदद ही देता है, बल्कि मानसिक मदद भी देता है।

लियु श्वे वन और नुलाहोश की कहानी पूरे तागागजी गाँव के लिए विभिन्न जातियो के बीच प्रेम का प्रतिक है। इस तरह की कहानियाँ हरेक दिन बन रही है, जातीय एकता के दिन हरेक दिन गाए जा रहे हैं।

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