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स्वर्गीय डाक्टर कोटनिस सदा चीनी लोगों की याद में हैं
2009-12-08 19:04:16

अपनी मौत 67 साल बाद भी एक भारतीय डॉक्टर आज चीनी लोगों के दिल में रहते हैं । जब-जब डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस का नाम आता है दोनों देशों के लोग अपने को एक-दूसरे के करीब पाते हैं। द्वितीय विश्र्व युद्ध के दौरान चीन-जापान की लड़ाई में चीनी राहत टीम का हिस्सा रहे डॉ. कोटनिस को इस बार चीन के सर्वश्रेष्ठ दस अंतर्राष्ट्रीय मित्रों में चुना गया है।

दक्षिण महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में जन्मे कोटनिस चीन रवाना तो जवाहर लाल नेहरू के आह्वान पर हुए, लेकिन वहां जाते ही माओ त्से तुंग (कम्युनिस्ट पार्टी) के काम से इतना प्रभावित हुए कि उनके समर्थक बन गए। पिछले दिनों चीन द्वारा पिछले सौ सालों में चीन के सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय मित्रों का चुनाव करने के लिए इंटरनेट पर एक प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें डॉ. कोटनिस व डॉ. नोर्मन बैथ्यून सहित 10 लोगों को चुना गया है। इस सूची में बैथ्यून 46 लाख 94 हज़ार मतों के साथ सबसे ऊपर रहे, जबकि कोटनिस 23 लाख 53 हजार 656 मत पाकर आठवें स्थान पर रहे। एक महीने में कुल 5 करोड़ 60 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। कार्यकम के एक आयोजक वांग कांग न्यान ने कहा कि लोगों के मतों से जाहिर है कि चीन के लिए योगदान करने वालों को जनता आज भी नहीं भूली है। कोटनिस ने चीनी जनता के सेवा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। हम उनके हमेशा कर्जदार रहेंगे।

पुरस्कार हासिल करने बीजिंग पहुंची कोटनिस की 89 वर्षीय बहन मनोरमा व 82 वर्षीय वत्सला से जब मैंने कोटनिस के बारे में पूछा तो उनकी आँखों में एक अलग से चमक आ गयी। वे चाहती हैं कि भारत और चीन के बीच रिश्ते अच्छे हों। यहां बता दे कि शुरुआत में कोटनिस चीन में हांकू, उहान में रहे, उसके बाद येनान चले गए. फिर उन्हे बैथ्यून अन्तराष्ट्रीय शान्ति अस्पताल का निदेशक नियुक्त किया गया। 1939 में उन्होंने वुतई पहाड़ी क्षेत्र में माओ त्से तुंग के नेतृत्व वाली 8 वीं रूट आर्मी ज्वाइन की। उन्हें लगातार 72 घंटों तक काम करना पड़ता था। भारत से गए 5 सदस्यीय डॉक्टरों के दल के बाकी सभी सदस्य तो सकुशल लौट गए, लेकिन कोटनिस की 9 दिसंबर,1942 को महज 32 साल की उम्र में अपीलैपसी नामक बीमारी के चलते मौत हो गयी। माओ ने कोटनिस की मौत पर कहा था कि सेना ने अपना एक महत्वपूर्ण हाथ खो दिया है। हालांकि 1941 में कोटनिस ने चीनी महिला क्वाव किंग लान से विवाह भी किया, जिनसे एक बच्चा हुआ, उसका नाम यिन्हुआ (भारत-चीन ) रखा था। मुंबई से 1938 में चीन के लिए रवाना हुए डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस का चीन के लिए योगदान व लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन सरकार ने शी चा च्वांग में उनके नाम पर स्मारक बनाया गया है। चीन के येनान और शी चा च्वांग जैसे प्रान्तों में आज भी डॉ कोटनिस का नाम लेकर लोग भारत- चीन मैत्री की बातें किया करते हैं। 1910 में सोलापुर में जन्मे कोटनिस 1938 में चीन को मेडिकल सहायता देने के लिए भारत से रवाना हुए और द्वितीय विश्र्व युद्ध के दौरान चीन के जापान विरोधी युद्ध में हिस्सा लिया। जब-जब भारत-चीन रिश्तों की बात आती है तो डॉ. कोटनिस का उदाहरण दिया जाता है।

 गौरतलब है कि दोनों देशों ने पिछले साल संयुक्त चिकित्सा दल का गठन कर इस दिशा में पहल भी की है। इसके तहत युवा डॉक्टरों ने एक-दूसरे देश जाकर नि:शुल्क इलाज भी किया। कनाडा के मशहूर डॉक्टर व कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नोर्मन बैथ्यून के साथ उनका नाम चीनी लोग आज भी बड़ी श्रद्धा के साथ लेते है। चीन ही नहीं भारत की पुरानी पीड़ी के लोग भी कोटनिस के नाम से अनजान नहीं हैं। वैसे कोटनिस की भारत में लोकप्रियता डॉ कोटनिस की कहानी नाम की हिंदी फिल्म, अंग्रेजी में द इम्मोर्टल स्टोरी ऑफ डॉ कोटनिस के बाद काफी बढ गयी।(अनिल पांडे)

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