सब से पहले अंग्रेजी विभाग में कार्यरत विदेशी पत्रकार पाउल का तिब्बत के शिकाजे के दौरे पर अपना अनुभव । 24 अगस्त की सुबह हम फिर बस से शिकाजे वापस लौटे , पर इस बार मठ के दौरे के बजाये साधारण स्थानीय वासियों का दैनिक जीवन देखना था । इस दौरे का पहला पड़ाव है तिब्बत के कांग च्येन कालीन मिल को देखना है । यह कालीन मिल दसवें पनचन अर्दनी द्वारा 1988 में प्रस्तुत प्रस्ताव पर स्थापित की गयी है । इस मिल में कुल 180 मजदूरों का अधिकांश भाग महिलाओं का है । वे प्रतिदिन बड़ी महनत से कालीन बुनने में लगी हुई हैं । इस मिल के अधिकतर ग्राहक विदेशी हैं । हालांकि हमें मालूम नहीं है कि उन का सालाना मुनाफा कितना है , पर जब हम ने देखा कि 1.5 मीटर चौड़ा व दो मीटर लम्बा कालीन सात हजार य्वान बेचा जाता है , तो मुझे लगता है कि उन का मुनाफा कम नहीं हो सकता ।
कालीन मिल देखने के बाद हम तिब्बती घूप बत्ती मिल के दौरे पर गये । तिब्बती धूप बत्तियां मठों के प्रसादों में से एक है , आम दिनों में तिब्बती लामा धार्मिक अनुयायी मठों को प्रसाद के रुप में भेंट करते ही नहीं , बल्कि अपने घर पर पूजा पाठ करने धूप बत्तियों का प्रयोग भी करते हैं । इस धूप बत्ती मिल में सिर्फ कई सादे मकान हैं , पर वह कोई चालीस किस्मों से अधिक तिब्बती जड़ी बुटियों से बड़ी सुगंधित धूप बत्तियां बनाने में सक्षम है । सुना है कि इस मिल का सालाना मुनाफा कोई दस लाख य्वान से अधिक है , बिजनेज खूब चलता है ।
इस दौरे का अंतिम पड़ाव है शिकाजे की एक छोटी गली । देखने में यहां की गलियों और पेइचिंग की गलियों के बीच फर्क तो कोई बड़ा नहीं पड़ता , पर गलियों की दोनों ओर खड़े निवास स्थानों के गेट रंगीन धार्मिक शैलियों से युक्त डिजाइनों से सुसज्जित हुए हैं , यह यहां की गलियों की विशेष पहचान ही है । दोपहर के बाद हम पास में स्थित दूसरी कांऊटी शहर जा रहे हैं , आशा है कि वहां पर तिब्बत की और अधिक वास्तविक विशेष पहचान देखने को मिलेंगी ।
25 अगस्त को हम छुटपुट वर्षा में ल्हासा के लिये च्यांग ची से रवाना हुए । पानी आज की यात्रा का प्रमुख विषय मालूम पड़ रहा हो ।
यात्रा का पहला पड़ाव समुद्र की सतह से पांच हजार 560 मीटर की ऊंचाई पर स्थित करुला हिम नदी है । हालांकि आकाश पर घने बादल छाये हुए हैं , पर प्रकृति ने अपनी मागिकल से जो अनौखी हिम नदी तराशी है , उसे देखकर हम फिर भी दांत तले ऊंगली दबाने के बिना नहीं रह सकते । बेशक हम भी अधिकतर पर्यटकों की तरह हिम नदी की तलहटी में लगे कई स्टालों पर बिकने वाले विविधतापूर्ण यादगार वस्तुओं से आकर्षित हुए हैं । क्योंकि बाद में जब हम सुंदर चुड़ियां व सूक्षम आभूषण देखेंगे , तो निश्चय ही इस पांच हजार पांच सौ साठ मीटर की ऊंचाई पर स्थित पवित्र हिम नदी की याद आयेगी ।
यामचोंग युमको झील समुद्र की सतह की चार हजार चार सौ इकतालीस मीटर पर खड़ी तीन तिब्बती झीलों में से एक है और वह हमारी यात्रा का दूसरा पड़ाव ही है । यह पवित्र झील बहुत लम्बी है , झील के दोनों किनारों पर गगनचुम्बी सीधी खड़ी चट्टानें खड़ी हुई हैं । झील में बादलों की परछाइयों में बदलाव आने के साथ साथ पानी का रंग भी अजीब से बदल जाता है , कभी हल्का नीला दिखाई देता है , कभी गहरा नीला , प्रकृति के कमाल ने हमें चीनी स्याही चित्र जैसा अत्यंत शानदार दृश्य दिखा दिया । सौभाग्य की बात है कि छुटपुट वर्षा धीरे धीरे बंद होने के साथ साथ धुंधला सा मौसम भी साफ होने लगा , हम मुलायम धूप तले यहां के दर्शनीय प्राकृतिक दृश्य पर एकदम मोहित हो गये हैं ।
थोड़ी देर के लिये विश्राम करने के बाद हम फिर कई दर्रों को पारकर सही सलामत ल्हासा वापस लौट आये । समय काफी जल्दी से बित गया , हमें तिब्बत में आये हुए 8 दिन हो गये हैं , सिर्फ दो दिन बाकी रह गये हैं , हम तिब्बत की दूसरी तीर्थ झील नामत्सो और प्रसिद्ध पोताला महल और बड़ी ज्मलाखां मठ देखने जा रहे हैं ।
दूसरे दिन की सुबह वर्षा बरस रही है , हम बस पर सवार होकर नामत्सो झील के लिये रवाना हुए । हमारी कार पक्की मोटर सड़क पर तेजी से दौड़ रही है, साथ ही जीप , कारे और नाना प्रकार वाले ट्रक आते जाते नजर आते हैं । दसियों मीटर की दूरी पर छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन भी दिखायी देती है । 2006 में इस रेल लाइन की सेवा शुरु होने से लेकर अब तक ल्हासा यहां तक कि समूचे तिब्बत के विकास व प्रगति के लिये असाधारण योगदान किये गये हैं ।
मुझे सी आर आई में काम किये हुए अनेक साल हो गये हैं और इतने अधिक समय में मैं ने छिंगहाई तिब्बत रेल लाइन के बारे में अंगिनत लेखों को ठीक कर दिया , पर आज मैं अपनी आंखों से इस आश्चर्यजनक रेल लाइन को देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं । रेल लाइन के दोनों किनारों पर झुंट में झुंट सुलगाएं व बकरे बड़े मजे से हरी भरी घास खाते हुए दिखाई देते हैं , जबकि चेरवाहे आने जाने ट्रेकों के ड्राइवरों को दुग्ध पकवान बेचने में व्यस्त नजर आते हैं ।
यांगबाजैन क्षेत्र . जहां गर्म सन्साधन की भरमार होती है , के नजदीक पहुंचने के साथ साथ यातायात में व्यस्तता दिखाई पड़ी । आगे चलते चलते एक घाटी नजर आयी , संकरी घाटी से आगे चलते चलते अचानक विशाल घास मैदान नजर आया और चेरवाहों के तम्बू घास मैदान पर बिखरे हुए दिखायी देते हैं । दूसरी तरफ शांतिमय नामत्सो झील की चमक दमक ने हमें अपनी ओर खींच लिया है । गौर से देखकर पता चला कि आकाश से बातें करने वाले बर्फीले पर्वतों से यह विशाल तीर्थ नामत्सो झील घिरी हुई है । तिब्बती किम्वतंती के अनुसार इन बर्फीले पर्वतों में से एक पर्वत निश्चय ही नामत्सो झील देवी का प्रेमी ही है । झील के तट पर पर्यटकों की भीड़ लगी हुई है , बहुत से स्थानीय तिब्बती वासी पर्यटकों को बहुत सुंदर कलात्मक कृतियां बेचते हैं । तिब्बती परम्परागत पोषाकों से सुसज्जित स्थानीय वासी भी अपना बिजनेज करने में पीछे रहने को तैयार भी नहीं हैं , वे अपने सजधज सुलगाय लेकर फोटो खिंचवाने के लिये पर्यटकों को संबोधन करने के लिये प्रयासशील हैं ।
तीर्थ नामत्सो झील से वापस लौटने के रास्ते में हम ने एक रौनकदार मेला देखा , स्थानीय तिब्बती महिलाएं रंगीन परम्परागत पोषाक पहनकर आसपास के तंम्बूओं से मेले की ओर आते हुए दिखाय़ी देती हैं , मेले में सब लोग खरीददारी करने में व्यस्त दिखते हैं , ऐसे वातावरण से प्रभावित होकर हम ने भी रुककर कुछ स्थानीय कलात्मक कृतियां व यादगार वस्तुएं खरीद लीं ।
दामशुंग कांऊटी में हम ने लंच करते समय एक स्कूली बस देखी , बस पर नीले रंग वाले स्कूली त्रेस पहनने वाले छात्रों और दूसरे शहरों के स्कूली छात्रों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है । संक्षेप में कहा जाये , मेरा तिब्बत का दौरा आनन्दमय रहा।