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मंगोलियाई जाति का लोकगीत छांग त्यौ
2009-10-26 09:19:52
मंगोलियाई जाति का लोकगीत छांग त्यौ चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के उत्तरी भाग और मंगोल लोक गणराज्य में प्रचलित है , यह लोकगीत घूमंतु सांस्कृति और क्षेत्रीय संस्कृति की विशेषताओं से युक्त अलग ढंग का गायन तरीका ही है , उस का ताल लम्बा और नरम है और दायरा विशाल है । लोकगीत छांग त्यौ के अधिकतर विषयों में घास मैदान , घोड़े , नीले आसमान और झील का वर्णन किया जाता है । नवम्बर 2005 में युनेस्को ने पेरिस स्थित अपने मुख्यालय में तीसरी खेप की मानव जाति की मौखिक व गैर भौतिक विरासतों की प्रतिनिधि रचनाएं घोषित कीं , जिन में चीन व मंगोलिया लोक गणराज्य द्वारा संयुक्त रुप से संयुक्त राष्ट्र संघ को आवेदित मंगोलियाई जातीय लोक गीत छांग त्यौ भी शामिल है । मई 2006 में मंगोलियाई जातीय लोकगीत छांग त्यौ चीन की प्रथम खेप वाली गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की नामसूची में शामिल किया गया । सुरीला स्वर और मुक्त ताल मंगोलियाई जातीय लोकगीत छांग त्यौ की विशेषता है । यह लोकगीत मंगोलियाई जाति के जन्म से ही पैदा हो गया है , उस का इतिहास कोई एक हजार वर्ष से अधिक पुराना है । इसलिये यह लोकगीत मंगोलियाई जाति के घूमंतु जीवन तौर तरीके से घनिष्ट रूप से जड़ा हुआ है , वह मंगोलियाई जाति के इतिहास का साक्षी ही नहीं , इसी जाति के मानसिक स्वभाव का प्रतीकात्मक दर्शन भी है । भीतरी मंगोलिया सामाजिक विज्ञान अकादमी के अनुसंधानकर्ता मान तु फू ने इस का परिचय देते हुए कहा कि लोकगीत छांग त्यौ मुख्यतः मानव जाति व प्रकृति के बीच संबंध का वर्णन करता है , क्योंकि वहां पर घास मैदान और मानव जाति के बीच मंगोलियाई तंबुओं को छोड़कर और कोई दूसरी बाधा नहीं है , इसलिये उस की प्रतीकात्मक भावना या मानसिक भावना अत्यंत मुक्त है , इस में कोई बंधन नहीं है , ऐसा लोकगीत सुनने में जो महसूस होता है , उसे समझा जाता है । उत्तर भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश स्थित उचुमुछिन घास मैदान मंगोलियाई जातीय लोकगीत छांग त्यौ की जन्मभूमि के नाम से जाना जाता है , यहां पर दो सौ से अधिक लोकगीत छांग त्यौ प्रचलित हैं , जहां पर बसी मंगोलियाई जाति के हरेक व्यक्ति को यही लोकगीत छांग त्यौ गाना आता है । इलाता उचुमुछीन घास मैदान रहने वाला एक साधारण चरवाहा है , पिछले दसियों सालों में वह अपनी पत्नी के साथ इसी सुंदर घास मैदान में रहता है , दूसरे चरवाहों की ही तरह सुबह इलाता अपने प्यारे घोड़े पर सवार होकर लोकगीत छांग त्यौ गुनगुनाते हुए अपना पशु पालन जीवन शुरू करता है , गीत का स्वर कब से ही यहां के दैनिक जीवन का अभिन्न भाग बन गया है । चरवाहे इलाता ने कहा कि मेरे माता पिता को लोकगीत छांग त्यौ गाना आता है , इतना ही नहीं , वे बहुत अच्छी तरह गाते हैं , मैं ने बचपन से ही माता पिता से सीख लिया है , मैं अपनी 13 व 14 वर्ष की उम्र में लोकगीत छांग त्यौ गाने में बहुत निपुण हो गया हूं , जब महत्वपूर्ण त्यौहार की खुशियां मनाने या कोई जश्न मनाने की गतिविधियां की जाती हैं , तो मैं अवश्य ही छांग त्यौ गाता हूं , साथ ही मैं चराते समय भी हमारी जन्मभूमि के लोकगीत छांग त्यौ गाना बहुत पसंद करता हूं । उचुमुछिन घास मैदान में प्रचलित लोकगीत छांग त्यौ के बोल कम हैं लय लम्बा है और ताल धीमा व मुक्त है , यह लोकगीत कहानी सुनाने के काबिल है । चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उलागी ने कहा कि छांग त्यौ मंगोलियायों के खून में तरल संगीत है और जाति को पहचानने का द्योतक भी है । किसी अर्थ से कहा जाये , छांग त्यौ एक प्रकार का गीत ही नहीं , बल्कि चरवाहों का अस्तित्व रहने का तौर तरीका ही है और पशु पालन उत्पादक श्रम शक्तियों का एक जीता जागता संगठित भाग भी है । यदि लोकगीत छांग त्यौ न होता , तो कोई भी व्यक्ति असीमित विशाल वातावरण में लम्बे अर्से से अस्तित्व नहीं कर सकता और अपना शांतिमय संतुलित शारीरिक व मानसिक भावना बरकरार भी नहीं रख सकता । पिछले हजार वर्ष में मंगोलियाई लोकगीत छांग त्यौ मुख्यतः मौखिक या पारिवारिक रुप से ग्रहित किया जाता है , पर आधुनिक काल में चराने पर निर्भर रहने वाला जीवन रहन सहन धीरे धीरे बदल जाता है , बेशुमार छांग त्यौ गायकों को पोलित करने वाला घास मौदान सांस्कृतिक वातावरण भी चुपचाप लुप्त होता गया है , जिस से मंगोलियाई छांग त्यौ की मौजूदगी और विकास के लिये खतरा पैदा हो गया है , कुछ समृद्धिशाली कबिलाई छांग त्यौ भी मूलतः लुप्त हो गये हैं । इसलिये छांग त्यौ का संग्रह व संरक्षण कुछ छांग त्यौ प्रेमियों का एक काम बन गया है । चालू वर्ष 58 वर्षीय हू हो चालीस साल पहले विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद पूर्वी उचुमुछीन कांऊंटी में अध्यापन में लग गये । 2004 में उन्हों ने कुछ छांग त्यौ प्रेमियों के साथ छांग त्यौ संरक्षण संघ की स्थापना की । फिर हू हो ने संघ के सदस्यों के साथ इसी संघ को मंच बनाकर भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे लोकगीत छांग त्यौ को संग्रहित कर कलमबंद कर दिया और विविधतापूर्ण जनव्यापी लोकगीत छांग त्यौ प्रतियोगिताएं आयोजित कीं , परिणामस्वरुप लोकगीत छांग त्यौ भी चरवाहों के बीच इतने लोकप्रिय होने लगे कि जब छांग त्यौ की प्रतियोगिता होती है , तो अवश्य ही बहुत से चरवाहे बड़े उत्साह के साथ उस में भाल लेते हैं या चंदा देती है । श्री हू हो ने इस की चर्चा में कहा कि वे इस लोकगीत छांग त्यौ को बहुत पसंद करते हैं । हम ने प्रथम छांग त्यौ प्रतियोगिता में जिस पांच हजार य्वान का खर्च किया है , वह भी एक बुजुर्ग बढि मां ने चंदे के रुप में दिया है । इस के साथ ही भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के विभिन्न स्थानीय स्तरीय संबंधित विभागों ने लोकगीत छांग त्यौ के अध्यापन को बढाने के लिये कदम उठाकर विशेष कालेज और कोरस कायम किया और मंगोलियाई छांग त्यौ संरक्षण संस्था भी स्थापित की । भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के शिलिनकोल प्रिफेक्चर के गवर्नर चांग क्वो ह्वा ने इस का परिचय देते हुए कहा हमारे शिलिनकोल प्रिफेक्चर की हरेक कांऊटी में हर वर्ष एक बार लोकगीत छांग त्यौ गायन की प्रतियोगिता की जाती है , जिस से छांग त्यौ गायन को प्रदर्शित करने में बड़ी भूमिका निभायी गयी है । अब हमारे स्कूलों में भी छांग त्यौ गायन , माथाओ छिन यानी घोडे सिर रुपी वाद्य यंत्र और कुश्ती की पढाय़ी की जाती है . हम ने इसी प्रकार वाले सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण के लिये अपने स्कूलों में ये कोरस खोल दिये हैं । बेशक , सरकारी विभागों और गैर सरकारी संगठनों के अथल प्रयासों के जरिये उचुमुछिन घास मैदान पर लुप्त होने वाले लोकगीत छांग त्यौ गायन में फिर एक बार निखार आया है । इधर सालों में मंगोलियाई लोकगीत छांग त्यौ गायन से कदम ब कदम अधिकाधिक लोग परिचित हुए हैं और घास मैदान रहन सहन युक्त मुक्त ताल वाला छांग त्यौ गायन घास मैदार से विश्व के उन्मुख प्रदर्शित होता जा रहा है ।
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