इन दिनों पेइचिंग ओलिंपिक के मशाल को विश्व की सब से ऊंची पर्वत चोटी यानी तिब्बत में खड़ी चुमलांगमा चोटी पर प्रज्जवलित करने की तैयारी का काम चुमलांगमा पर्वत की तलहटी में व्यस्तता से हो रहा है । विश्व की सब से ऊंची पर्वत चोटी पर ओलिंपिक मशाल जलाया जाने पर सभी चीनियों को बड़ा गौरव और सुखद अनुभव हो रहा है । ओलिंपिक इतिहास में इस अभूतपूर्व महान कार्य को पूरा करने के लिए मशाल लिए पहाड़ पर चढ़ने वाले पर्वतारोहियों के अलावा इस के समर्थन में बड़ी संख्या में अन्य लोग भी निस्वार्थ काम कर रहे हैं । जिन में सामग्री व व्यक्तियों को वहां पहुंचाने वाले ड्राइवर , खाना बनाने वाले रसोइया और आपूर्ति के काम में लगे कर्मचारी भी शामिल हैं , इन बड़ी संख्या के लोगों के निस्वार्थ काम के चलते ही चुमलांगमा चोटी पर ओलिंपित मशाल प्रज्जवलित करने का अभियान अवश्य ही सफल होगा । आज के इस कार्यक्रम में प्रस्तुत है इस महान अभियान में कार्यरत तिब्बती ड्राइवर श्री ब्यांपाछिरन की कहानी ।
यह है तिब्बती गीत का एक अंश , जो एक साधारण तिब्बती ड्राइवर की आवाज में प्रस्तुत है । उन का नाम है ब्यांपाछिरन । इस साल 48 वर्षीय ब्यांपाछिरन और उन के दो छोटे भाइयों को चुमलांगमा चोटी के नीचे विभिन्न रास्तों में तिब्बती पर्वतारोही संघ की सेवा में गाड़ी चलाते हुए 20 साल हो गए हैं । फिलहाल , वह पेइचिंग ओलिंपिक मशाल रिले के चुमलांगमा अभियान में एक अस्थाई ड्राइवर है । हमारे संवाददाता ने इस तिब्बती भाई से मुलाकात की है और उन की कहानी उन्हीं की जुबान सुनीः
मैं चुमलांगमा पर्वत चोटी के क्षेत्र में गाड़ी चलाता हूं . अब तक बीस साल से ज्यादा हो गये हैं । हम तीन भाई तिब्बती पर्वतारोही संघ के लिए सेवा करते हैं और हम तीनों इस रास्ते पर आते जाते हैं।
तीन सगे भाई एक साथ चुमलांगमा चोटी पर ओलिंपिक मशाल पहुंचाने में लगे पर्वतारोहियों की सेवा कर रहे हैं , यह तिब्बत में ही नहीं , शायद अन्य स्थानों में भी बेजोड़ है । लेकिन मेहनती और ईमानदार ड्राइवर श्री ब्यांपाछिरन की नजर में यह एक असाधारण काम भी है , सामान्य काम भी । उन्हों ने संवाददाता को बताया कि युवावस्था में वे ट्रेक्टर चलाते थे , फिर ट्रक चलाने का काम चुना । उन के दो भाइयों ने उन से गाड़ी चलाने की तकनीक सीखी है। तीनों भाइयों के एक साथ चुमलांगमा पर्वत क्षेत्र में काम करने की चर्चा में श्री ब्यांपाछिरन ने कहा कि यह सामान्य प्रबंधन का काम है । 1984 में तिब्बती पर्वतारोही संघ के लिए ड्राइवर का काम करने के बाद वे हर साल करीब तीस बार इस रास्ते पर आते जाते हैं ।
चाहे गर्मियों के दिन या कड़ाके की सर्दियों के दिन वे कभी नहीं छूटते हैं। उन के काम का अंतिम पड़ाव समुद्र सतह से 5200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुख्य पर्वतारोही शिविर पर है । अपनी जीप के पास श्री ब्यांपाछिरन ने हमें अपना अनुभव बताते हुए कहा कि इन सालों में तिब्बत में सड़कों का काफी विकास हुआ है , और सड़क पर गाड़ी चलाने का काम भी बहुत अच्छा और सुविधापूर्ण हो गया है । उन का कहना हैः
मुझे यह गहरा अनुभव हुआ है कि अब रास्ता बहुत ही सुगम हो गया है , लेकिन अतीत में यहां का रास्ता दुर्गम था , मार्ग टूटा फटा हुआ था ।
यों चुमलांगमा पर्वत चोटी की तलहटी में अनेकों वर्षों से काम करते आये है , रास्ता भी वही रास्ता है । लेकिन उन्हें इस बार कुछ विशेष अनुभव हुआ है , क्यों कि इस बार वे पेइचिंग ओलिंपिक मशाल रिले के चुमलांगमा चोटी पर आरोहन के अभियान के लिए ड्राइवर का काम कर रहे हैं। वे बहुत प्रभावित हुए ।
मुझे बहुत गौरव महसूस हुआ है कि मुझे ओलिंपिक मशाल रिले के काम में भाग लेने का मौका मिला है ।
यह पूछने पर कि आप कभी चुमलांगमा चोटी पर चढ़े थे , श्री ब्यांपाछिरन ने सिर हिला कर इंकार किया , खास कर ताज्जुब की बात यह है कि वे चुमलांगमा चोटी के नीचे सैकड़ों बार आ जा चुके हैं , किन्तु उन्हें कभी उस पर चढ़ जाने की चाह नहीं हुई । इसे समझाते हुए श्री ब्यांपाछिरन ने कहा कि विश्व की छत कहलाने वाली चुमलांगमा चोटी पर आरोहित होना एक असाधारण सपना है । एक साधारण लोग होने के नाते वे शांति , स्थिरता और सुखचैन का जीवन बिताना चाहते हैं । तिब्बतियों में पारिवारिक मान्यता बहुत गहरी जड़ित हुई है । सामान्य स्थिति में संतान बड़ी होने पर भी मां बाप उन्हें अपने पास से दूर जाने नहीं देते हैं । परन्तु ब्यांपाछिरन की आशा है कि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली उन की बेटी उन से ज्यादा सुविधाजनक जीवन बिताएगी और वह अपने से अलग हो कर बड़े शहर में और खुशहाल जीवन के लिए चले जाएगी । उन्हों ने कहा कि उन की बेटी अब कालेज में अंग्रेजी भाषा पढ़ती है , उन की आशा है कि बेटी स्नातक होने के बाद शहर में पर्यटन सेवा की अंग्रेजी भाषी गाइड बनेगी ।
अपने भावी जीवन के लिए श्री ब्यांपाछिरन ने बेकाब से कहा कि वे चुमलांगमा चोटी के नीचे और दस बीस साल गाड़ी चलाना चाहते हैं । रिटायर होने के बाद वे अपनी जन्मभूमि तिब्बत की छुश्वी काऊंटी के नानमु टाउनशिप में स्थित अपने गांव में लौटेंगे और साधारण गांववासी का निश्चिंत जीवन बिताएंगे । उन का कहना है कि मैं खेती करना , गाय और सुअर पालना पसंद करता हूं ।
श्री ब्यांपाछिरन के साथ हमारे संवाददाता चुमलांगमा चोटी की तलहटी पर स्थापित मशाल रिले के मुख्य शिविर तक पहुंचे । तिब्बती भाई ब्यांपाछिरन का इस बार का काम भी समाप्त हुआ है । वे वहां उन के इंतजार में रूके दो भाइयों के साथ वापस ल्हासा लौटेंगे । पर उन की आवाज में वह तिब्बती गीत एक बार फिर हमारी कानों में गूंज उठा ।