छिन राजवंश काल में बेगार बहुत ज्यादा थी और तरह-तरह के टैक्स व लेवियां भी ली जाती थीं। किसानों को अपनी दो-तिहाई उपज टैक्सों व लेवियों के रूप में देनी पड़ती थी। इस के अलावा"अफ़ाङ"राजमहल, लीशान मकबरे और "लम्बी दीवार"का निर्माण करने के लिये उनसे बेगार भी ली जाती थी और प्रतिरक्षा के लिए उन्हें सीमा पर तैनात कर दिया जाता था। इन का
मों में 20 लाख से अधिक आदमियों को जुटाया गया था। यह निर्दय उत्पीड़न व शोषण जब किसानों की बर्दाश्त से बाहर हो गया, तो उन्होंने मजबूर होकर एक के बाद दूसरा विद्रोह शुरू कर दिया। 209 ई.पू. के चान्द्रपंचांग के सातवें महीने में, छन शङ, ऊ क्वाङ तथा 900 अन्य किसानों का एक दस्ता य्वीयाङ ( वर्तमान पेइचिंङ की मीयुन काउन्टी) में फौज़ी ड्यूटी के लिए भेजा गया। जब वे लोग छीश्येन काउन्टी के ताचे गांव (वर्तमान आनह्वेइ प्रांत के सूश्येन के दक्षिण-पश्चिम) में पहुंचे, तो भारी वर्षा के कारण यातायात ठप्प हो गया और किसानों का वह दस्ता समय प
र निर्दिष्ट स्थान तक नहीं पहुंच सका। इस तरह के विलम्ब के लिए उस समय के कानून में मौत की सजा निर्धारित थी। इसलिए किसानों ने यह सोचकर कि बेकार में प्राण गंवा देने से प्रतिरोध करना ही बेहतर है, ताचे गांव में विद्रोह कर दिया। उन्होंने छनश्येन (वर्तमान हनान प्रांत का ह्वाएयाङ) पर कब्जा करने के बाद "चाङछू"नामक नई राजसत्ता कायम करने की घोषणा कर दी। छन शङ गद्दी पर बैठा और ऊ क्वाङ सेनापति बन गया। इन दोनों ने छिन शासन का विरोध करने के लिए समूचे देश का आवाहन किया। अन्त में विद्रोही किसानों ने कुदालियों और लाठियों जैसे हथियारों के बल पर छिन राजवंश का तख्ता उलट दिया।