वर्ष 1993 के नवंबर में यू मिन होंग ने स्कूल की स्थापना करने का लाइसेंस प्राप्त किया। शुरूआती पूंजी के अभाव में उन्होंने पेइचिंग जुंग क्वान छुन नंबर दो प्राइमरी स्कूल की एक पुरानी इमारत में अपना काम शुरू किया। स्कूल चलाने की शुरूआत में उन्हें बहुत अप्रत्याशित मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पर उन के पास अकेलापन, हार व अपमान सहने की क्षमता थी। और उन का एक प्रसिद्ध आदर्श वाक्य यह था कि निराशा में आशा ढूंढ़िये, आप की जिन्दगी ज़रूर शानदार होगी। इस आदर्श वाक्य के मार्गदर्शन से यू मिन होंग ने पूरी कोशिश करके कम समय में अपनी अच्छी शिक्षा व शिक्षा की विशेष शैली से विद्यार्थियों का प्यार प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि, मैं केवल दो मुद्दों को महत्व देता हूं। ये दोनों मुद्दे चीनी विद्यार्थियों के विदेश में जाने के लिये दो ज़रूरी परीक्षाएं हैं। एक है तोफ़ल, एक है जी.आर.ई.। उस समय मैंने यह फैसला किया कि मैं अपनी पूरी कोशिश से उन दो मुद्दों को चीनी प्रशिक्षण का पहला ब्रांड बनाऊंगा।
उस समय चीन का मीडिया बहुत विकसित नहीं था, इसलिये एक दूसरे से सुन कर ही प्रसार-प्रचार होता था। नयी ओरिएंटल के विद्यार्थियों ने चीन में तोफ़ल व जी.आर.ई. की परीक्षाओं में अभूतपूर्व ऊंचे अंक प्राप्त किए, और उन्हें सुचारू रूप से विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की छात्रवृत्ति भी मिली। यह ख़बर सुनने के बाद विभिन्न जगहों से आए युवकों को विदेश जाने का सपना पूरा करने के लिए यू मिन होंग की कक्षा में दाखिल होने की तीव्र इच्छा हुई। श्री यू ने कहा कि, सब से पहले मेरे स्कूल में केवल मैं ही एक अध्यापक था। वर्ष 1994 के अंत तक स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या एक हजार से ज्यादा तक पहुंच गयी। और वर्ष 1995 के अंत तक विद्यार्थियों की संख्या दस हजार से ज्यादा हो गयी। वास्तव में नयी ओरिएंटल स्कूल एक पुल जैसा है। और विदेश में जाना एक नदी जैसा है। देखने में यह नदी शायद बहुत चौड़ी है, लोग इसे पार नहीं कर सकते, पर नयी ओरिएंटल नामक इस पुल द्वारा लोगों में इसे पार करने की हिम्मत बढ़ी।
वर्ष 1995 में यानि यू मिन होंग की स्कूल की स्थापना के दो साल के बाद नयी ओरिएंटल यह ब्रॉड पेइचिंग के विदेशी भाषा प्रशिक्षण बाजार में काफ़ी प्रसिद्ध हो गया। इस समय यू मिन होंग के पास विदेश जाने के लिये काफ़ी पैसा था। लेकिन दिन-ब-दिन प्रसिद्ध हो रहे नयी ओरिएंटल व ज्यादा से ज्यादा विद्यार्थियों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए यू मिन होंग ने अंत में विदेश में पढ़ाई करने का सपना छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि, मैं अपने विद्यार्थियों को नहीं छोड़ सकता था। और एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि मुझे लगता था कि मेरे लिये यह काम विदेश में पढ़ने से ज्यादा सार्थक है।
हालांकि नयी ओरिएंटल की एक अच्छी शुरूआत हुई। लेकिन इसे मज़बूत बनाने के लिये केवल यू मिन होंग अकेले काफ़ी नहीं थे। उस समय यू मिन होंग ने पेइचिंग यूनिवर्सिटी के अपने सहपाठियों को याद किया। उन में से कुछ अमरीका में पढ़ने के बाद वहां ठहर गये थे। इसलिये यू मिन होंग ने अपने सहपाठियों को ढूंढ़ने के लिये अमरीका की यात्रा की। उन्हें आशा थी कि उन के सहपाठी चीन वापस लौटकर उन के साथ काम कर सकेंगे। यू मिन होंग ने कहा कि, जब हमने एक साथ भोजन किया, तो मैंने उन्हें चीन वापस लौटकर अपने साथ काम करने का सुझाव दिया। मैं ने कहा कि अगर हम जीतते हैं, तो यह जीत सभी लोगों की होगी। हालांकि उस समय अमरीका में यू मिन होंग के सहपाठियों के काम अच्छे थे, लेकिन उन्हें समर्थन देने के लिये वे नयी ओरिएंटल में भाग लेने आ गए। इस से नयी ओरिएंटल ज्यादा से ज्यादा शक्तिशाली बन गयी। और वे लोग भी चीन में तोफ़ल व जी.आर.ई. परीक्षा के प्रशिक्षण में प्राधिकारी शक्ति बन गये।(चंद्रिमा)