चीन के सुधार व खुलेपन के तीस वर्षों में बहुत लोगों ने अपना विशेष स्वभाव दिखाकर जीवन का मूल्य पूरा किया, और अपने हाथों अपना भाग्य भी बदला दिया। यू मिन होंग उन में से एक हैं। वे दृढ़ संकल्प से निराशा में आशा ढूंढ़कर एक अज्ञात गरीब लड़के से नई ओरिएंटल नामक एक शिक्षा विज्ञान व तकनीक कंपनी समूह, जो चीन के विदेश में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की सब से बड़ी प्रशिक्षण शिक्षा संस्था है, के महानिदेशक बन गये। विदेश में पढ़ रहे चीनी विद्यार्थी स्नेह से उन्हें गॉडफादर कहते हैं।
वर्ष 1980 में दक्षिण चीन के च्यांगसू प्रांत के गांव से आए युवक यू मिन होंग तीन बार परीक्षा के बाद अंत में चीन की राजधानी पेइचिंग में स्थित सब से प्रसिद्ध विश्वविद्यालय पेइचिंग यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए। शायद इस समय से ही भाग्य ने बारी-बारी यू मिन होंग की परीक्षा ली। पर वे हमेशा दुख में से शक्ति ढूंढ़ सकने में समर्थ रहे । उन्होंने कहा कि, उसी समय मैं एक ग्रामीण बच्चा था, और तीन बार परीक्षा के बाद ही पेइचिंग यूनिवर्सिटी में दाखिल हुआ। मेरे सहपाठियों का स्तर बहुत ऊंचा था। मैं उन के सामने बहुत कमज़ोर था। उस समय मुझ में आत्मविश्वास नहीं था, और मैं बहुत संवेदनशील भी था।
दोस्त का अभाव और बिना प्रेम के यू मिन होंग ने केवल किताबों से ही ज्ञान व शक्ति प्राप्त की। वर्ष 2008 में पेइचिंग यूनिवर्सिटी के नये सत्र के उदघाटन समारोह में उन्होंने श्रेष्ठ स्नातक विद्यार्थी के रूप में नये विद्यार्थियों को भाषण दिया। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि पेइचिंग यूनिवर्सिटी एक ऐसा स्थान है, जहां मेरी जिन्दगी बदल गयी। मेरे विश्वविद्यालयी जीवन में सुनहरी यादों के साथ-साथ सिलसिलेवार दुख भी शामिल थे। सुख व दुख के बीच और मुश्किल, संघर्ष व प्रगति के बीच अंत में मैंने खुद को ढूंढ़ा, और अपने लिये ,परिवार के लिये और सारे समाज के लिये कुछ काम करना शुरू किया।
चार साल की पढ़ाई के बाद यू मिन होंग पेइचिंग यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी अध्यापक बन गये। उस समय चीन में दूसरी बार विदेश जाने की लहर थी। राष्ट्रीय द्वार खुलने के बाद ज्यादा से ज्यादा चीनी युवक बाहरी दुनिया देखना चाहते थे। यू मिन होंग के बहुत से सहपाठी विदेश गये। और यू मिन होंग के दिमाग में भी विदेश जाने का विचार था। उन्होंने कहा कि, उस समय मेरे बहुत से सहपाठी विदेश में पढ़ रहे थे। मैंने उन का समादर किया। इसलिये मैं भी काफ़ी पैसे कमाकर विदेश में पढ़ना चाहता था।
वर्ष 1990 में यू मिन होंग ने उस समय चीनी लोगों की नज़र में एक बहुत साहसी फैसला किया । उन्होंने पेइचिंग यूनिवर्सिटी के अध्यापक के पद से इस्तीफा दे दिया। इस का मतलब था कि उन्होंने अपनी इच्छा से स्थिर आय व शांतिपूर्ण जीवन छोड़ दिया।
विदेश में जाने वालों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ विदेशी भाषा की प्रशिक्षण संस्थाओं की संख्या भी बढ़ती रही। इस्तीफ़ा देने के बाद के कई सालों में यू मिन होंग ने अपनी अच्छी अंग्रेज़ी से उन विदेशी भाषा की प्रशिक्षण संस्थाओं में अध्यापक के रूप में काम करना शुरू किया। यह स्थिति वर्ष 1993 तक रही। उन्होंने एक प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना करने की योजना भी रची। उन्होंने कहा कि, अन्य लोगों के स्कूलों को देखकर मैं भी एक स्कूल की स्थापना करना चाहता था। वास्तव में मुझे लगता था कि स्कूल की स्थापना करने में मेरी क्षमता और ज्यादी अच्छी है। क्योंकि मैं अपने विद्यार्थियों के साथ अच्छा व्यवहार कर सकता हूं। दूसरे, कक्षा में मेरी क्षमता अच्छी है, और विद्यार्थियों को मेरी कक्षा में मुझे सुनने का बड़ा शौक है।(चंद्रिमा)