ईसापूर्व 770 में पश्चिमी चओ शासन समाप्त हो गया और चओ शासक अपनी राजधानी हाओचिङ से हटाकर पूर्व में स्थित ल्वोई (वर्तमान हनान प्रान्त का ल्वोयाङ) ले गए। इतिहास में यह पूर्वी चओ काल कहलाता है। पूर्वी चओ के शासन को दो कालों में विभाजित किया जाता है:वसन्त और शरद काल तथा युद्धरत-राज्य काल। वसन्त और शरद काल ( 770-476 ई. पू.) में लोहा गलाने की विधि का विकास होने के फलस्वरूप हल, कुल्हाड़ी व
कुदाली जैसे कृषि-औजार बनाए जाने लगे। बैलों की मदद से जुताई की शुरूआत हुई। परती जमीन के बहुत बड़े इलाके को, जो "चिङथ्येन व्यवस्था"के अन्तर्गत नहीं थी, खेतीयोग्य बनाया गया और जुताई वाली भूमि का विस्तार किया गया। नतीजे के तौर पर निजी स्वामित्व
वाली भूमि का रकबा काफी बढ़ गया। ईसापूर्व 594 में, लू राज्य में मू के हिसाब से भूमिकर वसूल करने की व्यवस्था लागू की गई। कृष्ट भूमि के रकबे के आधार पर टैक्स वसूल करने की इस व्यवस्था का लागू होना इस बात का प्रतीक था कि दासप्रथा के राजकीय भू-स्वामित्व का स्थान क्रमशः सामन्ती निजी भू-स्वामित्व ने ले लिया था। वसन्त और शरद काल में चओ राजवंश की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गई और अलग-अलग रियासतें शक्तिशाली होती गईं। उस के अन्तिम काल में इन रियासतों में सामन्तों ने अपनी शक्ति भी काफ़ी बढ़ा ली। परिणामस्वरूप, राजसत्ता कदम-ब-कदम एक नए वर्ग – उदीयमान जमींदार वर्ग - के हाथ में चली गई। दास विद्रोहों और जन- विद्रोहों ने दासप्रथा के विनाश की रफ्तार को और तेज कर दिया।