चीन की कज़ाख जाति का एक परम्परागत तंतुवाद्य तोंग बु ला बहुत मशहूर है । सुनिए इस तंतुवाद्य से बजायी गयी एक धुन ।
यह धुन कैसा लगी आप को ? हां , यह चीन की कज़ाख जाति का परम्परा तंतुवाद्य तोंग बु ला की एक धुन है । कज़ाक जाति उत्तर पश्चिमी चीन के शिंग च्यांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश, छिंग हाई प्रांत के उत्तरी भाग तथा कान सू प्रांत के पश्चिमी भाग में बसी है । कज़ाख जाति के ज्यादातर लोग चरवाहे हैं , और इस जाति को घोड़े पर सवार जाति की संज्ञा दी गई है । तोंग बू ला कज़ाख जाति का प्राचीन तंतुवाद्य यंत्र है । कहा जाता है कि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में इस तंतुवाद्य का प्रचलन शिंग च्यांग में शुरू हो गया था । बहुत से कज़ाख परिवारों में तोंग बू ला बजाने की परम्परा चल रही है । कज़ाख जाति की भाषा में तोंग बू ला का विशेष अर्थ होता है यानी तोंग का अर्थ वाद्य यंत्र का स्वर और बू ला का अर्थ है तंतु का लय बनाना । आगे सुनिए इस तंतु वाद्य की एक और धुन , नाम है "जन्मभूमि का प्यार" । इस धुन में कज़ाख जाति में अपनी जन्मभूमि से गहरा प्यार अभिव्यक्त हो जाता है ।
यह है कज़ाख जाति के परम्परागत तंतुवाद्य यंत्र तोंग बू ला पर बजायी गी धुन "जन्मभूमि का प्यार" ।
कज़ाख जाति का तंतुवाद्य तोंग बू ला लकड़ी से बना हुआ है , जिस का आकार एक बड़ा चमचा सा लगता है ।पुराने जमाने में तोंग बु ला तंतुवाद्य यंत्र बनाने का तरीका बहुत सरल था । लोक कलाकार किसी अच्छी क्वालिटी की लकड़ी को खोखला काट तराश कर चमचे का आकार बना देते थे , उस पर जड़ित पतले तख्ते पर दो तंतुएं लगा कर मजबूत कर देते थे, फिर चमचा रूपी यंत्र के एक छोर पर नौ प्रकार के स्वर बिठाने वाला पुर्जा लगाते थे , इस तरह एक तंतुवाद्य यंत्र तोंग बू ला का काम बन गया । तोंग बू ला कज़ाख लोक गायकों का मुख्य वाद्य है , जिसे वे हर समय अपने पास रखते हैं ।
कज़ाख जाति के लोग बहुधा चरवाहे हैं, इस लिए घास मैदान में मवेशी चराते समय तोंग बू ला उन्हें अकेलेपन से छुटकारा दिला सकता है और उन का जीवन रंगबिरंगा भी बनाता है । शाम को जब घर वापस लौटते हैं , कज़ाख लोग तोंग बू ला बजाते हुए गाते नाचते हैं, अपने परिजनों के साथ सुनहरी रात बिताते हैं ।
यह है तोंग बू ला पर बजायी गई धुन "लाल गुलाब"। तंतुवाद्य तोंग बू ला एकल गान के लिए ही नहीं है और कोरस के लिए भी बजाया जा सकता है , जिस की अभिव्यक्ति शक्ति बहुत प्रबल और समृद्ध होती है । तोंग बू ला बजाने का कला अधिकांश दूसरे तंतुवाद्य यंत्र बजाने के तरीके के बराबर है । कलाकार तोंग बू ला को अपनी गोद में रख कर बायीं हाथ से वाद्य यंत्र स्थिर पकड़ता है और दायीं हाथ की अंगूठे तथा संकेतक अंगुली से बजाता है । तोंग बू ला तरह तरह के कलाकौशल से बजाने पर अलग अलग स्वर की आवाज़ देता है । तोंग बु ला तंतुवाद्य से घास मैदान में पानी की कलकल आवाज़, चिड़िया की सुरीली चहक , बकरी की कोमल आवाज़ तथा घोड़ों की जोशीलापूर्ण आहट जैसी नाना किस्मों की ध्वनि पैदा करता है । आज के कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व मैं आप को तुंग बू ला वाद्य की एक एकल धुन पेश करूंगी, जिस का नाम है "चश्मा" । इस धुन में तोंग बु ली की एक सरल कला से पहाड़ी क्षेत्र में बहती स्वच्छ पानी वाले चश्मे की कलकल आवाज़ बजती है । लीजिए सुनिए यह मधुर धुन ।