आज से कोई 5000 वर्ष पहले, ह्वाङहो नदी (पीली नदी) और छाङच्याङ नदी (याङत्सी नदी) घाटियों के अनेक मातृसत्तात्मक सगोत्र कम्यून क्रमशः पितृसत्तात्मक सगोत्र कम्यून की अवस्था में पहुंच गये थे।"लुङशान संस्कृति"इस अवस्था का प्रतिनिधित्व करती थी। यह काल उत्तर-कालीन नवपाषाण काल कहलाता है। उस समय भी मुख्य औजार पत्थरों के ही होते थे, हालांकि तांबे की कुछ चीजें भी बनाई जाने लगी थीं। फसलों की किस्में और पैदावार काफ़ी बढ़ गई थी। अनाजों से शराब बनाने के तरीके का आविष्कार हो गया था। घोड़ा, बैल, भेड़, मुर्गा, कुत्ता और सुअर, जो आज के मुख्य पालतू जानवर माने जाते हैं, पाले जाने लगे थे। मिट्टी के बरतन बनाने
की तकनीक में काफ़ी प्रगति हुई थी। काली मिट्टी के बरतन, सफ़ेद मिट्टी के बरतन और अण्डे के छिलके जैसे पतले मिट्टी के बरतन उस काल के नये आविष्कार थे। जेड और हाथीदांत की कलात्मक वस्तुएं भी बनाई जाने लगी थीं। ये सब चीजें उत्पादन के विकास और मनुष्य के जीवनस्तर की उन्नति का प्रतीक थीं। श्रम के सामाजिक विभाजन और वस्तु-विनिमय के विकास ने निजी मिलकीयत को बढ़ावा दिया और वर्गों के आविर्भाव की प्रक्रिया को तेज कर दिया, जिससे आदिम समाज का कदम-ब-कदम विघटन शुरू हो गया।