2008-04-18 15:21:56

चीन की सुप्रसिद्ध फिल्म-अभिनेत्री कुंग ली

चीन भारत की ही तरह एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है। इस लिहाज से फिल्म-अभिनेताओं व अभिनेत्रियों की संख्या यहां स्वाभाविक रूप से कम नहीं हो सकती है। बात भी सही है, लेकिन अभिनेताओं,अभिनेत्रियों की इतनी बड़ी संख्या में से जिन के नाम लोगों की जुबान पर अक्सर रहते हैं उन्हें ही हम श्रेष्ठ अभिनेता,अभिनेत्रियों की श्रेणी में रख सकते हैं । कुंग ली का नाम इन श्रेष्ठ अभिनेत्रियों में सब से ऊपर है। दूसरी कुछ चीनी अभिनेत्रियों की तुलना में उन्हों ने ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया है,लेकिन जितनी भी फिल्मों में उन्होंने काम किया है,वे सब की सब लोकप्रिय,सफल व कमाऊ फिल्में साबित हुई हैं।चीन के मशहूर फिल्म-निर्देशक चांग ई-मो द्वारा नवनिर्मित फिल्म《Autumn Remembrance》में उन्हों ने हिरोइन की भूमिका अदा की,जिस से फिल्म-बाजार में नई धूम मची और बाक्स-ऑफ़िस पर एक नया रिकार्ड कायम हुआ।

सन 1986 में जब कुंग ली पेइचिंग के चीनी केंद्रीय नाटक प्रतिष्ठान के दूसरे वर्ष में पढ रहीं थीं,तब फिल्म-निर्देशक चांग ई-मो ने उन्हें अपनी नयी फिल्म 《Red Sorghum》के लिए हिरोइन के रूप में चुना था ।यह कुंग ली के लिए किस्मत बदलने का पहला सुनहरा मौका साबित हुआ। फिल्म《Red Sorghum》राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अत्यतं सफल रही। 38 वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में उसे स्वर्ण भालू पुरस्कार मिला। तब से चांग ई-मो और कुंग ली दोनों ने अंतर्राष्ट्रीय फिल्म जगत में अपनी-अपनी पहचान बनाने में सफलता हासिल की है। इस के बाद के कई वर्षो में चांग ई-मो ने क्रमशः《च्यु तो》,《लालटेन》और《अभियोक्ता छ्यो च्यु》भारी-भरकम व महंगी फिल्में बनाईं,जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक प्रथम पुरस्कारों से सम्मानित की गईं। इन तीनों फिल्मों में हिरोइनों की भूमिकाओं में कुंग ली ही थीं,जिन्हों ने अपने अभिनय के अनुपम हुनर से फिल्मों में चीनी महिलाओं के विभिन्न स्वभाव को सजीव ढंग से प्रदर्शित किया। फलस्वरूप उन्हें 49वें वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ। यह चीन की मुख्यभूमि में किसी अभिनेत्री द्वारा प्राप्त किया गया इस तरह का प्रथम पुरस्कार है। वर्ष 1996 में कुंग ली ने अपना रूख हॉलीवुड की ओर किया। लेकिन शुरूआती दौर में उन्हें वहां कोई अच्छी पटकथा न मिल पाने के कारण कुछ खास फिल्मों में काम करने का अवसर नहीं मिला ।उन्हों ने कहाः

"अच्छी फिल्मी पटकथा सामने न हो तो मैं विश्राम करती हूं। विश्राम मेरे लिए ऊर्जा अर्जित करने का अच्छा मौका होता है। विश्राम के दौरान मैं आराम से सब कुछ कर सकती हूं।मैं आम व्यक्ति की तरह अपने रिश्तेदारों और बहुत से पुराने मित्रों से मिलने जाती हूं।मैं अतिसाधारण फिल्मों में अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करना चाहती हूं। घिसी-पिटी भूमिकाओं से मैं ऊब गई हूं। फूलदान जैसी भूमिका मुझे रास नहीं आती है और न ही मैं उसे पसन्द करती हूं। इसलिए मैं बढिया फिल्मी पटकथा की प्रतीक्षा में रहती हूं।जैसे ही अच्छा ऑफर मिलता है,मैं अपनी पूरी ऊर्जा उस में डालती हूं।"

फिल्मों में दिखाई न पड़ने के बावजूद कुंग-ली फिल्म-जगत से गायब नहीं हुईं। बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्म हस्तियों की नजर उन पर टिकी रही। सन् 1997 में केन अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में वह निमंत्रण पर चयन-कमेटी की एक सदस्या बनीं। वर्ष 2000 से लेकर वे क्रमशः बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव,वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव और तोकियो अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव की चयन-कमेटियों की अध्यक्षा रहीं। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म-जगत के लिए कुंग ली चीनी फिल्मकला की एक द्योतक बन गई हैं। अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सवों के संयोजकों में कोई ऐसा नहीं है,जो कुंग ली को नहीं जानता। इन फिल्मोत्सवों की चयन-कमेटियों की अध्यक्षा बनने का अनुभव बताते हुए कुंग ली ने कहाः

"यह तो बड़ी दिलचस्प बात है। चयन-कमेटी 10 सदस्यों वाली एक कक्षा जैसी होती है, जिस की मैं मानिटर होती हूं। मैं उन्हें संबोधित करने की जिम्मेदारी निभाती हूं और बैठकों की अध्यक्षता करती हूं। वे सब विशेषज्ञ हैं और अपने-अपने विचार रखते हैं। बहस की गहमागहमी के दौरान अनेक बार झगड़ा होते होते रह जाता है। सदस्य अपने अपने रूख पर अड़े रहते हैं।उन्हें झगड़े से बचाने के लिए मैं बड़ी कोशिश करती हूं। नतीजतन वे मुझ से काफी संतुष्ट हैं। मेरा अनुभव है कि चयन-कमेटी के किसी भी अध्यक्ष को दुराग्रह छोड़कर पूरी निष्पक्षता बरतनी चाहिए। ऐसा करने से ही उसे सम्मान मिल सकता है और वह सहीसलामत अपना मिशन पूरा कर सकता है।"