2008-04-18 15:02:24

सूर्यमुखी के चार पौधे

आंगन में सुर्यमुखी के चार पौधे उगे थे, उन में से एक पौधा छोटा था, जो सब से देर में भूमि में से अंकरित हुआ निकला था। लेकिन वह अपने अन्य तीन पौधा भाइयों से तेज बढ़ता जा रहा था।

मैं अवश्य बड़े भाइयों से ऊंचा बढूंगा। सब से छोटा सुर्यमुखी ने कहा, मैं जरूर बढ़ने पर जोर लगाऊंगा, संभव है कि मैं सड़क के किनारे पर खड़े पोप्लर से भी ऊंचा निकलूंगा।

अपने इस प्रकार के विचार में डूबा था कि अहसा उसे लगा कि नीचे की जमीन में कोई उस का पांव मजबूती से पकड़ रहा है, असल में यह उस की जड़ का काम था, सुर्यमुखी जब लम्बा विकसित हो रहा था, तब उस की जड़ मिट्टी के अन्दर गहरी से गहरी घूसती जा रही थी। जड़ की मजबूती पर उस का तन सीधा खड़ा हो सकता था और मिट्टी से जल तथा उर्वरत्व ले सकता है। सुर्यमुखी के दूसरे तीन पौधे भी इसी तरह बढ़ गए थे।

यह कैसी मुर्खता हो कि अपनी बहुत सारी शक्ति को जड़ बढ़ाने में लगाता है, मैं ऐसा मुर्ख नहीं हू, मैं अपनी तमाम शक्ति को शरीर ऊंचा बढ़ाने में लगाऊंगा, मैं आंगन का सब से विशाल पौधा बन जाने की कोशिश करूंगा। छोटे सुर्यमुखी ने मन ही मन सोचा । ऐसा ही किया भी उस ने। कुछ दिनों बाद छोटे सुर्यमुखी का कद सब से ऊंचा बढ़ निकला।

नमस्ते, उस ने अपना ऊंचा लेकिन पतला शरीर सीधा करके मॉनिंग गलोरी को पुकारा और सिर हिला हिला कर सौजन्य दिखाया।

मॉनिंग गलोरी की दोनों आंखें फटी सी फुटी रह गई, उस ने कभी नहीं देखा था कि सुर्यमुखी इतला लम्बा पतला पतला सा उगा है। इस सुर्यमुखी का गोलाकार सिर पतले व कमजोर गर्दन पर हिल रहा था, देखने में ऐसा लगता था कि वह अभी टूटेगा,तो अभी टूटेगा।

अचानक तेज हवा चली, हवा के झोंके से पोप्लर के कुछ सूखे पत्ते अलग हो कर नीचे गिर पड़े, मॉनिंग गलोरी के दो पीले पत्ते भी झड़े, ओह, वहां सुर्यमुखी के चार पौधों में से अब केवल तीन ही रह गए, वह लम्बा किन्तु पतला वाला पौधा अब जमीन पर गिर कर पसर हो गया।