2008-04-11 14:38:27

लोककला उत्सव से देशों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा

कुछ समय पहले चीन के सातवें अंतर्राष्ट्रीय लोककला उत्सव का पटाक्षेप हुआ।चीन में इस तरह का प्रथम उत्सव सन् 1990 में आयोजित हुआ था,तब से विभिन्न देशों के कलाकारों ने इस सुअवसर का फायदा उठाकर एक दूसरे से काफी कुछ सीखा है।अभी समाप्त हुए लोककला उत्सव में बहुत से देशों के कलाकारों ने समान विचार व्यक्त किया कि परंपरागत लोककला का विकास युग की मुख्य धारा और तत्वों को शामिल कर औऱ ज्यादा युवकों को आकर्षित करके ही किया जा सकता है।

चीन के अंतर्राष्ट्रीय लोककला उत्सव का संयोजक चीनी साहित्य व कला संघ है।अभी समाप्त हुए वार्षिक उत्सव में 23 देशों व क्षेत्रों से आए करीब 1000 कलाकारों ने भाग लिया। उत्सव दो चरणों में बंटकर क्रमशः विख्यात पर्यटन-शहर सूचो और राजधानी पेइचिंग में आयोजित किया गया।उस में कलाकारों ने अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन से बड़ी संख्या में पर्यटकों और स्थानीय लोगों को आकर्षित किया।

जर्मनी की पोम्मेरानर लोकनृत्य मंडली के नेता श्री जॉर्ज मिलर ने कहा कि उन की मंडली द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले नृत्य जर्मनी में सैकड़ों वर्षों तक प्रचलित रहे हैं।जर्मनी में ही नहीं,बल्कि दूसरे देशों में भी वे काफी लोकप्रिय हैं।वे चीन के इस अंतर्राष्ट्रीय लोककला उत्सव में भाग ले कर प्रथम बार चीन-यात्रा कर रहे हैं।चीन में वे बहुत खुश हैं।उन्हों ने कहाः

"जर्मनी के उत्तरी भाग में प्रचलित लोकसंगीत व लोकनृत्यों की अपनी-अपनी सैकड़ों वर्षों की ऐतिहासिक कहानियां हैं।हम ने इन पुराने लोकनृत्यों को आज भी लोकप्रिय बनाने की सफल कोशिश की है।हम अक्सर विदेशों में जाकर इन लोकनृत्यों की प्रस्तुति करते हैं।यह हमारी प्रथम चीन-यात्रा है।हमें आश्चर्य हुआ है कि चीन ने इस उत्सव का आयोजन इतना अच्छा किया है।इस में हम ने कला के समृद्ध ढंग देखे हैं और बहुत कुछ सीखा है।हमें चीन बहुत पसन्द आया है।"

श्री जॉर्ज के अनुसार कला उत्सव के दौरान उन्हों ने विभिन्न देशों की लोककलाओं का आनन्द उठाया है।हरेक देश की कला की अपनी विशेषता है,लेकिन उस की एक समानता है कि राष्ट्रीय विशेषता वाले लोक कार्यक्रम ही सब से लोकप्रिय हैं।

तन्जानिया की लोककला मंडली के सभी सदस्य युवा लोग हैं।उन्हों ने परंपरागत तालवाद्य-कला को आधुनिक ढंग से प्रस्तुत कर दर्शकों की वाह-वाही लूटी।इस मंडली के नेता श्री मारुस ने कहा कि राष्ट्रीय कला और लोककला का विकास परंपराओं से अलग रहकर नहीं किया जा सकता है,तो भी उसे नये सृजन की जरूरत है।इस से ही आज के लोग उसे समझ सकते है और फिर पसंद कर सकते हैं।उन का कहना हैः

"हम परंपरागत तालवाद्यों का इस्तेमाल करते हैं,लेकिन बजाने का ढंग आधुनिक है और जो संगीत हम बजाते हैं, वह भी आधुनिक है।हम लोगों को यह बताना चाहते हैं कि हम ने विरासत से पुरानी परंपराओं को लिया है और हम अपने पूर्वजों और इतिहास को नहीं भूले हैं,बल्कि हम ने कुछ नया कर दिखाया है।हमें परंपरागत तालवाद्य बजाने के तरीकों में नया सृजन करना चाहिए,ताकि अधिकाधिक देशों के लोग हमारे तन्जानिया के लोकसंगीत को पसन्द कर सकें। "

श्री मारूस का यह विचार बहुत से लोक कलाकारों के मन की बात है।लोककला को विरासत में लेना और उस का विकास करना एक वैश्विक मुद्दा है,जो टेढी खीर भी साबित हुआ है।हां,आज के दौर में जन-जीवन तेज गति से चल रहा है और उपभोग के ढंग भी विविध हो गए है।इस सब से लोककला को भारी झटका लगा है।पूर्वजों का धीमी गति से जीवन बिताने का तरीका समाप्त हुआ है और उन की पसन्द की कला और मूल्य के प्रति उन का विचार भी लुप्तप्राय हो रहा है।

राष्ट्रीय और परंपरागत संस्कृतियों की रक्षा के लिए अतंर्राष्ट्रीय समुदाय ने तरह-तरह के कदम उठाए हैं।वर्ष 1989 में यूनेस्को ने प्रथम संबद्ध प्रस्ताव पारित किया था।सन् 2001 में उस ने सांस्कृतिक विविधताओं संबंधी वैश्विक घोषणा-पत्र और सन् 2003 में अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण संबंधी संधि पारित की।इन में लोककला समेत सांस्कृतिक विविधताओं और अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की रक्षा के महत्व पर जोर दिया गया है।अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा उठाए गए इन कदमों ने वैश्विकरण और सामाजिक रूपांतरण की प्रक्रिया में विभिन्न देशों में और विभिन्न राष्ट्रों में समझदारी,वार्तालाप और विचारों के आदान-प्रदान को बढावा दिया है।

अंतर्राष्ट्रीय लोककला संगठन का मुख्यालय ऑस्ट्रिया में स्थित है। संगठन के 130 से अधिक सदस्य देश हैं और उस का लक्ष्य परंपरागत लोककला के संरक्षण को मजबूत करना ही है।यह संगठन विश्व के विभिन्न देशों में लोककला संबंधी आदान-प्रदान को बढावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और प्रदर्शनों का आयोजन करता है।इस संगठन के उपाध्यक्ष श्री एटिएने ने चीन में आयोजित 5 अंतर्राष्ट्रीय लोककला उत्सवों में भाग लिया है।सो कहा जा सकता है कि वह चीनी लोककला के संरक्षण व विकास की प्रक्रिया का एक साक्ष्य है।उन्होंने चीनी साहित्य व कला संघ की इस बड़े पैमाने वाले उत्सव के सफल आयोजन के लिए प्रशंसा की और साथ ही यह भी कहा कि परंपरागत संस्कृति व कला बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर ही विकसित हो सकते हैं।उन के अनुसार वास्तव में परंपरागत वस्तुएं भी बदलती जा रही हैं।अगर वे न बदलें,तो राष्ट्र की वस्तुएं विकसित होने की बजाए रूक जाती हैं।चीन ने अपनी बदलती परंपरागत वस्तुओं को राष्ट्रीय ढंग से संरक्षित कर बहुत अच्छा किया है।इस तरह विश्व के बहुत से लोग चीन की परंपरागत कला का मूल्य समझ पाए हैं।

श्री एटिएने ने जानकारी दी कि अंतर्राष्ट्रीय लोककला संगठन और यूनेस्को आदि वैश्विक संगठन राष्ट्रीय कला व लोककला के संरक्षण पर कड़ी निगाह रखे हुए हैं।उन की कोशिशों की बदौलत अनेक सरकारी समझौते संपन्न किए गए हैं और इन समझौतों से विभिन्न देशों में राष्ट्रीय कला व लोककला के संरक्षण-कार्य को बड़ा बढावा मिला है।

चीन में अंतर्राष्ट्रीय लोककला उत्सव का संयोजक--चीनी साहित्य व कला संघ एक गैरसरकारी संगठन है,जिस का मुख्य कार्य देशी कलाकारों की सेवा करना और विदेशी कलाकारों के साथ उन के कलात्मक आदान-प्रदान का आयोजन करना है।इस संघ के अंतर्राष्ट्रीय संपर्क विभाग की उपप्रभारी सुश्री ह्वांग वन-च्वान ने कहा कि एक गैरसरकारी संगठन के नाते यह संघ कला के विकास के लिए अपने बलबूते कुछ करता है,यह हमारे लिए गौरव की बात है।चीनी और विदेशी कलाकारों को एक ही मंच पर प्रदर्शन करने और एक दूसरे से सीखने का मौका मिलना दोनों पक्षों के हित में है।सुश्री ह्वांग ने कहाः

"हमारे संघ और अंतर्राष्ट्रीय लोककला संगठन के बीच पुराने संबंध रहे हैं।हम एक दूसरे के समर्थक हैं और एक दूसरे के लिए बहुत कुछ किया है।आपसी सहयोग के दौरान हम ने राष्ट्रीय कला और लोककला के संरक्षण में दूसरे देशों की समुन्नत तकनीक और अनुभव प्राप्त किए हैं।बेशक इन देशों ने भी हम से उपयोगी चीजें सीखी हैं। "