चो परिवार में चो शान-ज्वो चो ता-ह्वांग का बड़ा भाई है। दोनों का जन्म पिछली शताब्दी के छठे दशक के शुरू में हुआ था।उन का जन्मस्थान दक्षिणी चीन का क्वांगशी च्वांग स्वायत्त प्रदेश है।यह प्रदेश अपनी सुरम्य प्रकृति और अल्पसंख्यकों के पहाड़ी गीतों के कारण मशहूर है।चो परिवार के निकट एक पहाड़ है,जिस पर सीधी खड़ी चट्टानों पर खुदे चित्र 2000 वर्ष से भी पुराने हैं।स्थानीय लोग उन्हें ह्वा-शान चित्र कहकर पुकारते हैं।इन चित्रों में जो मानव-आकृतियां और तरह-तरह के जीव-जंतु बनाए गए हैं,उन में अद्भुत काल्पनिकता झलकती है।अपने बचपन की याद करते हुए चो ता-ह्वांग ने कहाः
" बाल्यावस्था में पिता जी मुझे मिंगच्यांग नदी के क्षेत्र ले जाया करते थे।उस नदी के किनारे सीधे तौर पर खड़ी पहाड़ी चट्टानों पर बहुत से पुराने चित्र हैं।जब मैं पिता जी के साथ नाव चलाते हुए इन चित्रों को देखता था,तब मैं अक्सर मायावी कल्पनाओं में डूब जाता था,मानो मैं समय की सुरंग से प्राचीन काल में लौटा हूं।ललितकला की राह पर चल निकलने के बाद मैं कला की भाषा और अपनी सृजन की शैली खोजने में यत्नशील रहा हूं।सृजन के दौरान मुझे अक्सर उन चट्टानों पर बने पुराने चित्रों से प्रेरणा और उत्साह मिला है।इन चित्रों ने मुझ पर सचमुच अमिट छाप छोड़ी है।"
चो ता-ह्वांग के अनुसार अनेक वर्षों के बाद ही उन्हें समझ में आया कि जन्मभूमि की सांस्कृतिक परंपरा और रीति-रिवाजों ने उन की सृजन भावना पर कितना अधिक प्रभाव डाला है।पिछली सदी के नौवें दशक के शुरू में चो ता-ह्वांग और उन के बड़े भाई चो शान-ज्वो की कृतियां देश की मुख्यभूमि में लोकप्रिय होने लगीं थीं।सन् 1986 में दोनों ने पश्चिमी ललितकला सीखने के लिए अमरीका जाने का साहसी निर्णय लिया।उस साल चो शान-ज्वो 34 साल का और उस का छोटा भाग चो ता-ह्वांग 29 साल का था।
किसी कलाकार के लिए अपनी शैली ढूंढ कर सफलता पाना कोई आसान काम नहीं है।चो परिवार के दोनों भाइयों ने न तो पश्चिमी ललितकला-जगत की मांगों को अंधाधुंघ रूप से पूरा किया और न ही सीधे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय कलात्मक प्रचलन का अनुसरण किया।अपने भीतर के कलाकार की भूख को शांत करने के लिए जो सीखना ज़रूरी था वही सीखा।उन की तमाम कृतियों का आकार फिल्म-स्क्रीन जितना है।सृजन के दौरान वे पहले बहुत सी रंगबिरंगी तैलीय स्याहियों को बड़े कपड़े पर डालते हैं,फिर संगीत के संयोजन में बड़े ब्रश से चित्र बनाते हैं।उन के हाथों से कौन-सा चित्र निकलेगा?आस-पास खड़े लोग इस का कोई अंदाज नहीं लगा सकते हैं,लेकिन आधे या एक घंटे बाद कपड़े पर मानव की विभिन्न आकृतियां,अंगभंगिमाएं और अद्भुत टोटम या चिंह उभरते दिखाई देने लगते हैं।उन की कृतियों का सौंदर्य़ सुन्दर संगीत के समान ही वर्णनातीत है।कलात्मक तौर पर ये कृतियां दर्शकों को इस तरह प्रभावित करती हैं कि उन्हें देखते हुए दर्शक दांतों तले उंगली दबाने लगते हैं।सन् 1994 में दोनों ने नृत्य-मंच पर चित्र बनाना शुरू किया।ऐसा करने का उन का उद्देश्य था कि दर्शक उन की कृतियां ही नहीं,बल्कि कृतियां बनाने की उन की क्रियाएं भी देख सकें।
कुछ समय पूर्व पेइचिंग स्थित चीनी ललितकला भवन में 'चो परिवार के दो भाइयों की कृतियों की प्रदर्शनी ' लगी।प्रदर्शनी के दौरान दोनों ने मशहूर जुंगशान संगीत-भवन में दर्शकों को चित्र बनाने की पूरी प्रक्रिया दिखाई।इस प्रदर्शनी के वित्तीय प्रदाता श्री निकोल कारोस चो परिवार के दोनों भाइयों के दीवाने हैं।वे इस प्रदर्शनी के लिए विशेष तौर पर पेइचिंग आए हैं।उन्हों ने कहाः
"मैं शिकागो से आया हूं।बहुत से अमरीकन उन के चित्रों को बहुत पसंद करते हैं।मेरी नजर मे उन के चित्र जीवन-ऊर्जा से भरे हुए हैं,जो लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। "
चो शान-ज्वो और चो ता-ह्वांग के स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं।एक अंतर्मुखी है और एक खुले स्वभाव के ।दोनों की रूचियां भी भिन्न-भिन्न हैं।उन के प्रशासनिक सहायक श्री दारा के अनुसार चित्र बनाने के दौरान दोनों झगड़े तक भी पहुंच जाते हैं और कभी-कभी स्थिति यहां तक पहुंच जाती हैं कि उन में से किसी एक ने दूसरे के बनाए चित्र को कुछ नुकसान भी पहुंचाया है।