2008-02-22 11:30:08

चीनी पियानो-मास्टर ईन छंग-चुंग

चीनी संगीत-जगत में अनेक व्यक्तियों को अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों का दर्जा मिला है। इधर के वर्षो में ली युन-ती औऱ लांग लांग चीनी युवा पियानो-वादक के रूप में बहुचर्चित रहे हैं और उन की कहानियों से बहुत से लोग परिचित हैं। दरअसल उन से काफी पहले,या कहें कि उन की पूर्व पीढ़ी के ईन छंग-चुंग नामक एक पियानो-वादक को अंतर्राष्ट्रीय पियानो-मास्टर की ख्याति प्राप्त हुई थी। उन्हों ने किशोरावस्था में ही अंतर्राष्ट्रीय पियानो-वादन प्रतियोगिता में स्वर्ण-पदक जीता था।उन की सब से बड़ी उपलब्धि यह थी कि पिछली शताब्दी के छठे और सातवें दशक में उन्हों ने परंपरागत पश्चिमी संगीत से चीनी लोगों को अवगत कराया और पियानो पर परंपरागत चीनी संगीत को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया।

ईन छंग-चुंग वर्ष 1941 में दक्षिण पूर्वी चीन के समुद्रतटीय शहर श्यामन के उपनगर स्थित कूलांगयू द्वीप क्षेत्र में जन्मे थे। यह क्षेत्र किराये पर विदेशी आवास था। ईन छंग-चुंग को बाल्यावस्था में सड़कों पर खेलते समय अक्सर गिरजाघरों से सुन्दर संगीत की आवाज सुनाई पड़ती थी। संगीत में उन की दिलचस्पी जागने का यह भी एक कारण है।मौका मिलते ही वह किसी भी गिरजाघर में चले जाते थे और वहां बज रहे पियानो को दिन भर बैठ कर सुना करते थे।मां-बाप की सीमित आर्थिक स्थिति से उन्हें पेशावर शिक्षा प्राप्त नहीं हो पाई,लेकिन उन्हों ने संगीत के प्रति अपने जन्मसिद्ध बोध और प्रतिभा के बल पर अवकाश के समय पियानो बजाना सीखना शुरू किया। कई साल बाद यानी 12 साल की उम्र में वह अपने स्कूल के एक संगीत- अध्यापक की सलाह पर शांघाई गए।।उस समय चीन के प्रमुख संगीत विद्यालय शांघाई और पेइचिंग में केंद्रित थे। शांघाई में पेशावर शिक्षा लेने से ईन छंग-चुंग का जीवन बदल गया।इस की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहाः

" मेरा जन्मस्थान—कूलांगयू पियानो-वादन का हिंडोला है। वहां अधिकांश लोगों के घरों में पियानो हैं।लेकिन अतीत में वहां एक भी पेशावर पियानो-अध्यापक नहीं था।इसलिए पेशावर पियानो-वादक बनने के लिए मुझे घर छोडना पड़ा। उस समय यातायात की कोई भी सुविधा नहीं थी।न सार्वजनिक बस थी,न रेल-गाड़ी थी,न जल-जहाज था और न हवाई जहाज।चार दिनों तक ट्रक में सवारी करने के बाद मुझे एक रेलगाड़ी दिखाई पड़ी।सफर काफी दूभर था।लेकिन मुझे इस का कभी पछतावा नहीं हुआ।यह मेरे लिए एक निर्णायक कदम था।उस के बिना मैं पियानो-वादन में इतनी उपलब्धि हासिल नहीं कर सकता था और पियानो-बजाना सिर्फ मेरा एक शौक रह जाता।"

ईन छंग-चुंग ने शांघाई संगीत प्रतिष्ठान के अधीनस्थ हाई स्कूल में कई सालों तक नियमित रूप से पियानो-वादन पाठ्यक्रम का अध्ययन किया ।आखिरकार कड़ी मेहनत औऱ प्रतिभा रंग लायी।वर्ष 1959 में उन्हों ने देश की ओर से विएना में आयोजित विश्व युवा पियानो-वादन प्रतियोगिता में भाग लिया और तीव्र स्पर्द्धा के बाद सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार प्राप्त किया।इस से प्रेरित होकर उन्हों ने और कड़ी मेहनत शुरू की।दो साल बाद उन्हें रूस में आगे अध्ययन के लिए भेजा गया। वह सेंट पिटरस्बर्ग के संगीत प्रतिष्ठान में विश्वविख्यात पियानो-वादिका सुश्री टाटियाना.क्रावचेंको के छात्र बने। सन् 1962 में उन्हें ट्चाईकोवस्की अंतर्राष्ट्रीय पियानो-वादन प्रतियोगिता में स्वर्ण-पुरस्कार हासिल हुआ।ईन छंग-चुंग ने कहाः

"रूस में अध्ययन से मैंने बहुत सीखा है।पिछली सदी के सातवें दशक में रूस संगीत व कला की दृष्टि से दुनिया में पराकाष्ठा पर था। वहां जाकर मेरी दृष्टि विस्तृत हुई औऱ आत्मा को संगीत का ज्यादा पौषण प्राप्त हुआ। "

रूस से स्वदेश लौटने के बाद ईन छंग-चुंग को तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष माओ त्से-तुंग से मिलने का मौका मिला।माओ त्से-तुंग ने उन से ज्यादा चीनी विशेषता वाली संगीत-कृतियां रचने को कहा।तब से वे चीन के प्रसिद्ध परंपरागत ऑपेरा और लोकसंगीत को पियानो-संगीत में रूपांतरित करने की कोशिश करते रहे। सन् 1969 में उन्हों ने चीन के एक पुराने फासिस्ट विरोधी समूह-गायन के आधार एक पियानो-संगीत रचना बनाई,जो पीली नदी संगीत के नाम से मशहूर रही है।