गायिका मंग चिंग हुए चीन के सिंच्यांग स्वायत्त प्रदेश में पली-बढ़ी हैं। अब वे चीन में प्रसिद्ध गायिकाओं में से एक है। अपना सपना पूरा करने के लिए उन्हें घर से बाहर जाना पड़ा। घर से बाहर जा कर वह हमेशा अपने घर को याद करती रही हैं।2004 में उस ने अपनी जन्मभूमि की याद में एक एल्बम जारी की, जिसका शीर्षक है—लो पु फो। गायिका मंग चिंग हुए ने इस एल्बम में अपनी जन्मभूमि के प्रति अपने प्यार की अभिव्यक्ति की है।
दोस्तो, अब सुनिए गायिका मंग चिंग हुए द्वारा गाया गया एक गीत, जिसका शीर्षक है—लो अच़ लान। लो अच़ लान एक सिंच्यांग जाति की लड़की का नाम है। इस गीत में सिंच्यांग के एक लड़के का लो अच़ लान के साथ हुए प्रेम का वर्णन किया गया है।
गीत के बोल हैं—दो तार की हल्की आवाज़ में मैं लो अच़ लान का नाम पुकारता हूं। मैं तुम्हारे सुंदर गीत नहीं सुन सकता हूं। दो तार की आवाज़ में बड़ा अकेलापन है।
गायिका बनने की इच्छा होते हुए भी मंग चिंग हुए ने सेना में चिकित्सक का काम करना शुरु किया। काम करने के साथ-साथ वर्ष 1988 में सिंच्यांग कला विद्यालय में संगीत की शिक्षा हासिल करने के लिए उसने दाखिला लिया। दो साल के बाद उसने चिकित्सा का काम छोड़ कर शांगहाई संगीत विद्यालय में विधिवत संगीत की शिक्षा हासिल करने के लिए प्रवेश-परीक्षा दी। परीक्षा के दौरान उस ने अध्यापकों से कहा कि मैं अपने संगीत के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हूं क्योंकि मुझे संगीत बहुत पसंद है।
शांगहाई संगीत विद्यालय में मंग चिंग हुए ने बड़ी मेहनत से अध्ययन किया। रोज़ाना वह सुबह-सुबह उठकर गाने का अभ्यास करतीं और रात को सबसे वाद में सोने वाली लड़की भी वही होती। विश्वविद्यालय के चार सालों में हर साल आनेवाली गर्मी-सर्दी की छुट्टियां भी उसने संगीत सीखने और रियाज़ करने में ही बिताईं। इस दौरान जब-जब उसे सिंच्यांग वापिस जाने का अवसर मिला है तब-तब उसने वहां लोकगीत और लोकसंगीत सीखा है। उसने कहा कि सिंच्यांग के लोकगीत अच्छी तरह गाने के लिए वहां की संस्कृति और जीवन की गहरी समझ हासिल करना ज़रूरी है।
दोस्तो, अब सुनिए अगला गीत, जिसका शीर्षक है—छोची। छोची प्राचीन समय में पश्चिमी चीन में एक राज्य का नाम था। आजकल यह जगह चीन के सिंच्यांग स्वायत्त प्रदेश में है। वहां बुद्धधर्म का लंबा इतिहास रहा है। इस गीत को सुनते हुए उसी प्राचीन छोची शहर का जादू और वातावरण मानो अतीत से निकल कर आंखों के सामने सजीव हो उठता है।
वर्ष 1995 में मंग चिंग हुए शांगहाई संगीत विद्यालय में अपनी संगीत की शिक्षा पूरी करके उसी संगीत विद्यालय में एक संगीत की अध्यपिका बन गईं। कुछ साल अभ्यास करने के बाद उसे लगता है और उस की इच्छा है कि वह स्वयं इन गीतों का सारी दुनिया में प्रसार करे।
दोस्तो, अब सुनिए एक गीत जिसका शीर्षक है—बचपन का गीत।
वर्ष 2003 में मंग चिंग हुए की शांगहाई में एक गीतकार से मुलाकात हुई। उस का नाम है—च्यांग इ मीन। च्यांग इ मीन की सिंच्यांग के संगीत को आधार बना कर गीत लिखने की इच्छा थी। इसलिए उन दोनों ने अपने-अपने सपने पूरे करने के लिए एक साथ काम करना शुरु किया और लो पु फो नामक एक एल्बम जारी की। इस एल्बम में सभी गीत सिंच्यांग के बारे में हैं। इस एल्बम में उन दोनों के सिंच्यांग प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। 'बचपन का गीत' शीर्षक गीत गायिका मंग चिंग हुए बीते हुए अपने पचपन की याद के बारे में है।