"फिंग-याओ से मैं ने प्राचीन नगरों के संरक्षण का काम शुरू किया। मैं ने देश में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक शहरों के संरक्षण संबंधी अधिनियम बनाने के काम में भी भाग लिया। सन् 1982 में यह अधिनियम लागू हुआ। इस अधिनियम को व्यवहारिक बनाने के लिए हम बहुत से स्थानों में घूमे और घूमने के दौरान देश के दक्षिणी क्षेत्रों के प्राचीन नगरों व कस्बों के संरक्षण के लिए योजना बनाना शुरू किया। मैं ने दूसरे विशेषज्ञों के साथ चो-ज्वांग नामक एक कस्बे का सर्वेक्षण किया और निर्णय लिया कि इसी कस्बे से दक्षिणी चीन में प्राचीन नगरों के पुनःनिर्माण का काम शुरू किया जाएगा "
इस के बाद के करीब 20 वर्षों में रूआन ई-सान ने अध्यापन के बाद प्राचीन नगरों के संरक्षण में पूरा तन-मन अर्पित किया। दक्षिणी चीन के 6 प्रमुख प्राचीन नगरों के सफलता पूर्वक किए गए पुनःनिर्माण से उन्हें बड़ा संतोष मिला। ध्यान रहे कि दक्षिणी चीन के कथित प्राचीन नगरों का मतलब चीन की पहली लम्बी नदी यांग्त्सी नदी के दक्षिणी तट पर बसे विशेष सुन्दर दृश्यों वाले प्राचीन नगरों से है। इतिहास में चीन के दक्षिणी और उत्तरी भागों में अपनी-अपनी संस्कृति बन गई हैं,जो वास्तुशैली,रीतिरिवाज,साहित्य और नाटककला में प्रतिबिंबित है। प्राचीन नगर तो इन सांस्कृतिक विशेषताओं के संवाहक हैं। अफसोस की बात है कि दक्षिणी चीन में भी शहरीकरण के कारण अनेक प्राचीन नगर लुप्त हो गए हैं। शेष बच रहे अन्य प्राचीन नगरों को बचाने के लिए श्री रूआन ई-सान ने कड़ी मेहनत की। उन्हों ने चो-ज्वांग,तुंग-ली,लू-ची,नान-शुन,ऊ-चन और शी-थांग 6 प्रमुख प्राचीन नगरों का गंभीर सर्वेक्षण किया और इस के आधार पर संबंधित बचाव-परियोजना बनाई ,फिर काफी सोच-विचार कर उसे केंद्र सरकार के संबद्ध कार्यालय तक पहुंचाया।कार्यालय ने इस परियोजना की समीक्षा के लिए एक विशेष कार्य-दल गठित किया। सही और सकारात्मक निष्कर्ष तक पहुंचने के बाद कार्य-दल ने इस परियोजना को क्रियान्वित करने का फैसला किया। वास्तव में इस परियोजना को काग़ज से हकीकत में बदलने की प्रक्रिया बेरोकटाक नहीं रही। इस सिलसिले में कुछ लोगों ने रूआन ई-सान का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि वह अपने को बहुत अधिक समझते हैं और अपनी औकात से ऊपर काम कर रहे हैं। पर जो भी हो,अंतिम निष्कर्ष से साबित हुआ कि उन की परियोजना बिल्कुल सही थी।उन की खिल्ली उड़ाने वाले लोगों ने भी अंत में माना कि वह एक दूरदर्शी विशेषज्ञ हैं। अपने साथ हुई पुरानी बात की चर्चा में रूआन ई-सान ने कहाः
"मैं ने जो किया,वह सब प्राचीन नगरों को बचाने के लिए हैं। मेरा उद्देश्य बहुत सीधा-सादा है यानी कि प्राचीन नगरों का संरक्षण करना है। इसलिए मैं ने हर कीमत पर कोशिशें कीं,ताकि प्राचीन नगर और इन से जुड़ी श्रेष्ठ संस्कृति व परंपराओं को अच्छी तरह सुरक्षित किया जा सके।"
इधर के कुछ वर्षों में रूआन ई-सान ने अपना ध्यान किताब लिखने पर केंद्रित किया है।अब तक उन्हों ने 《पुराने नगरों के नए चहरे》,《प्राचीन नगरों के पदचिंह》,《प्राचीन नगरों के संरश्रण के सिद्धांत और परियोजना》,《ऐतिहासिक पर्यावरण के संरक्षण के सिद्धांत और व्यवहार》,《दक्षिणी चीन के प्राचीन नगर》और《प्राचीन नगरों पर विचार》आदि पुस्तकें लिखी हैं।उन्हों ने कहाः
"मैं ने बीते दो वर्षों में शांघाई शहर में कई महत्वपूर्ण काम किए हैं।यथार्थता मैं ने वहां यहूदी बस्ती रह चुके एक क्षेत्र का संरक्षण किया। इस क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोई 40 हजार यहूदियों को आश्रय मिला था।मैं ने वहां एक पार्क और एक समाधि बनवाई।वहां आप हर रोज किसी को पुष्पांजलि अर्पित करते देख सकते हैं। इस तरह के क्षेत्र को सुरक्षित ऱखने से विभिन्न देशों की जनता में मैत्री-भावना बनी रह सकती है ।"
श्री रूआन ई-सान शांघाई के वर्तमान में एक सांस्कृतिक सृजन वाले क्षेत्र के संस्थापक भी हैं।पहले इस क्षेत्र में बहुत से पुराने,टूटे-फूटे कारखाने और वर्कशापें थीं,जो शांघाई के इतिहास की गवाह मानी गई हैं।स्थानीय सरकार ने इन मकानों को हटाने का निर्णय लिया था,पर बाद में श्री रूआन ई-सान की सलाह पर सरकार ने वह निर्णय खारिज कर दिया और उन की परियोजना के अनुसार उन्हें आज का वर्तमान रुप दिया। यह क्षेत्र भी पर्यटकों के आकर्षण का एक केंद्र बन गया है,जो पर्यटकों को सृजनात्मक संस्कृति का मजा देने में सक्षम है।