2008-02-15 09:41:32

छिन राजवंश

छिन राजवंश के प्रथम सम्राट द्वारा अपनाई गई तानाशाही की इस केन्द्रीकृत व्यवस्था का चीन के दो हजार वर्ष लम्बे सामन्ती समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। छिन के बाद के सभी राजवंश आम तौर पर यही व्यवस्था लागू करते रहे।

देश की लम्बे अरसे की पृथकता के कारण, युद्धरत-राज्य काल में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग लिपियां प्रचलित थीं। देश के एकीकरण के पश्चात, समूचे चीन में "श्याओ च्वान"नामक एक प्रमाणित लिपि, जो उस जमाने की लिपियों का एक सरल रूप थी, प्रचलित की गई। बाद में इस की जगह"ली शू"लिपि ने ले ली, जो लिखने में इससे भी आसान थी। "ली शू"लिपि आज की "खाए शू"लिपि से काफी मिलती-जुलती है। छिन सरकार ने पूरे देश की मुद्राओं को एकरूप कर दिया तथा समूचे देश के लिये नाप-तौल के एकीकृत मापदण्ड निर्धारित किए। देशभर में यातायात को सुगम बनाने के लिये छिन शासक ने पुराने छै राज्यों द्वारा निर्मित सभी सीमावर्ती चौकियों , किलेबंदियों और दुर्गों को गिरा देने का आदेश दिया तथा राजधानी श्येनयाङ को केन्द्र बनाकर उत्तरपूर्वी, उत्तरी और दक्षिणपूर्वी चीन की ओर जाने वाली 50 कदम चौड़ी अनेक मजबूत सड़कें बनवाईं और उनके दोनों किनारों पर पेड़ भी लगवाए। ये तमाम उपाय सामन्ती राज्य के एकीकरण को सुदृढ़ बनाने में सहायक सिद्ध हुए।

अपने शासन को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से छिन सम्राट ने उन सभी पुस्तकों को, जिन्हें छिन सरकार की स्वीकृति प्राप्त न थी, जला डालने और भिन्नमतावलम्बी विद्वानों को जिन्दा गाड़ देने तथा जनता के हथियारों को जब्त व नष्ट कर देने का हुक्म भी जारी किया था।

छै राज्यों को खत्म करने के बाद, छिन राजवंश के प्रथम सम्राट ने उत्तर से दक्षिण की ओर श्युङनू (हूणों) के अभियान की रोकथाम के लिये अपने सेनापति मङ थ्येन को हुक्म दिया कि वह छिन, चाओ, येन और अन्य राज्यों द्वारा पहले से बनाई गई दीवारों को जोड़कर पश्चिम में लिनथाओ (वर्तमान कानसू प्रान्त के मिनश्येन के उत्तर में ) से पूर्व में ल्याओतुङ (वर्तमान ल्याओनिङ प्रान्त के ल्याओयाङ के उत्तर में ) तक हजारों किलोमीटर लम्बी एक दीवार बनवाए। यह कार्य विपुल श्रमशक्ति जुटाकर पूरा किया गया और नतीजे के तौर पर विश्वविख्यात "लम्बी दीवार"का निर्माण हुआ।

छिन राजवंश काल में बेगार बहुत ज्यादा थी और तरह-तरह के टैक्स व लेवियां भी ली जाती थीं। किसानों को अपनी दो-तिहाई उपज टैक्सों व लेवियों के रूप में देनी पड़ती थी। इस के अलावा"अफ़ाङ"राजमहल, लीशान मकबरे और "लम्बी दीवार"का निर्माण करने के लिये उनसे बेगार भी ली जाती थी और प्रतिरक्षा के लिए उन्हें सीमा पर तैनात कर दिया जाता था। इन कामों में 20 लाख से अधिक आदमियों को जुटाया गया था। यह निर्दय उत्पीड़न व शोषण जब किसानों की बर्दाश्त से बाहर हो गया, तो उन्होंने मजबूर होकर एक के बाद दूसरा विद्रोह शुरू कर दिया। 209 ई.पू. के चान्द्रपंचांग के सातवें महीने में, छन शङ, ऊ क्वाङ तथा 900 अन्य किसानों का एक दस्ता य्वीयाङ ( वर्तमान पेइचिंङ की मीयुन काउन्टी) में फौज़ी ड्यूटी के लिए भेजा गया। जब वे लोग छीश्येन काउन्टी के ताचे गांव (वर्तमान आनह्वेइ प्रांत के सूश्येन के दक्षिण-पश्चिम) में पहुंचे, तो भारी वर्षा के कारण यातायात ठप्प हो गया और किसानों का वह दस्ता समय पर निर्दिष्ट स्थान तक नहीं पहुंच सका। इस तरह के विलम्ब के लिए उस समय के कानून में मौत की सजा निर्धारित थी। इसलिए किसानों ने यह सोचकर कि बेकार में प्राण गंवा देने से प्रतिरोध करना ही बेहतर है, ताचे गांव में विद्रोह कर दिया। उन्होंने छनश्येन (वर्तमान हनान प्रांत का ह्वाएयाङ) पर कब्जा करने के बाद "चाङछू"नामक नई राजसत्ता कायम करने की घोषणा कर दी। छन शङ गद्दी पर बैठा और ऊ क्वाङ सेनापति बन गया। इन दोनों ने छिन शासन का विरोध करने के लिए समूचे देश का आवाहन किया। अन्त में विद्रोही किसानों ने कुदालियों और लाठियों जैसे हथियारों के बल पर छिन राजवंश का तख्ता उलट दिया।