2008-02-15 09:34:03

छोटी नदी की कहानी

एक छोटी नदी गाती नाचती आगे बहती जा रही थी । जल्दबाजी में वह अचानक सामने खड़े एक ऊंचे पहाड़ से टक्कर पड़ी । ओफ , बड़ी दर्द हुई । कराहते हुए उस की आंखों में पानी निकला , जो जल-कण के रूप में चारों ओर उछल पड़े । उस ने सिर उठा कर पहाड़ को घूरते हुए यो शिकायत की , मैं मुलायम रेतों से गुजरी हूं , चिकड़ी कीचड़ी भूमि से भी , जंगली फूल मेरे स्वागत में गाता है , घास पौधा मेरे साथ मिल कर क्रिड़ा करता है , मैं ऊंचे पेड़ों की जड़ लांघ कर चलती हूं , घनी झाड़ी से हो कर निकलती हूं , सभी मेरे साथ स्नेह का बर्ताव करते हैं और मुझे प्यार करते हैं । महज एक ही आप है , ऊंचा और विशाल बन कर मुझे टक्कर मार कर दुख देते है । ऊंहू ---।

ऊंचा पहाड़ हंस पड़ा , उस ने स्नेह के साथ कहा , रोना मत , प्यारी छोटी नदी , मेरी सुनो , मार्ग रौंदने से नहीं डरता है , जितना ज्यादा उस पर रौंदा जाता , उतना वह मजबूत बन जाएगा । बहते बढ़ते पानी में ताकत होती है , थोड़ा बहुत टक्कर खाने में क्या हर्ज है , इस से तुझे शक्ति मिल सकती है । तुम देखो , पहाड़ी झरना , जो पहाड़ी चोटी से निकल कर नीचे की ओर बहती जाती है , रास्ते में न जाने कितनी टक्करें खाती है , फिर भी वह लगातार आगे चली जाती है और बड़े उमंग से गाते हुए दृढ़ता के साथ बहती जाती है , वह कभी शिकायत नहीं करती है ।

पहाड़ की बात सुन कर छोटी नदी खिल गई , उस ने आंसू को पोछते हुए कहा , झरना , प्यारी पहाड़ी झरना , तुम बहुत बहादुर हो , हम दोनों दोस्त होंगे , मंजूर , हां , हम हाथ में हाथ डाले साथ साथ आगे बढ़ें ।

पहाड़ी झरना ने हामी भरी , अच्छा ख्याल है , तुम मुझे ले कर दूर , बहुत दूर चले जाओ , हम मिल कर मैदान से हो कर जाएंगे , जमीन को सुन्दर वस्त्र पहनवाएंगे , हम समुद्र में जा मिलेंगे , जहाज को आगे बढ़ने में गति देंगे , वाह , बड़ा मजा आएगा ।

छोटी नदी ने कहा, तुम सचमुच बहादुर हो , मुझे तुम से सीखना चाहिए ।

पहाड़ी झरना बोला , नहीं , ऐसा नहीं हूं , जल-प्रताप मुझ से ज्यादा बहादुर है । देखो , वह ऊंची सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टान से नीचे कूद कर आता है , जरा भी डर नहीं है । और तो वह बुलंद आवाज में हंसता है और पुकारता है , मेरा साहस देखो , जो किसी भी तरह की बाधा से नहीं डरता है । तुम देखो , छोटी नदी , उस ने सख्त पत्थर को भी पानी मार मार कर समतल बना देता है ।

छोटी नदी उल्लाह से उछल उठी , बहादुर जल-प्रताप , तुम बड़ा असाधारण लगता है , आओ , हम भी दोस्त बन जाएं , हाथ में हाथ थामे आगे बढ़ जाएं ।

जल-प्रताप ने खुशी से कहा , बहुत अच्छा है , तुम मुझे दूर दूर ले जाओ , हम मैदान से हो कर बहेंगे , जमीन को सुन्दर वस्त्र पहनवाएंगे , हम समुद्र में जा मिलेंगे , जहाज को आगे बढ़ने में गति देंगे , बड़ा मजा आएगा ।

तीनों दोस्त हाथ में हाथ पकड़े उछलते कूदते आगे बढ़ने लगे और अपने साथ लहरें उछाते रहे ।

छोटी नदी ने खुशी खुशी कहा, तुम दोनों अच्छे दोस्त मिलने पर मैं निश्चय ही शक्तिशाली और बहादुर हो जाऊंगी , आओ , हम मिल कर आगे बढो ।

पहाड़ी झरना और जल-प्रताप ने भी चित-प्रसन्न हो कर कहा , नमस्ते , पहाड़ी माता जी , जहां भी हम पहुंचेंगे , वहां से हम हवा दादा की मदद से आप को संदेश वापस भेजेंगे , आप की याद आई , तो हम बादल दादी के साथ लौट आएंगे , बारिश के रूप में आप की गोद में टपक कर समाएंगे ।

पहाड़ी माता मुस्कराई , उस ने पेड़ का एक हरा पत्ता तोड़ कर बहती नदी के पानी पर दे छोड़ा , पत्ता पानी की सतह पर एक छोटा नाव की तरह तैरने लगा । यह मत समझो , नाव हल्का और छोटा हो , लेकिन उस पर पहाड़ी माता की हार्दिक कामना लदी हुई है ।